भारतीय लोकतंत्र के चार मुख्या स्तंभ है, जिनके वजह से देश मजबुती से विकाश की राह में चलता रहता है. विधायका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रेस यह चार स्तंभ है.
जबकी देश का पाचवा स्तंभ अदृष्य रूप से अपनी उम्मीदों पर खड़ा है, यह देश की जनता है. किंतु चारों मुख्या स्तंभ अपनी जड़ से बेकार होने लगे है, इनको रखरखाव की आवश्कता है.
ऐसी स्थिति में भारत के चौथे स्तंभ पर भारी मुसीबत आन पड़ी है.
आम जनता की आवाज बन जनता को सच से परिचित कराने वाले लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर आए दिन हमले बढ़ते जा रहे है.
हालत देखते हुए इस चौथे स्तंभ को लेकर सरकार का रवैया बेहद ढीला है.
चौथा स्तंभ मुसीबत में क्यों है?
जैसे की आप को पता है देश का चौथा स्तंभ प्रेस है. प्रेस के कर्मचारी जिनको पत्रकार कहते है. जिनका नाम सुनते ही लोगों उनको एलियन समझ कर साथ नहीं देते. जिनके लिए कोई ख़ास कायदे क़ानून, सुरक्षा, सुविधा सरकार ने नहीं दी है.
बावजूद इसके समाज को आइना दिखाने का काम मीडिया बड़ी ही शिद्दत के साथ यह पत्रकार केवल अपने जस्बे हेतु करते है.
उन पर दिन ब दिन हमले होने का सिलसिला इनता बढ़ गया है, मानो प्रेस न होकर देश के दुश्मन हो गए है. जिन्हे भी अपनी काले कारनामे का डर सताने लगता है वो ही इस चौथे स्तम्भ पर जान लेवा हमला करना सुरु कर दिए है. ऐसे में अगर सरकार कुम्भकर्णी नीद से ना जागी तो क्या होगा चौथे स्तम्भ का?
किन प्रत्राकारों की हत्या हुई ?
वैसे तो हर साल कई सारे पत्रकार समाज सुधार के चलते अपनी जान से हाथ धो बैठते है.
भारत में पत्रकारों पर हो रहे हमलों के आंकड़े देखते हुए, International Press Institute’s (IPI) की सूची में ३ नंबर पर स्थान देश ने सुनिश्चित कर लिया है.
लेकिन यह बता दे की पिछले २ सालों में इतने पत्रकारों की हत्या हुई है जितनी हत्या पाकिस्तान जैसे आतंनकी देश में भी नहीं हुई है.
२०१३ में ११ पत्रकारों की हत्या हुए जब की छोटे अखबार के पत्रकारों को इस सूची से अभी बाहर रखा गया है.
इस सूची में शामिल है :-
तोंगपाल के पत्रकार नेमीचंद की हत्या छत्तीसगढ़ में हुई, इस प्रत्रकार की हत्या सुकमा जिले के कुछ नक्सली शामिल थे.
साई रेड्डी की हत्या छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों ने दिनदहाड़े धारदार हथियार से कर दी थी.
मीडिया वालों के लिए तो यूपी बेहद असुरक्षित और डरावना प्रदेश बन चुका है.
बुलंदशहर के लोकल पत्रकार ज़कौल्लाह की मौत बेहद दर्दनाक तरीके से की गई थी. जबकी उन दो महीनो में ३ और पत्रकारों को मौत के घाट उतारा गया था.
इटावा में पत्रकार राकेश शर्मा को गोली मारकर हत्या कर दी गई. उन्हें चार पांच गोलियां मारी गई. उनकी लाश सड़क पर मिली थी. यह कभी न ख़तम होने वाली सूची है.
हाल ही में आसाम के उदलगुड़ी जिले में 35 साल के प्रशांत कुमार नाम के पत्रकार को कुछ हथियारबंद लोगों ने जिले के खैराबाड़ी इलाके से शाम अपहृत कर लिया और उन्हें गोली मार दी.
शाहजहांपुर में 1 जून को स्वतंत्र पत्रकार जगेंद्र सिंह की मौत का मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि भाजपा शाषित मध्य प्रदेश में बालाघाट से दो दिन पहले अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी का जला शव शनिवार रात महाराष्ट्र में वर्धा के करीब एक खेत में पाया गया है. जिन्हे खनन माफिया ने जल कर मार दिया था, संदीप कोठारी बहुत समय से मध्यप्रदेश में खनन माफिया पर खबरे लिख रहे थे, उन्हों ने इसकी शिकायत बड़े लेवल पर भी की थी.
जिमेदार कौन?
पत्रकारिता में चंद पत्रकारों के चलते सारे पत्रकार आज बदनाम हुए है. कुछ पत्रकार कुछ हद तक खुद ही जिमेदार होते है. किंतु सबसे अधिक पत्रकारों की हत्या में पुलिस और सरकार जिमेदार है. अगर पुलिस की पकड़ मजबूत है और उनका डर जुर्म की दुनिया पर बलशाही हो, तो ही पत्रकारों की हत्या पर रोक लग पाएगा. लेकिन यहा मौकापरस्त सरकार को केवल अपने वोट बैंक और तिजोरी भरने से ही फुर्सत नहीं है. अगर पुलिस और सरकार युही अपने मतलब के लिए पत्रकारों की मौत पर घड़ियाली आसू बहाएगी तो, न्याय व्यवस्था के परखच्चे उड़ना तय है.
ऐसी परिस्तिथि में भारत का चौथे स्तंभ का टूटना तय है.
आखिर कब ये खादी और खाकी अपनी जिम्मेदारी से काम करेगे,
आखिर कब तक ये इंसानी लहूसे यूँहीं सत्ता के लिए खेलते रहेंगे.
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