झारखंडी शिवलिंग – हमारे देश में ऐसे कई शिवालय हैं जहां हर रोज शिवपूजा के लिए भक्तों का तांता लगता है.
भगवान शिव हिंदुओं के आराध्य देव कहलाते हैं लेकिन इस देश में एक जगह ऐसी भी है जहां मुस्लिम समुदाय के लोग भी भगवान शिव की आराध्य मानकर पूजा करते हैं.
दरअसल गोरखपुर से करीब 25 किमी. दूर सरया तिवारी गांव में भगवान शिव का एक अनोखा शिवलिंग मौजूद है, जिसे झारखंडी शिवलिंग कहा जाता है और इस अनोखे शिवलिंग की हिंदू मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग पूजा करते हैं.
शिवलिंग पर खुदा है कलमा
भगवान शिव का यह शिवलिंग अनोखा इसलिए भी है क्योंकि इसपर कलमा यानि इस्लाम का एक पवित्र वाक्य खुदा हुआ है.
कहा जाता है कि मुगल शासक महमूद गजनवी ने इस शिवलिंग पर उर्दू में ‘लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह‘ लिखवा दिया.
हिंदुओं के लिए जितना पवित्र शिवलिंग माना जाता है, उतना ही पवित्र हैं मुस्लिमों के लिए इस पर खुदा हुआ कलमा.
यही वजह है कि हिंदू मुस्लिम के लोग बड़ी ही श्रद्धा से यहां भगवान शिव की पूजा करते हैं.
शिवलिंग को तोड़ना चाहता था महमूद गजनवी
गांव के लोगों के मुताबिक महमूद गजनवी ने इस शिवलिंग को तोड़ने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका था. जब उससे शिवलिंग नहीं टूट सका, तो उसने इस पर ऊर्दू में ‘लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह’ लिखवा दिया. ताकि हिंदू इस शिवलिंग की पूजा न कर सकें.
लेकिन महमूद गजनवी की इस सोच को यहां के हिंदू मुस्लिम ने गलत साबित कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि शिवलिंग की अहमियत दोनों हिंदू मुस्लिम के लिए पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई.
स्वयंभू है झारखंडी शिवलिंग
यहां के लोगों की मान्यता है कि यह शिवलिंग कई सौ साल पुराना है और यह एक स्वयंभू शिवलिंग है. लोगों की माने तो इतना विशाल स्वयंभू शिवलिंग पूरे भारत में सिर्फ यहीं पर है.
दोनों हिंदू मुस्लिम धर्मों में बराबर पूजे जानेवाले इस शिवलिंग को लेकर लोगों की धारणा है कि शिव के इस दरबार में जो भी भक्त आकर श्रद्धा से कामना करता है, भगवान शिव उसकी मनोकामना पूरी करते हैं.
चमत्कारिक है पोखरे का जल
झारखंडी शिवलिंग की एक और खासियत यह है कि यहां भगवान शिव खुले आसमान के नीचे रहना पसंद करते हैं. शिव के इस मंदिर के बगल में एक पोखरा है. लोगों का कहना है कि इस पोखरे के जल में चर्म रोग को ठीक करने की चमत्कारिक शक्ति है.
इसी धारणा के चलते चर्म रोग से पीड़ित लोग इस पोखरे के जल में अपने रोग से मुक्ति पाने के लिए स्नान करने आते हैं. पांच मंगलवार और रविवार इस पोखरे के जल में स्नान करके अपने रोगों से मुक्ति पाते हैं.
गौरतलब है कि आज जहां धर्म के नाम पर आए दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं वहीं दोनों हिंदू मुस्लिम समुदाय के लोग इस मंदिर में पूजा करके समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द की एक अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं.
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