इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग – भारत की अर्थवस्था में पिछले एक साल में काफी बदलावाए है । जिसकी सबसे बङी वजह रहा पिछले साल 8 नंवबर को हुई नोटबंदी और 1 जुलाई 2017 को लागू हुई जीएसटी । नोटबंदी और जीएसटीके चलते आर्थिक बाजार काफी गिरा ।
वही भाजपा सरकार के 2 करोङ लोगो को रोजगार देने की डात भी खोखली निकली। क्योंकि इन तीन साल सालों भेजा न तो भारत भेजा रोजगार की स्थितियां बढी बल्कि आईटी सेक्टर नौकरियां ओर कम हो गई जिसके चलते कई लोगों को अपनी अच्छी खासी नौकरी से हाथ धोना पङा ।
अभी कछ वक्त इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग करने वाली संस्था मूडी ने भारत की रैंकिंग में बढोतरी की । वही अब इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग संस्था एस एडं पी ने भी भारत को बीबीबी नर बरकार रखा है । और इस संस्था का ये भी कहना है कि आने वाले वक्त में भारत की स्थिति मजबूत होगी । ये रेंटिग्स तो भारत को खुश करने वाली है । लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या रेटिग्स सुधरने हे रोजगार भी मिलेगा । क्या नौकरियों के असर बढेगे ।
क्योंकि भारत की 70 से 80 फीसदी जनता शेयर मार्केट टल पैसा लगता ही नही । और जो मिडिल क्लास परिवार निवेश करते भी है वो थोङा बहुत निवेश करते। फिर शेयर बाजार के मजबूत होने से उनकी स्थिति में बदलाव कैसे आएगा । जब शेयर मार्कट की बङी -बङी भारतीय कंपनियाँ अपने देश में निवेश करने की बजाय अमेरिका जैसे दंसरे बङे देशों में अपने लाभ को देखकर निवेश कर रही है वहां के लोगो के लिए नौकरियाँ उतपन्न कर ही है । हालांकि ऐसा नही है भारत में निवेश नही हो रहा । विदेशी कंपनियां भारत में निवेश कर रही है शेयर बाजार की मजबूती इसका परमाण है लेकिन ये निवेश नौकरियों में तब्दील नही हो पा रहा है ।
आपको बता दें मूडीज ने भारत की रैंकिंग को बदलते हुए बीबीबी3 से बीबीबी2 कर दिया था। और इसका कारण संस्था ने भाजपा के जीएसटी , नोटबंदी , नाॅन परफॉर्मेंस लोन और आधार कार्ड जैसे अहम फैसलो को बताया । और दुनियाभर के कई बङे अर्थशास्त्री भारत की अर्थवस्था पर मिली जुली राय दे चुके हैं ।कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की आर्थस्थिति आने वाले वक्त में काफी अच्छी होगी ।लेकिन जीएसटी और नोटबंदी के फैसले भारत को लोंग टर्म अच्छे रिजल्ट दे भी दे । पर सवाल तो आज का है ।जब कोई अपना आज ही नही बचा पाएगा तो भविष्य कैसा ।
और अगर बात की जाए क्रेडिट रेटिंग्स की तो इन प्राइवेट संस्थाओं के जरिए देशों की अर्थवस्था का आंकलन करने की ।तो कई बार ऐसा होता है कि ये आकंलन रिजल्ट के आगे फीके पङ जाते है ।2008 में दुनियाभर के शेयर बाजार में जो संकट आया था जिस वजह से सारे शेयर मार्केट ठप पङ गए थे । उसका अंदाजा किसी भी अर्थशास्त्री नही लगाया था । हालांकि अच्छी रेटिंग्स किसी भी देश की आर्थिक स्थिति के अच्छे सकेंत होती है लेकिन आपको ये जाना भी जरूरक है कि रेटिंग्स किन चीजों को ध्यान में रखकर की जाती है क्योंकि एक देश की आर्थिक स्थिति दूसरे सा बिल्कुल अलग है । जब संस्थाएं रेटिंग्स के लिए सभी को एक ही तराजू में तोलती है।
यही कारण है कि हमें जमीनी हकीकत से भी तो वाकिफ होना होगा । अगर ये इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग सच मे हर तरफ से भारत की मजबूत बनती आर्थिक स्थिति का परमाण है तो फिर शायद हमें चिंता करने की जरूरत नहीं । फिर तो धीरे- धीरे नौकरियों के असर भी शायद बने लगे ।पर क्या ऐसा होगा ।