एक वक्त ऐसा था जब महिलाओं के लिए बड़े-बड़े युद्ध हो जाते थे. महिला की इज्ज़त और आबरू जाने का मतलब पुरुष अपना और अपने समाज का अपमान समझता था. माता सीता को सही और पूरे सम्मान के साथ अयोध्या वापस लाने के लिए इतना बड़ा युद्ध लड़ा गया, द्रौपदी को अपशब्द बोलने पर पांडवों ने कौरवों का नाश कर दिया. उसी तरह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के शुभ दिन पर महिलाओं के सम्मान में सोशल मीडिया पर कई महापुरुषों ने कवितायेँ लिखीं. नारी शक्ति की बधाई में सोशल मीडिया पर नदियाँ बह रही थी. ट्विटर पर दिन भर ट्रेंड में हैप्पी विमिंस डे का दबदबा रहा. राज्य मंत्री से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक ने महिला दिवस के शुभकामनाओं की झड़ी लगा दी. यह सब देखने के बाद ऐसा लगा कि कौन कहता है दुनिया में महिलाओं का सम्मान कम हो गया है, ये तो रामराज्य लौट आया है. फिर एक बार महिलाओं के लिए पुरुष उठ खड़ा हुआ है. लेकिन फिर मन नहीं मान रहा था तो मैंने डिजिटल भारत के मोबाइल को उठाकर रिकॉर्ड को देखना ही सही समझा.
2016 में राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा दी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हर दिन 106 महिलाओं का बलात्कार किया जाता है और हर 10 में से 4 महिलाएं 18 या 18 वर्ष से कम की होती हैं यानी की नाबालिग होती हैं. लगभग 94% मामलों में भाई बाप या बेटा शामिल होता है. उसी रिपोर्ट के मुताबिक़ चार में से एक केस में ही गुनहगार को सजा मिल पाती है. हलांकि, कुछ वर्ष पहले तक महिलाएं समाज के डर के कारण अपनी आवाज़ नहीं उठा पाती थी लेकिन आज के दौर में माहौल कुछ और है, वो आगे आकर पुलिस के समक्ष अपनी आपबीती को रखती हैं.
जिस तरह से 8 मार्च के दिन सभी के अन्दर महिलाओं के लिए सम्मान जाग उठता है अगर उसी तरह पूरे वर्ष इसी तरह सम्मान दिया जाए, तो अपराध की घटनाएं कम हो सकती हैं. भाई बाप बेटा या कोई भी अपना हो अगर वह किसी प्रकार की घिनौनी हरकत किसी महिला के संग गलत रूप से पेश आता है तो इसकी शिकायत तुरंत पुलिस में की जानी चाहिए. सोशल मीडिया पर लम्बे-लम्बे कसीदे लिखने से जुर्म कम नहीं किया जा सकता है. हर पुरुष को अपने निगाहों में बदलाव करने की जरुरत है. हर मां-बाप अपनी बेटी को सुधारने से पहले बेटे की नज़र पर ध्यान रखें कि कहीं मेरा बेटा गलत रास्ते पर तो नहीं चल पड़ा है. हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपने आस-पास कोई अप्रिय घटना देखता है तो उसकी रिपोर्ट दर्ज कराए.
महिला दिवस सही रूप से उसी दिन बेहतर सिद्ध होगा जिस दिन हर महिला बिना डर के घर से निकल सकेगी. पुरुष समाज उस दिन लज्जा से दूर हो जाएगा जिस दिन कोई परिवार अपनी बेटी को बिना रोके घर से बाहर निकलने की अनुमति दे देगा. समाज को सुधारने के लिए बस अपने आस-पास की घटनाओं पर ध्यान रखने की आवश्यकता है और इसकी सूचना आधिकारिक रूप से दर्ज कराकर अपनी जिम्मेदारी को निभाया जा सकता है.
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