इस्लाम एक धर्म है, रहन-सहन का एक अंदाज़ है, लोगों को करीब लाने का एक तरीका है!
इस्लाम ये सबकुछ है लेकिन इस्लाम का मतलब आतंकवाद बिलकुल नहीं है!
हाँ कुछ लोग आपको ज़रूर मिलेंगे जो यह बात चिल्ला-चिल्ला कर कहेंगे कि इस्लाम एक कट्टरवादी धर्म है और तुरंत इस्लाम की तुलना आतंकवाद से करना शुरू कर देंगे, लेकिन ऐसे लोग झगडा फैलाने से ज़्यादा और कुछ नहीं कर रहे हैं!
कुछ लोग जो खुदको मुस्लिम कहते हैं लेकिन हरकतों के आधार पर देखा जाए तो उनसे नीच मनुष्य आपको सारे के सारे ब्रम्हांड में कहीं नहीं मिलेंगे. जैसे की अबू बकर अल-बघदादी, एक था ओसामा बिन-लादेन, एक है हफीज मुहम्मद सईद, वगैरह वगैरह…
मैं कहता हूँ कि इन लोगों को खुद को मुस्लिम कहने का हक़ बिलकुल नहीं है!
भारत जैसे देश में हर मज़हब के लोग मिल-जुलकर रहते हैं. फिर चाहे एक मुसलमान दिवाली में पटाखे जला रहा हो या फिर एक हिंदू रोज़ा रख रहा हो!
जो लोग कहते हैं कि इस्लाम आतंकवाद को फैला रहा है, उनसे मेरा एक सवाल है!
क्या दुनिया भर के 1.57 अरब मुसलमान आतंकवादी हैं? और किस आधार पर?
इस्लाम के खिलाफ आग भड़काने का काम केवल अग्रवादियों का काम है! कुछ निकम्मे अग्रवादियों की वजह से सारी की सारी कौम का नाम खराब करना सरासर गलत है!
जैसे कि ISIS सरगना अबू बकर अल-बघदादी ने कहा है कि इस्लाम का कर्तव्य है युद्ध करना, तो क्या वाकई में इस्लाम ऐसा है?
जी नहीं!
खुद ही के धर्म की ऐसी नेगटिव पब्लिसिटी करना कोई इनसे सीखे!
इन्हें लगता है कि ये लोग इस्लाम का सिर गर्व से ऊंचा कर रहे हैं! लेकिन क्या ऐसा वाकई में हो रहा है?
जब क़ुरान लिखी जा रही थी तो क्या वह इसलिए लिखी जा रही थी कि आगे चलकर आंतकवाद पैदा होना चाहिए?
जी नहीं! क़ुरान हमें सिर्फ अल्लाह यानी भगवान् से प्यार करना सिखाती है और लोगों की मदद करना सिखाती है! सिर्फ क़ुरान ही नहीं दुनिया का हर धर्मग्रन्थ हमें प्यार करना और मदद करने जैसी सकारात्मक चीज़ें ही सिखाता है!
केवल कुछ लोगों अग्रवादी सोच के ताने-बाने के कारण किसी धर्म के प्रति अपना नज़रिया बदलना एक तरह का आतंकवाद ही है!
पहले किसी चीज़ को अच्छी तरह समझो फिर उस चीज़ पर जो टिपण्णी करना चाहते हो करो!
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो दुनिया भर के लोगों को प्यार और अदब के साथ रहना सिखाता है और इसलिए यह संसार का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है!
कभी-कभी ऐसा लगता है की काश धर्म होते ही ना!
दुनिया में मार-काट, गुस्सा, आतंकवाद बिलकुल ख़त्म हो जाता! लेकिन ऐसा सोचना हार मानना कहलाएगा! यह हमारा कर्तव्य है कि हम ISIS और लश्कर-ए-तैबा जैसे आतंकी संगठन के कहलावे में ना आएं और इस्लाम के प्रति अपना नज़रिया बदलें और मिलजुलकर रहें!
और मुझे पूरा यकीन है कि इस देश के हिन्दुओं का साथ मुसलामानों ने हमेशा दिया है और मुसलामानों का साथ हिन्दुओं ने हमेशा दिया है!
तो फिर एक दूसरे के धर्म पर इतने झगडे क्यों?
एक बार अपने-अपने धर्म को बगल में रखकर मानवता के आधार पर एक-दूसरे को देखिये, आपको कोई फर्क दिखाई नहीं देगा!