राजनीति

दुश्मन ही नहीं बल्कि दुनिया का हर आतंकी घबराता है इस मोसाद से !

ये कहा जाता है कि अगर एक बार किसी का नाम इजराइल की खुफियां एजेंसी मोसाद की लिस्ट में चढ़ गया तो फिर उसको फरीस्ते भी नहीं बचा सकते हैं.

मोसाद का मतलब समझने के लिए दो अक्षरों और मात्राओं वाला एक ही शब्द काफी है वह है मौत.

ये भी कहा जाता कि ऊपर वाला एक बार गुनाहों को माफ कर सकता है लेकिन इजराइल की खुफियां एजेंसी मोसाद नहीं. नागिन की तरह जो एक बार मोसाद की निगाह में चढ़ गया, उसका बचना मुश्किल है.

इजराइल या उसके नागरिकों पर हमला करने के बाद दुश्मन दुनिया के किसी भी कोने क्यों न छिपे हों मोसाद के खूंखार एजेंट उसे ढूंढ निकालने की कूवत रखते हैं.

इजराइल की खुफियां एजेंसी मोसाद की पहुंच दुनिया में हर उस जगह तक है जहां इजराइल या इजराइल के नागरिकों के खिलाफ कोई भी साजिश रची जा रही हो. यही वजह है कि इजराइल की इस खुफिया एजेंसी को दुनिया की सबसे खतरनाक एजेंसी कहा जाता है.

मोसाद की आतंकवादियों के खिलाफ चलाई गई मुहिम का बेहतर उदाहरण म्युनिक हत्याकांड है.

वर्ष 1972 में पश्चिम जर्मनी के म्युनिक शहर में ओलिंपिक खेलों का आयोजन हुआ था. यहां फिलिस्तीन के आतंकवादियों ने म्युनिक ओलंपिक गेम्स विलेज में जहां इजराइल खिलाड़ी ठहरे हुए थे, वहां घुसकर इजराइली खिलाड़ियों पर हमला कर दिया. फिलिस्तीनी आतंकवादियो ने 12 इजराइली खिलाडियों की हत्या कर दी.

इस घटना को फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन ब्लैक सितंबर ने अंजाम दिया था.

इजराइल की खुफियां एजेंसी मोसाद ने इस आतंकी हमले में शामिल उन तमाम लोगों की तलाश शुरू कर दी. मोसाद ने सबको ढूढ-ढूढ कर मार दिया जो उस हमले में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए थे. मोसाद ने इसके लिए दूसरे देशों में घुसकर कार्रवाई की. मोसाद के जासूस दुश्मनों को उतनी ही गोली मारते थे जितनी इजराल के खिलाड़ियों को लगी थी.

मोसाद के बारे प्रसिद्ध है कि यह एजेंसी आतंकवादियों और उनके संगठन का तब तक पीछा करती है जब तक की उसके पूरे नेटवर्क को खत्म न कर दिया जाए. पाकिस्तान का खतरनाक परमाणु वैज्ञानिक ए क्यू खान भी मोसाद की हिट लिस्ट में है. ये खुलासा इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद पर लिखी गई एक किताब में हुआ है.

इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलीजेंस एंड स्पेशल ऑपरेशन यानी मोसाद इजरायल की नेशनल इंटेलीजेंस एजेंसी. इसका हैडक्वार्टर इजराइल के तेल अवीब शहर में है. मोसाद का गठन 13 दिसंबर 1949 को सेंट्रल इंस्टीट्यूशन फॉर को-ऑर्डिनेशन के नाम से हुआ.

दुनिया की इस सबसे घातक एजेंसी को बनाने का प्रस्ताव रियुवैन शिलोह द्वारा इजराइली प्रधानमंत्री डेविड बैन गुरैना के कार्यकाल में दिया गया था. उन्हें ही मोसाद का पहला डायरेक्टर भी बनाया गया.

मोसाद का मुख्य उद्येश्य आतंकवाद के खिलाफ लड़ना. खुफिया जानकारी एकत्रित करना और राजनीतिक हत्याओं को अंजाम देना है. मोसाद सीधे प्रधानमंत्री को सीधे रिपोर्ट करता है.

आजकल इजराइल की खुफियां एजेंसी मोसाद भारतीय पुलिस और खुफियों ब्यूरों को आतंकवाद से लड़ने का प्रशिक्षण दे रही है.

इसके लिए समय समय पर भारत के अधिकारी न केवल इजराइल प्रशिक्षण लेने जाते हैं बल्कि इजराइल अपने अधिकारियों को इस काम के लिए भारत भी भेजता है.

Vivek Tyagi

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