भारत की सुंदरता इसकी संस्कृति और यहा की महिलाओं में छिपी हुई है.
इस में कोई दो राय नहीं है की अपने देश की संस्कृति आज भी लाजवाब है. भले कुछ कट्टर्पंतीयों के वजह से संस्कृति और धर्म के नाम पर हड़कम मचते रहता है.
मगर सचाई यह भी है कि, जिस देश में स्त्री को देवी रूप मना जाता है उससे अमानवीय व्यवहार हो रहा है.
पता चलने पर ज्ञात होता है कि, यह व्यवहार उतेजन के वजह से हुआ. जिस में स्त्री को ही दोषी मना जाता है. क्यों तो उस स्त्री ने ढंग के कपड़े नहीं पहन रखे थे.
क्या स्त्री वर्ग ने केवल घर में बैठना चाहिए या फिर साड़ी में घूमना चाहिए. जिससे उनके साथ कोई दूरव्यवहार ना हो जाए.
वही अधिक तर पुरषों को अपनी सहेली/ प्रेमिका का वेस्टर्न कपड़े पहनना जितना अच्छा लगता है, उतना ही बीवी ने पहना तो खलता है.
महिलाओं को क्या पहनना पसंद है ?
देखा जाए तो भारत की महिला वर्ग को देशी से लेकर विदेशी कपड़े पहनना पसंद है.
जो महिला वेस्टर्न कपड़े पहनती है, उसे साडी से भी लगाव रहता है. दरसल महिलाओं को खूबसूरत दिखना पसंद है. उन्हें अपने जो चीज़ पहने के बाद अच्छा लगता है, ऐसे कपड़े वो पहना पसंद करती है.
ज़माने के साथ वेश-भूषा बदल रही है.
पहले महिलाए साडी पहनकर कॉलेज और नौकरी पर जाती थी. अब सलवार कमीज़ के साथ जीन्स और मिनी स्कर्ट पहनती है.
महिलाओं को कहा पर क्या पहनना चाहिए?
महिलाओं के लिए विस्तार में कपड़ो की श्रेणी देखी जाती है.
गांव से ज्यादा शहरों की लड़कियां अधिक मोर्डन कपडे पहनती है क्योंकि शहर में लोगों को इसे पहनने की और देखने की आदत अधिक होती है.
जबकी गांव में सीमित फ़ैशनेबल कपडे होते है. जो कपडे उनको सहज बजेट में मिलते है, वही वो महिलांए पहनती है.
किंतु महिलाओं ने जगह देख कर अपने कपड़े पहनने चाहिए. शहर हो या गांव जिस जगह वो जा रही है, वहा के लोगों की मानसिकता का ख़याल रखते हुए कपड़े पहनने चाहिए. बहुत टाईट फिटिंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए जिससे शारीर के अंग विचित्र लगे.
स्लीवलेस हो या शोर्ट स्कर्ट अपने शरीर को देख कर ही कपड़े पहने. ख़याल रखे की कपडे कोई भी हो अगर वो अधिक टाईट और शोर्ट हो तो भीड भाड़ में सफ़र ना करे.
महिलाओं के वेस्टर्न कपड़ो पर क्यों अक्सर विवाद होता है?
भारत में दूसरों के नाम पर बिल फाड़ने का चलन कुछ नया नहीं है.
घर में अगर कुछ बात बिगड़ जाती है तो घरकी महिला पर आरोप लगाया जाता है.
वैसे ही छेड़छाड़ या रेप हो जाए तो, कुछ जाने बगेर महिला को दोषी करार माना जाता है.
महिला का चाल चलन, कपडे और व्यवहार पर सबसे पहले उंगली यही समाज उठता है.
गांव से कई पुरुष वर्ग रोजगार के चक्कर में शहर आके बस जाते है, उनको मोर्डन कपडे पहने वाली लड़कियां देखने की आदत नहीं होती है. तो क्या इस में उन लड़कियों का दोष है?
ऐसे में दोष कपड़ो का नहीं मानसिकता का है.
गांव में पुरे बदन को ढकी महिला भी पुरषों को आकर्षित इस लिए लगती है क्योंकि वह घर में दुबक कर नहीं बैठती.
क्या महिलाओं को वेस्टर्न कपडे नहीं पहनना चाहिए?
बेशक महिलाओं को जो चाहिए वो पहनना चाहिए.
यह बात तो साफ़ है की कपड़े तो वही पहनने चाहिए जिसमें आप खुद को आरामदेह समझ सको.
महिला कुदरत ने बनाया हुआ एक नायाब तोहफा है और उनको सुंदर रहने का पूरा अधिकार भी है. शायद यही एक वजह भी है बाज़ार में लडको के कपड़ों की विविधता गिनी चुनी होती है और लड़कियों की बहुतायत होती है.
महिलाओं को यह पता होना बेहद जरुरी है की कोई परिवर्तन एकाएक नहीं आता. अगर आगे बढना है तो समाज को अपना नज़रिया बदलने के लिए वक़्त देना भी अवश्यक है.
वरना महिलाओं के कपड़ो को लेकर हमेशा कोई न कोई विवादित बयान देता रहेगा.
साथ ही समाज को भी महिलाओं के त्याग, उनकी मेह्नंत और सुरक्षा का ख्याल रखना बेहत जरुरी है.
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