प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण चुनावी कार्यक्रम में से समय निकाल 112 फिट ऊंची शिव प्रतिमा का अनावरण करने कोंयमबटृर गए तो जरूर कोई बात रही होगी.
दरअसल, जिस शख्स के सौजन्य से ये सब हो रहा था उसका नाम हैं जग्गी सद्गुरु वासुदेव. ये शख्स देखने और बोलने में जितना साधरण नजर आता है उससे कहीं अधिक असाधरण उनका व्यक्तित्व है.
आप इसी से उनकी प्रतिभा का अंदाजा लगा लीजिए कि जग्गी सद्गुरु वासुदेव को संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक परिषद में विशेष सलाहकार की पदवी प्राप्त है. उनका संस्थान ईशा फाउंडेशन भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में योग कार्यक्रम सिखाता है.
यही नहीं जब देश में गौमांस को लेकर बहस हुई तो जग्गी सद्गुरु वासुदेव ही वह अकेले शख्स थे जिन्होंने वैज्ञानिक और आध्यात्मिक तरीके से गौमांस खाने का न केवल खंडन किया बल्कि वैज्ञानिक तर्क देकर इससे होने वाले नुकसान भी बताए.
उनके तर्कों के बाद कई दिग्गज जो गौ मांस खाने को लेकर अपने तर्क दे रहे थे बैकफुट पर आ गए थे. उनमें चर्चित पत्रकार बरखा दत्त भी शामिल है.
आपको बता दें कि जग्गी सद्गुरु वासुदेव का आईटी और मेडिकल आदि क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों पर बहुत प्रभाव है. यह न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में लोग उनके योग और उनकी आध्यात्मिक बातों के दीवाने हैं.
जग्गी सद्गुरु वासुदेव की शख्सियत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पूरे तमिलनाडु को हरा भरा करने का बीड़ा उठाया हुआ है. यहां वे लगभग 16 करोड़ पेड़ लगाने की परियोजना चला रहे हैं.
उनके संगठन ने 17 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख पौधे रोपकर गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाया था.
अब तक ग्रीन हैंड्स परियोजना के अंतर्गत तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में 1800 से अधिक समुदायों में, 20 लाख से अधिक लोगों द्वारा 82 लाख पौधे के रोपण का आयोजन किया है.
कोयंबटूर के जिस परिसर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 112 फिट ऊंची शिव प्रतिमा का अनावरण उसी परिसर में ध्यानलिंग योग मंदिर भी प्रतिष्ठित है.
बताया जाता है कि 1999 में सद्गुरु द्वारा प्रतिष्ठित ध्यान लिंग अपनी तरह का पहला लिंग है जिसकी प्रतिष्ठता पूरी हुई है. 13 फीट 9 इंच की ऊँचाई वाला यह ध्यानलिंग विश्व का सबसे बड़ा पारा-आधारित जीवित लिंग है.
आपको बता दें कि यह किसी खास संप्रदाय या मत से संबंध नहीं रखता, ना ही यहाँ पर किसी विधि-विधान, प्रार्थना या पूजा की जरूरत होती है.
जो लोग ध्यान के अनुभव से वंचित रहे हैं, वे भी ध्यानलिंग मंदिर में सिर्फ कुछ मिनट तक मौन बैठकर घ्यान की गहरी अवस्था का अनुभव कर सकते हैं.
आपको शायद मालूम नहीं हो कि इसके प्रवेश द्वार पर सर्व-धर्म स्तंभ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौध, सिक्ख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक अंकित हैं, यह धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर पूरी मानवता को आमंत्रित करता है.
इन दिनों विदेशों के साथ साथ भारत में भी जग्गी सद्गुरु वासुदेव के मानने वालों लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है.