जब पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी ने भारतीय जनरल जगजीत सिंह के सामने समर्पण पत्र पर साइन किए तो उनकी आंखों में आंसू आ गए थे.
उस वक्त लोगों ने सोचा था कि वे नियाजी की आंखों में जो आसू हैं वो शायद पाकिस्तानी सेना की हार के कारण है.
गौरतलब है कि 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में भारत ने पाकिस्तान की 90 हजार की फौज को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था.
लेकिन बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में नियाजी की आंखों में भारत से हार के आंसू नहीं थे. लोगों को ये नहीं पता है. नियाजी उस वक्त इसलिए रोए थे कि जो शख्स उनकों समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कह रहा है वह एक समय उनका बैचमेट रहा था.
दरअसल, नियाजी और जगजीत सिंह अरोड़ा ने जब सेना में कमीशन लिया था तो उस वक्त भारत का बंटवारा नहीं हुआ था और दोनों एक ही सेना में अधिकारी थे.
यही नहीं द्वितीय विश्व युद्ध में दोनों ने अंग्रेजों के नेतृत्व में साथ युद्ध में भाग भी लिया था.
जनरल नियाजी ने कभी नहीं सोचा था कि उनके सैन्य जीवन में एक दिन ऐसा भी आएगा जब उन्हें उसी सेना और उसके अधिकारी के सामने आत्मसमर्पण भी करना पड़ेगा.
जिस वक्त आत्मसमर्पण का दस्तावेज मेज पर पड़ा था. भारतीय सेना के अधिकारी जनरल ने नियाजी से पूछा कि क्या आप इस दस्तावेज को कुबूल करते हैं, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. तीन बार उनसे यही सवाल पूछा. फिर भी वह कुछ नहीं बोले.
तब जनरल ने वह दस्तावेज अपने हाथ में उठाया और उसे ऊपर उठाते हुए नियाजी से बोले इसे आपकी रजामंदी के तौर पर लिया जा रहा है और जब नियाजी के सामने आत्मसमर्पण का दस्तावेज पढ़ा जा रहा था, तो उस वक्त नियाजी के गालों पर आंसू लुढ़क आए थे.
जब नियाजी से कहा गया कि समर्पण के दौरान आपको अपनी तलवार सौंपनी पड़ेगी. इस पर नियाजी ने कहा कि मेरे पास कोई तलवार नहीं है, लेकिन मैं अपना रिवॉल्वर सौंप दूंगा.
बहरहाल, नियाजी ने अपना एपलेट उतारा और उससे अपना रिवॉल्वर निकालकर अरोड़ा को सौंप दिया. एक बार फिर उनके गालों पर आंसू बह आए थे.
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