भारतीय नारी – हाल ही में मेरी प्रिय सखी की माताश्री को एक शुभचिंतक (रिश्तेदार) का फोन आया। जिन्होंने आंटी के फोन उठाते ही मेरी सखी के लिए चिंता जाहिर करना शुरू कर दिया। विषय था मेरी सखी द्वारा उसके अपने फेसबुक अकाउंट पर डाली गई उसकी प्रोफाइल फोटो।
इस प्रोफाइल फोटो में उसके शरीर का कुछ हिस्सा (कमर का कुछ हिस्सा लोवेस्ट जींस और छोटे टॉप के बीच से झांकता हुआ) दिख रहा था।
शुभचिंतक ने चिंता जाहिर की कि “आप इन सब चीजों पर ध्यान ही नहीं देतीं, पूरा का पूरा हिस्सा दिख रहा है। ऐसे होते हैं भारतीय नारी और संस्कारी लड़की के लक्षण?
ऐसा ही चलता रहा तो हमारे समाज को कोई भी परिवार आपकी लड़की को अपने घर की बहू नहीं बनाना चाहेगा।”
इसके बाद मेरी सखी की माता श्री ने जवाब दिया जो उनके शुभचिंतक के लिए पत्थर का जवाब ईंट से के समान था। आंटी का जवाब था कि “बेटी हमारी, उसकी आजादी, उसका हक, आपको चिंता करने की जरूरत नहीं। रही संस्कारों की बात तो वो बड़े-छोटों की इज्जत करना खूब अच्छे तरीके से जानती है और उसके सही-गलत में फैसले लेने का तरीका उसके संस्कारों को कायम रखने के लिए काफी है।”
इसी के साथ लास्ट मैं दिए गए वाक्य का जवाब तो काबिलेतारीफ था।
दरअसल आंटी ने बहू बनाने वाली बात का जवाब देते हुए कहा था कि, “रही बहू बनाने की बात तो मैं खुद अपनी बेटी की ऐसे घर में शादी नहीं कराऊंगी जहां के परिवार वाले ऐसी सोच रखते हैं। इससे तो अच्छा होगा हमारी बेटी, हमारी बेटी ही बनकर हमेशा के लिए हमारे साथ रहे।”
जब मेरी सखी ने मुझे ये बात बताई तो मुझे उसकी माताश्री को जोर की झप्पी देने का मन किया और साथ ही कई सारे नए सवाल भी मन में कुलबुलाए। ये सवाल ना कोई नए थे और ना कोई नए मुद्दों से जुड़े थे। ये सवाल तो बरसों से जस के तस बने हुए समाज में घूम रहे हैं। ना कोई जवाब देने वाला है ना कोई सुधारने वाला है। हां, लेकिन ये सवालों को दोहराओ तो लोग खीझ कर ये जरूर कह देते हैं कि फिर से शुरू हो गया “महिला मुक्ति मोर्चा।”
चलो जब “महिला मुक्ति मोर्चा” शुरू कर ही दिया है तो एक बार सवालों को भी मैं दोहरा लूं। सवाल ये हैं कि –
हम हमेशा विकास, समृद्धि, बेहतर भविष्य, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे मुहिमों के बारे में ही बात करते हैं, लेकिन फिर भी आज तक लड़कियों को क्यों ऐसी ओछी सोच का सामना करना पड़ता है?
अगर साड़ी पहन कर कमर दिखे तो हम भारतीय नारी, लेकिन जींस पहनकर कमर दिखे तो हम क्यों बन जाती हैं बेशर्म नारी?
अगर समाज के ही किसी लड़के से प्रेम कर उससे शादी के पहले ही शादी के सारे रिश्ते निभा रही है तो कुछ नहीं। लेकिन जहां लड़का, समाज या जाति के बाहर का हुआ तो लड़की ने अपनी सीमाएं लांघ दी के नारे क्यों लगने शुरू हो जाते हैं? दोनों में ऐसा क्या अंतर है कि पहले तरह का रिश्ता समाज में कोई शिकन पैदा नहीं करता जबकि दूसरे तरह का रिश्ता “लिव जिहाद” के साथ जोड़ कर देखा जाने लगता है?
अगर लड़का शराब पिए तो उसे समझाया जाता है कि शराब हानिकारक होती है। लेकिन भारतीय नारी शराब पीती है तो त्राहिमाम शुरू हो जाता है। बातें बननी शुरू हो जाती हैं कि लड़की हाथ से निकल गई है। क्यों शराब केवल लड़की के चरित्र को ही परिभाषित करता है? क्यों उसके स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुंचाता?
और क्यों हर वो लड़की भारतीय नारी घमंडी के नाम से पुकारी जाती है जो पढ़-लिखकर अपने सारे फैसले खुद लेती है?
अगर लड़की की शादी सफल नहीं रही तो सारी गलती लड़की की रहती है। लड़के से कोई सवाल नहीं किए जाते। उल्टा लड़का फेसबुक में पोस्ट कर अपना दुखड़ा रोता है और हमारे सो-कॉल्ड पढ़े-लिखे संगी-साथी मजे ले-लेकर लड़के को सहानुभूति देते हुए लड़की को गाली देते हैं। आखिर क्यों लोगों को समझ नहीं आता कि घर तोड़ने का सबसे ज्यादा नुकसान लड़कियों को ही होता है तो वो ऐसा क्यों करेगी? वैसे भी ताली एक हाथ से नहीं बजती तो घर तोड़ने का दोष केवल लड़की को ही क्यों दिया जाता है? वैसे भी सफल रिश्ता लड़का-लड़की दोनों पर निर्भर करता है। तो फिर एक तरफ से साझेदारी की उम्मीद क्यों?
हां… मैं जानती हूं कि इनमें से कोई भी सवाल नए नहीं है। सभी के सभी दोहराए ही गए हैं। पर सोचने वाली बात ये है कि ये सारे सवाल दोहराए ही क्यों जाते हैं? क्यों नहीं कोई और सवाल खड़े होते हैं?
शायद इसलिए क्योंकि इनके जवाब अब तक दिए या खोजे गए नहीं है!! आप क्या कहते हैं इस भारतीय नारी के मुद्दे पर ?