आकाशगंगाएं तो महज एक छोटी सी जगह हैं.
सृष्टि का असल सार तत्व तो रिक्तता या कुछ न होने में है, इसी रिक्तता या कुछ न होना के गर्भ से ही तो सृष्टि का जन्म होता है. इस ब्रम्हांड के 99 फीसदी हिस्से में यही रिक्तता छाई हुई है, जिसे हम शिव के नाम से जानते हैं. शिव का वर्णन हमेशा से त्रियम्बक के रूप में किया जाता रहा है, जिसकी तीन आँखें हैं. तीसरी आँख वह आँख है, जिससे दर्शन होता है. आपकी दो आँखें इन्द्रियां हैं, ये मन को सभी तरह की अनर्गल चीजें पहुँचाती हैं, क्योंकि जो आप देखते हैं वह सत्य नहीं है.
ये दो आँखें सत्य को नहीं देख पातीं हैं, इसलिए एक तीसरी आँख, एक गहरी भेदन शक्ति वाली आंख को खोलना होगा. शिव की तीसारी आंख इन्द्रियों से परे है जो जीवन के असली स्वरूप को देखती है. जीवन को वैसे देखती है जैसा कि यह है.