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रामशंकर ‘विद्रोही’ की ये कवितायेँ नहीं नंगा सच है!

रामशंकर यादव ‘विद्रोही ‘ बहुत से लोग शायद इस नाम से वाकिफ ना हो. लेकिन राजनीति और छात्र आन्दोलन में रूचि रखने वाले. खासकर दिल्ली और जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय से थोडा भी वास्ता रखने वाले विद्रोही जी के नाम से भली भांति परिचित है.

JNU में पढने के लिए आये थे और फिर वहीँ के होकर रह गए. पिछले ३० सालों से वो वहीँ पर रह रहे थे. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भी उन्होंने JNU में रहने का फैसला किया.

दुबले पतले बीमार और गंदे कपड़ों में उन्हें देखकर किसी को भी पहले पहल गलत फहमी हो जाती थी.

लेकिन छात्र हित के आंदोलनों में चाहे वो विश्वविद्यालय परिसर में हो या बाहर विद्रोही जी के वक्तव्य और उनकी कविता सुनकर शायद ही कोई होगा जो उनका मुरीद ना हो.

तीन दिन पहले अचानक रामशंकर विद्रोही इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. अपने जीवनकाल में उन्होंने हिंदी और अवधि में अनेकों कविताये बोली. वो कभी अपनी कवितायेँ लिखते या प्रकाशित नहीं करवाते थे.

उनकी हर कविता के शब्द सरल होते थे लेकिन अर्थ ऐसे कि छाती को छलनी कर जाए.

आइये देखते है उनकी कुछ प्रसिद्ध कवितायेँ

मोहनजोदड़ों 

…और ये इंसान की बिखरी हुई हड्डियाँ
रोमन के गुलामों की भी हो सकती हैं और
बंगाल के जुलाहों की भी या फिर
वियतनामी, फ़िलिस्तीनी बच्चों की
साम्राज्य आख़िर साम्राज्य होता है
चाहे रोमन साम्राज्य हो, ब्रिटिश साम्राज्य हो
या अत्याधुनिक अमरीकी साम्राज्य
जिसका यही काम होता है कि
पहाड़ों पर पठारों पर नदी किनारे
सागर तीरे इंसानों की हड्डियाँ बिखेरना

जन गण मन 

मैं भी मरूंगा
और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे
लेकिन मैं चाहता हूं
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें
फिर भारत भाग्य विधाता मरें
फिर साधू के काका मरें
यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें
फिर मैं मरूं- आराम से
उधर चल कर वसंत ऋतु में
जब दानों में दूध और आमों में बौर आ जाता है
या फिर तब जब महुवा चूने लगता है
या फिर तब जब वनबेला फूलती है
नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके
और मित्र सब करें दिल्लगी
कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था
कि सारे बड़े-बड़े लोगों को मारकर तब मरा॥

तुम्हारा भगवान

तुम्हारे मान लेने से
पत्थर भगवान हो जाता है,
लेकिन तुम्हारे मान लेने से
पत्थर पैसा नहीं हो जाता।
तुम्हारा भगवान पत्ते की गाय है,
जिससे तुम खेल तो सकते हो,
लेकिन दूध नहीं पा सकते।

नई खेती 

मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा।

देखा आपने विद्रोही की एक एक कविता सरल शब्दों में कितनी गहरी और खरी बात कह देती थी. रामशंकर विद्रोही के जीवन पर बनी documentary “मैं तुम्हारा कवि हूँ ”  को कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरूस्कार भी मिले थे.
रामशंकर विद्रोही का शरीर चला गया हो लेकिन…

विद्रोही मरे नहीं है…. विद्रोही मरा नहीं करते.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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