याद कीजिये जब एक बार आतंकवादियों ने रूस का विमान हाइजैक किया था तो क्या हुआ था?
और आगे पढ़ना है इजराइल का विमान अपहरण पढ़ लीजिये. लेकिन भारत का एक विमान जब दिसंबर 1999 में हाइजैक किया गया था तो उस समय देश की जनता और कुछ राजनेताओं ने बहादुरी का परिचय नहीं दिया था.
भारत डर गया था और वह झुक गया था. जिस सर को बड़े नाज से गीतों में उठाये फिरते हैं वह सर उस घटना में झुक गया था.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस घटना का पूरा सच क्या था?
क्योकि आप उस सच से वाकिफ नहीं हैं.
तो आइये पढ़ते हैं कि क्या हुआ था तब-
इन्डियन एयरलाइन्स फ्लाईट 814 (वीटी-ईडीडब्ल्यू) (VT-EDW) का अपहरण शुक्रवार, 24 दिसम्बर 1999 को लगभग 05:30 बजे विमान के भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश के कुछ ही समय बाद कर लिया गया था।
इब्राहिम अतहर, बहावलपुर, पाकिस्तान
शाहिद अख्तर सईद, कराची, पाकिस्तान
सन्नी अहमद काजी, कराची, पाकिस्तान
मिस्त्री जहूर इब्राहिम, कराची, पाकिस्तान
शकीर, सुक्कुर, पाकिस्तान
जानकारी के अनुसार प्लेन को हाइजैक करने वाले आतंकवादी का नाम यह थे.
आईसी-814 पर मौजूद मुख्य फ्लाईट अटेंडेंट अनिल शर्मा ने बाद में बताया कि एक नकाबपोश, चश्माधारी आदमी ने विमान को बम से उड़ा देने की धमकी दी थी और कप्तान देवी शरण को “पश्चिम की ओर उड़ान भरने” का आदेश दिया था.
अपहरणकर्ता चाहते थे कि कप्तान शरण विमान को लखनऊ के ऊपर से होते हुए लाहौर की ओर ले जाएं लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने तुरंत इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया क्योंकि वे आतंकवादियों के साथ संबंध जोड़े जाने से प्रति सचेत थे.
यह कहानी तो आप सभी जानते ही होंगे. लेकिन इससे आगे का सच आप आज पहली बार पढ़ने वाले हैं. तब देश के उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी विमान के रास्ते देश वापिस आ रहे थे. जब यह अपहरण हुआ तो इसकी कोई जानकारी प्रधानमंत्री जी को नहीं दी गयी थी. वह नहीं जानते थे कि देश में क्या हो रहा है. जबकि प्रधानमंत्री के विमान के पायलेट को यह सूचना दे दी गयी थी. लेकिन इस बात को कोई नहीं जानता है कि इस पायलेट को किसने मना किया था कि वह यह सुचना अटल जी को नहीं दे. इस देरी के पीछे कौन था कोई नहीं जानता है.
इसके बाद विमान कई घंटों तक अमृतसर में रुका हुआ था लेकिन हमारे कमांडों वहां तक नहीं पहुँच पाते हैं. ऐसा बोला जाता है कि उनको विमान से एयरपोर्ट भेजना था लेकिन किसी भी विमान का इंतजाम नहीं हो पाया था. और जब वह सड़क के रास्ते गये तो वहां भरी जाम की वजह से देरी हो जाती है.
यह बात किसी भी व्यक्ति के गले नहीं उतर पाती है कि सड़क पर जाम किसने लगवाया था? राज्य सरकार ने या अन्य किसी सरकार ने.
अमृतसर से उड़कर विमान पाकिस्तान जाता है और भारत की आर्मी को देश की सरकार इसलिए पाकिस्तान नहीं भेज पाती है क्योकि अन्य पार्टियों का इस मुद्दे पर साथ नहीं मिल पा रहा था.
अब मुख्य मुद्दे पर आते हैं-
इतना होते ही देश के प्रधानमंत्री के घर के बाहर कुछ विपक्ष के नेता सड़क पर हल्ला करने लगते हैं. इन नेताओं में वामपंथी भी शामिल थे और देश की एक बड़ी पार्टी के मुख्य नेता भी थे. सभी हल्ला करते हैं कि किसी भी हालत में सभी नागरिकों को सरकार बचाए.
जो लोग बंधक थे उनको लोगों के परिवार वालों को कुछ नेता अपने साथ लेकर हल्ला करते हैं कि आतंकवादियों की सभी मांगे मानकर हमारे परिजनों को सरकार बचाए. लेकिन किसी को भी तब देश भक्ति और देशहित की बात याद नहीं आ रही थी. देश के कुछ नेता जिनका नाम नहीं लिया जा सकता है किन्तु वह उस समय विपक्ष की सरकार में थे ना जाने क्यों वह लोग इस भीड़ की अगुवाई कर रहे थे.
सभी चाहते थे कि आतंवादियों को छोड़ो और उनको पैसे देकर उनके परिजनों को बचाया जाये. बीजेपी के नेता लोगों को मना रहे थे कि वह ऐसा नहीं कर सकते हैं. कई शहीद जवानों के परिजनों को सरकार सामने लाती है और लोगों को समझाती है कि इनके बच्चों ने अपनी जानपर खेल कर इनको पकड़ा है. लेकिन सभी लोग सिर्फ और सिर्फ यही कहते हैं कि हमारे परिजनों को बचाया जाए.
इस पुरे विषय पर एक डॉक्युमेंट्री फिल्म बनी है जिसको देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आखिर क्यों कुछ नेता और साथ ही साथ कश्मीर के भी एक नेता इस मुद्दे में काफी रूचि ले रहे थे.
देश की जनता ने साहस का परिचय नहीं दिया था. वह भूल गयी थी कि इन आंतकवादियों को कैसे पकड़ा गया था जिन्हें हम आज छोड़ रहे हैं. सरकार ने सभी बंधकों को बचा लिया था. जो एक बड़ी बात कही जा सकती है.
इस मामले में कुछ विपक्षी नेताओं की नीतियों पर शक होता है वह जिस तरह से हाईजेक लोगों के परिवार वालों की इस्तेमाल कर रहे थे वह भी शक के घेरे में नजर आता है. ऐसा बोला जा सकता है कि दाल में जरुर कुछ काला था जिसकी जाँच नहीं की गयी है.
हमारी जनता ने भी रूस या इजराइल की तरह साहस दिखाया होता तो शायद आज पूरा विश्व हमपर गर्व कर सकता था.
(यह लेख उस समय के प्रधानमंत्री के मीडिया सेल के एक पत्रकार के लेख से लिए आंकड़ों को आधार बनाकर लिखा गया है. इसका यंगिस्थान से कोई लेना देना नहीं है. यह लेखक चंद्रकांत सारस्वत के निजी विचार है.)
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