जैत सिंह चुण्डावत का नाम बहुत ही कम लोग जानते हैं.
ऐसा इसलिए है क्योकि इस बहादुर को स्थानीय पुस्तकों में तो जगह दी गयी है किन्तु राष्ट्रीय लेखकों को यह योद्धा इस लायक नहीं लगा कि उसकी जीवनी वह लिखें.
लेकिन जैत सिंह चुण्डावत जैसा बहादुर और बाहुबली योद्धा कई हजारों साल में एक बार ही जन्म लेता है. इस
बहादुर ने अपने राज्य और भारत माता के लिए कई युद्धों में सेना का मार्गदर्शन किया था. लेकिन एक बार राजा को जब इसकी बहादुरी पर शक हुआ तो इसने अपनी बहादुरी को सिद्ध करते हुए अपने प्राणों का भी बलिदान कर दिया था.
कहते हैं कि मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना की दो राजपूत रेजिमेंट चुण्डावत और शक्तावत में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी.
क्या था पूरा मामला
मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना में विशेष पराक्रमी होने के कारण चुण्डावत खांप के वीरों को ही युद्ध भूमि में अग्रिम पंक्ति में रहने का गौरव मिला हुआ था. वह उसे अपना अधिकार मानते थे.
लेकिन वहीँ दूसरी ओर शक्तावत खांप के वीर राजपूत भी कम पराक्रमी नहीं थे. इन लोगों की भी इच्छा थी कि इस बार वह युद्ध का नेतृत्व करें. इन लोगों ने भी राजा के सामने अपनी मांग रखी कि हम चुंडावतों से त्याग, बलिदान व शौर्य में किसी भी प्रकार कम नहीं है.
युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार हमें मिलना चाहिए.
तब राजा ने एक प्रतियोगिता का आयोजन कराया कि जो भी व्यक्ति सामने वाले किले के अंदर पहले प्रवेश करेगा, वही असली योद्धा कहा जाएगा और वह युद्ध में हमारा नेतृत्व करेगा. इस किले पर चुण्डावत और शक्तावत दोनों को अलग-अलग दिशाओं से आक्रमण करना था.
जब जैत सिंह चुण्डावत हारने लगा
ऐतिहासिक कहानियों के अन्दर लिखा हुआ है कि पहले तो जैत सिंह चुण्डावत जीतते हुए दिख रहे थे लेकिन अंतिम मौके पर वह हारने लगे. जैत सिंह चुण्डावत के लिए यह एक बदनामी वाली बात हो सकती थी.
इनकी बहादुरी के किस्से तब भी पूरे राज्य में मशहूर थे.
जब उनको लगा की अब जीतना मुश्किल है तब इन्होनें खुद अपनी तलवार निकाली और गर्दन काट कर अपने एक साथी को दी.
गर्दन काटने से पहले वह साथी से बोल चुके थे कि उनकी कटी गर्दन को महल के अन्दर फ़ेंक देना और राजा को बोलना कि जैत सिंह चुण्डावत ही पहले महल में पहुंचा था. हुआ भी कुछ ऐसा ही और इनकी कटी गर्दन को महल में फ़ेंक दिया गया. ऐसा सुनते ही पूरे राजस्थान में जैत सिंह चुण्डावत की बहादुरी के किस्से चारों और फैल गये.
इस बाहुबली की अमर गाथा को आप आज भी मेवाड़ के साथ-साथ पूरे राजस्थान में बच्चों के मुंह से भी सुन सकते हैं.
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