जापान और इस्लाम – आप अक्सर फेसबुक और सोशल साइट पर जापान और इस्लाम को लेकर एक खबर पढ़ते होंगे कि जापान अपने यहां किसी मुस्लिम को बसने की इजाजत नहीं देता है.
लेकिन इन खबरों में कितनी और कहां तक सच्चाई है इसको लेकर कुछ बातें हम आपके सामने रख रहे हैं. जिससे आपको जापान और इस्लाम के बारे बहुत हद तक स्थिति साफ हो जाएगी.
जापान और इस्लाम –
1 – ये बात काफी हद तक सही है कि जापान में किसी भी बाहरी मुसलमान को स्थायी रूप से रहने की इजाजत नहीं दी जाती है. वहां जितने भी मुस्लिम है वे काफी समय पूर्व से वहां रह रहे हैं.
2 – जापान में आज जितने भी अन्य देशों से आए मुसलमान हैं उनमें अधिकांशत तुर्की के हैं. क्योंकि तुर्की एक प्रगतिशील मुस्लिम राष्ट्र है और वहां के मुल्ला-मौलवी आतंकवाद शब्द तक जुबान पर नहीं लाते.
3 – यही कारण है कि आपने आज तक यह नहीं सुना गया कि जापान में कोई आतंकवादी हमला हुआ हो या इस्लाम के नाम पर बम धमाका हुआ हो.
4 – जापान में न तो जिहाद शब्द का कोई उच्चारण करता है और न ही वहां दारुल हरब और दारुल इस्लाम जैसी कोई सोच है. वहां फतवे देने अथवा मांगने की सख्त मनाही.
5 – जापान ही वह दुनिया का अकेला देश है जहां मुस्लिमों की आबादी बढ़ने के बाजए घटी है. एक अनुमान के मुताबिक जापान में कुछ साल पहले जहां 10 लाख मुसलमान रहते थे आज वहां पर केवल दो लाख मुसलमान रह गए हैं.
6 – जापान के विश्वविद्यालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों की भाषाएं नहीं पढ़ायी जातीं. मुस्लिम लेखकों द्वारा लिखे इस्लामी साहित्य को भी वहां स्थान नहीं दिया जाता.
7 – जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान को आयात करने पर भी रोक है. केवल उसी कुरान को जापान अपने यहां स्थान देता है जो जापानी भाषा में प्रकाशित की गई है.
8 – जापान में जो भी मुस्लिम नागरिक हैं वे जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते हैं.
9 – जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता है. यहां जो भी पुरानी मस्जिदें है उनमें से अधिकांश में अरबी के स्थान पर जापानी भाषा में नमाज पढ़ी और पढ़ाई जाती है.
10 – जापान में केवल पांच मुस्लिम राष्ट्रों को दूतावास खोलने के आदेश दिए गए हैं. वहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए जापानी में बोलना और जापानी भाषा में ही व्यवहार करना आवश्यक है.
दरअसल, जापान ने जब से बौद्ध धर्म को अपनाया है, तभी से जापानियों में इस्लाम या अन्य धर्म के प्रति कोई रुचि नहीं हैं. जिन दिनों बहुत सख्ती नहीं थी तब भी जापान में इस्लामी या इसाई मिशनरियों का कोई बहुत अधिक आवागमन नहीं था.
जापान और इस्लाम – जापान अपने राष्ट्रीय हित तक सीमित रहता है, वहां की जनता और सरकार केवल अपने राष्ट्र की प्रगति और भलाई के बारे में ही सोचती रहती है.
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