क्या इंदिरा गांधी चाहती थी कि पाकिस्तान कभी परमाणु शक्ति ना बने
इसके लिए वो पाकिस्तान के संभावित परमाणु ठिकानों पर हमला करने से भी नहीं चुकती.
जी हाँ ये बात कोई कपोल कल्पना नहीं है बल्कि CIA द्वारा जारी की गयी एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट की माने तो ये बात सोलह आना सच है.
बात 1980 की है इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में आई और इस बार वो पहले से ज्यादा आक्रमक थी खासकर देश की सुरक्षा के मुद्दे को लेकर.
भारत ने 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया को चौंका दिया था.
उसके बाद इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. उस दौरान सुरक्षा एजेंसियों को खबर मिली की पाकिस्तान भी परमाणु शक्ति बनने की कगार पर है.
पाकिस्तान का परमाणु शक्ति बन जाना हमारे देश के लिए तब भी खतरा था और आज भी है. उस समय इसी खतरे को भांपते हुए इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान पर हमला कर उन क्षेत्रों को लक्ष्य बनाने का सोचा जो परमाणु हथियार संभावित क्षेत्र थे.
रिपोर्ट और सूत्रों की माने तो इंदिरा गांधी अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को F-16 यान देने पर भी खुश नहीं थी. 8 सितम्बर 1981 की रिपोर्ट के हिसाब से पाकिस्तान की बढ़ती परमाणु सक्रियता भारत के लिए चिंता का विषय बन गयी थी और भारत को ये सुचना भी मिली कि पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला प्लूटोनियम और युरेनियम हासिल करने की जुगत में है.
कुछ सूत्रों के मुताबिक 1984 में भारत और इस्राइल मिलकर पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण स्थल कहुता पर हवाई हमला करने वाले थे. 1981 में इस्राइल ने इराक पर इसी प्रकार का हमला सफलतापूर्वक किया था.
भारत और इस्राइल दोनों को डर था कि पाकिस्तान अगर परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन गया तो ये ना सिर्फ दक्षिण पूर्व एशिया अपितु पूरी दुनिया के लिए एक खतरा होगा. इसका सबसे प्रमुख कारण था पाकिस्तान की राजनैतिक अस्थिरता. पाकिस्तान में तानाशाही, तख्ता पलट या सैन्य शासन लागू होना कोई नहीं बात नहीं है ऐसे में गलत हाथों में परमाणु हथियार पड़ने के परिणाम बहुत भयंकर हो सकते थे .
इसके अलावा एक पुस्तक के अनुसार भारत और इस्राइल को पाकिस्तान के परमाणु शक्ति संपन्न होने से जिस खतरे की आशंका थी वो ये था कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार आने के बाद अन्य मुस्लिम देश जैसे लीबिया, सीरिया, ईरान को भी पाकिस्तान परमाणु हथियार तकनीक दे सकता है.
उस समय जो सोचा था वही हुआ पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक 30 साल तक लगातार कई देशों को परमाणु हथियार सम्बन्धी जानकारी बेचते रहे. अंदेशा ये भी है कि कई इस्लामिक देश चोरी छुपे परमाणु शक्ति संपन्न बन चुके है.
पुस्तक के मुताबिक ये भी कहा गया है कि पाकिस्तान के परमाणु परिक्षण क्षेत्रों पर हवाई हमले में इस्राइल भारत के साथ सक्रिय रूप से भाग लेने वाला था और इसके लिए बाकायदा इंदिरा गांधी ने एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर भी किये थे.
पुस्तक में ये भी कहा गया है कि ये हमला नहीं हो सका क्योंकि अमेरिका ने बीच में दखल देकर दोनों देशों पर दबाव डालकर रोक दिया था.
उल्लेखनीय है कि शीत युद्ध के दौरान भारत और अमेरिका के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे और भारत का झुकाव अमेरिका से ज्यादा रूस की तरफ था वहीँ दूसरी और पाकिस्तान हमेशा से ही अमेरिका की तामिरदारी करता था. इसीलिए शायद इस खुफिया मिशन के बारे में CIA ने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक जिया उल हक को पहले ही बता दिया था.
ज़रा सोचिये अगर 80 के दशक में वो हमला हो जाता तो आज शायद पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ नहीं होता और बात बात पर भारत को घुटनों पर नहीं ला पाता. पर खेद की बात है कि ऐसा नहीं हुआ और पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण क्षेत्रों को मिट्टी में मिला देने का सपना, सपना ही रह गया.
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