स्वच्छ भारत मुहीम को शुरू हुए एक साल से ज्यादा हो गया है, लेकिन नतीजे वैसे नहीं मिल रहे है जैसे मिलने चाहिए थे.
बहुत से लोग इस अभियान की आलोचना भी कर रहे है.
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए एक बात हमें समझनी होगी कि सर्कार सिर्फ एक शुरुआत कर सकती है. अभियान की सफलता या असफलता हमारे हाथ में है, आज हमारे देश में हालात ऐसे है कि सरकार का विरोध करने के लिए इस हद तक गिर सकते है कि देश की या अपनी सुविधा और अच्छे के लिए भी नहीं सोचते.
स्वच्छ भारत अभियान तभी सफल हो सकता है जब देश का एक एक नागरिक स्वच्छता के प्रति जागरूक हो जाए.
पूरे देश को स्वच्छ रखना कोई मुश्किल काम नहीं है यदि हम सब अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर काम सहयोग करे.
आइये आज आपको बताते है कि किस प्रकार हम सब एक दुसरे के सहयोग से अपने आस पास के इलाके को स्वच्छ बना सकते है.
आज हम आपको बताएँगे कि स्थानीय प्रशासन और गाँव वालों ने मिलकर किस प्रकार मेघालय के एक छोटे से गाँव को एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गाँव होने का सम्मान दिलाया है.
भारत के उत्तर पूर्वी राज्य मेघालय में मावल्यान्नॉंग नामक छोटा सा गाँव है.
आज जहाँ हमारे देश के बड़े छोटे शहरों और गांवों में प्रदुषण और गंदगी एक गंभीर समस्या बन गया है ऐसे में मावल्यान्नॉंग गांव को एशिया का सबसे स्वच्छ और सुंदर गाँव होने का सम्मान मिलना ना सिर्फ गर्व की बात है अपितु ये प्रेरणादायी भी है.
मेघालय का ये खूबसूरत गाँव एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव है.
इस गाँव को ये सम्मान दिलाने में इस गाँव के नागरिकों का सबसे बड़ा हाथ है. यहाँ के लोग सभी और सुशिक्षित है. यहाँ साक्षरता दर 100 % है और गाँव के सभी लोग अंग्रेजी में बात कर सकते है. ये गाँव पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत प्रसिद्द है. यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है.
जंगल, नदियाँ, पहाड़ और मनोरम घाटियाँ और इसके अलावा पूरी दुनिया में वृक्षों की जड़ों और शाखों से बने प्राकृतिक पुल भी केवल यहीं पाए जाते है. हर वर्ष बहुत से पर्यटक यहाँ घुमने के लिए आते है. इस गाँव में एक सुकून देने वाली शांति रहती है.
अक्सर ऐसा होता है जिस जगह पर्यटक आते है वहां गंदगी भी ज्यादा रहती हैलेकिन मावल्यान्नॉंग गांव में ऐसा नहीं है.
यहाँ के लोग इस गाँव को पूरी तरह स्वच्छ रखते है और यहाँ आने वाले पर्यटकों को भी गंदगी ना फ़ैलाने की हिदायत देते है.
गंदगी ना फैले इसके लिए इस गाँव के कोने कोने में लकड़ी से बने कचरापात्र होते है. लोग इनमे कचरा डालते है. इस कचरे का इस्तेमाल बाद में खाद के रूप में किया जाता है. जो कचरा खाद के रूप में काम ना लिया जा सके जैसे प्लास्टिक इत्यादि तो उसे नष्ट कर दिया जाता है.
ये गाँव सफाई के लिए किसी कर्मचारी की बाट नहीं जोहता, हर एक ग्रामीण अपने गाँव की सफाई के लिए जागरूक है. महिला, पुरुष या बच्चा जो कोई भी कहीं गंदगी देखता है तो उसकी सफाई में लग जाता है. सफाई के लिए कोई किसी निर्धारित समय का इंतज़ार नहीं करता. जब कचरा दिखे उसी समय उसे साफ़ कर दो.
देखा आपने कैसे एक छोटे से गाँव के लोगों ने अपनी समझबूझ और जज्बे से अपने गाँव को ना सिर्फ बीमारी मुक्त बनाया अपितु इस गाव को इतना स्वच्छ और सुंदर बनाया कि आज हर कोई इस गाँव को भगवान् का बागीचा कहते है.
अगर करना चाहे तो भारत का एक एक नागरिक मावल्यान्नॉंग गांव से प्रेरणा लेकर अपने देश को दुनिया का सबसे स्वच्छ देश बना सकते है.
लेकिन क्या करें हम लोग या तो सफाई का सारा जिम्मा प्रशासन पर छोड़ देते है या फिर सफाई को इतना छोटा काम समझते है कि बाहर का कचरा तो क्या घर का कचरा भी साफ़ नहीं करते.
अब आप ही बताइए ऐसे में कैसे सफल हो स्वच्छ भारत अभियान ?
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