आज से करीब 18 साल पहले पाकिस्तान ने जमकर प्रयास किया था कि वह भारत को इंटरनैशनल कोर्ट में लेकर उसे दुनिया के सामने एक हमलावर देश के रूप में प्रस्तुत करे.
लेकिन उस वक्त भी उसके अरमानों पर पानी फिर गया था.
पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेरने वाले थे पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी. आपको बता दें कि सोराबजी वह शख्स हैं, जिन्होंने साल्वे से पहले भारत को इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में कामयाबी दिलाई थी.
दरअसल, 21 सितंबर 1999 को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आईसीजे में याचिका लगाई थी. पाक ने याचिका में आरोप लगाया था कि भारत ने उसकी नेवी के टोही विमान को उस वक्त मार गिराया जिस वक्त वह अपनी सीमा में था. लिहाजा, भारत को उसकी नेवी के टोही विमान को मार गिराने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए.
गौरतलब है कि यह बात उस समय है कि जब कारगिल की जंग खत्म ही हुई थी और भारत ने पाकिस्तान को एक हमलावर देश के रूप में दुनिया भर में प्रचारित कर दिया था.
कारगिल जंग के कुछ दिन बाद ही यानी 10 अगस्त 1999 को भारतीय वायुसेना ने कच्छ के रण में एक पाकिस्तानी विमान ब्रेके ऐटलैंटिक को मार गिराया था. भारत ने दलील दी थी कि विमान ने भारतीय वायुक्षेत्र में अनाधिकृत ढंग से प्रवेश किया और बार-बार चेतावनी देने के बावजूद वापस नहीं गया.
इसको लेकर पाकिस्तान इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में पहुंचा. जिस प्रकार इस बार जहां हरीश साल्वे ने आईसीजे को इस बात पर मनाया कि भारत का मामला उसके न्याय क्षेत्र में आता है, ठीक उसके उलट उस वक्त सोली सोराबजी ने आईसीजे को इस बात पर राजी किया था कि पाक का मामला इंटरनैशनल कोर्ट के दायरे में नहीं आता.
लेकिन 21 जून 2000 को सुनाए गए फैसले में आईसीजे ने पाकिस्तान की याचिका खारिज कर दी. याचिका खारिज करने के पीछे कोर्ट ने दलील दी कि यह मामला दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों के अंतर्गत आता है और उसके जरिए ही इस मामले का निपटारा किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने 14-2 के अंतर से भारत के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने दोनों पक्षों को अपने विवाद शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की हिदायत भी दी थी.