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क्या वाकई में शंकर भगवान है या फिर हमने बनाया?

जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो हमारे मन में एक ऐसी तस्वीर बनती हैं जो सर्व शक्तिमान है.

समस्त संसार उससे ही है और वह जब चाहे उसे संवार ले या बिगाड़ दे उस पर निर्भर करता है, लेकिन अलग अलग लोगों के लिए यह तस्वीर अलग होती है. यह किसी भी एक व्यक्ति का हो सकने वाला सर्वाधिक बहुआयामी व्याखान है.

शिव को दुनिया का सर्वोत्कृष्ट तपस्वी या आत्मसंयमी कहा जाता है. वह सजगता की साक्षात मूरत हैं, लेकिन साथ ही मदमस्त व्यक्ति भी हैं. एक तरफ तो उन्हें सुंदरता की मूर्ति कहा जाता है तो दूसरी ओर उनका औघड़ व डरावना रूप भी है. शिव एक ऐसे शख्स हैं, जिनके न तो माता-पिता हैं, न कोई बचपन और न ही बुढ़ापा. उन्होंने अपना निर्माण स्वयं किया है.

वह सिर्फ ‘शिव’ आपको इस शब्द की ताकत पता होनी चाहिए, यह सब सोचते हुए अब आप अपने तार्किक दिमाग में मत खो जाइए.

कई बार यह बातें बेवजह लगती हैं, यह तो उन मानवीय सीमाओं से परे जाने का एक रास्ता है, जिसमें इंसान अकसर फंसा रह जाता है. जीवन की बहुत गहन समझ के साथ हम उस ध्वनि या शब्द तक पहुंचे हैं, जिसे हम ‘शिव’ कहते हैं. यदि आपमें किसी चीज को ग्रहण करने की अच्छी क्षमता है, तो सिर्फ एक उच्चारण आपके भीतर बहुत शिव में ‘शि’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है. भारतीय जीवन शैली में, हमने हमेशा से स्त्री गुण को शक्ति के रूप में देखा है.

मजेदार बात यह है कि अंग्रेजी में भी स्त्री के लिए ‘शी’(she) शब्द का ही इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यदि आप सिर्फ “शि” का बहुत अधिक जाप करेंगे, तो वह आपको असंतुलित कर देगा, इसलिए इस मंत्र को मंद करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उसमें “व” जोड़ा गया. “व” “वाम” से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता.

‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा ‘शिव’ शब्द का वास्तविक अर्थ ही है- जो नही है, ‘जो नहीं है’ से आशय है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है. यहाँ पर जिसका अस्तित्व ही नहीं है का आशय है रिक्तता, शून्यता.

आकाशगंगाएं तो महज एक छोटी सी जगह हैं.

सृष्टि का असल सार तत्व तो रिक्तता या कुछ न होने में है, इसी रिक्तता या कुछ न होना के गर्भ से ही तो सृष्टि का जन्म होता है. इस ब्रम्हांड के 99 फीसदी हिस्से में यही रिक्तता छाई हुई है, जिसे हम शिव के नाम से जानते हैं. शिव का वर्णन हमेशा से त्रियम्बक के रूप में किया जाता रहा है, जिसकी तीन आँखें हैं. तीसरी आँख वह आँख है, जिससे दर्शन होता है. आपकी दो आँखें इन्द्रियां हैं, ये मन को सभी तरह की अनर्गल चीजें पहुँचाती हैं, क्योंकि जो आप देखते हैं वह सत्य नहीं है.

ये दो आँखें सत्य को नहीं देख पातीं हैं, इसलिए एक तीसरी आँख, एक गहरी भेदन शक्ति वाली आंख को खोलना होगा. शिव की तीसारी आंख इन्द्रियों से परे है जो जीवन के असली स्वरूप को देखती है. जीवन को वैसे देखती है जैसा कि यह है.

दरअसल, इस देश में आध्यात्मिक विकास और मानवीय चेतना को आकार देने का काम सबसे ज़्यादा एक ही शख्सियत के कारण है और वह व्यक्ति कोई और नहीं वह “शिव” हैं.

आदि योगी शिव ने ही इस संभावना को जन्म दिया कि मानव जाति अपने मौजूदा अस्तित्व की सीमाओं से भी आगे जा सकती है.

तो क्या शंकर भगवान को हमने अपनी कल्पना से इतना वृहद्, इतना शक्तिशाली बना दिया या शिव जैसा सचमुच कोई है जो हमारी सोच से भी कही अधिक महान है जो इस संसार का संरक्षक हैं?

स्वयं विचार करे.

Sagar Shri Gupta

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