एक जासूस की कहानी – लंबे समय से पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव पर लगे जासूसी के आरोपों को पाकिस्तान अब तक साबित नहीं कर पाया है। देश के दुश्मनों को मात देने के लिए अपनी जान को खतरे में डालकर जासूसी करना कोई आसान बात नहीं है।
आपने देखा होगा कि बालीवुड फिल्मों में पर्दे पर जासूसों को किस तरह खुफिया तरीके से रहते हुए दिखाया गया है लेकिन असल जिंदगी के एक सच्चे जासूस की कहानी आज हम आपको सुना रहे हैं।
आमतौर पर सुना जाता है कि रॉ एजेंट्स और उनके कारनामों के बारे में ज्यादा जानकारियां आम जनता के बीच नहीं दी जाती हैं लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जांबाज़ और शातिर जासूस की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपना पूरा जीवन ही देश को समर्पित कर दिया था। देश सेवा के चक्कर में इस जासूस की आखिरी सांसें तक पाकिस्तान की जेल में तडपते हुए निकली थी।
स्टेज आर्टिस्ट से बने अंडर कवर एजेंट
सन् 1952 में राजस्थान के श्रीगंगानागर जिले के एक पंजाबी परिवार में रविंद्र कौशिक का जन्म हुआ था। किशोरावस्था में रविंद्र को नाटक करने में और उनमें हिस्सा लेने में मज़ा आता था। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के कुछ अधिकारियों ने रविंद्र को मंच पर एक नाटक के दौरान देखा और उनकी एक्टिंग से प्रभावित हो गए।
उस समय रविंद्र कौशिक को राष्ट्रीय स्तर के नाटक कलाकार के रूप में जाना जाता था। दुश्मनों की हरकतों पर नज़र रखने वाली एक खुफिया एजेंसी की नज़रें रविंद्र पर पड़ीं, उस समय रविंद्र 23 साल के थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद रविंद्र ने रॉ ज्वाइन कर लिया और इस कदम के बाद उनका पूरा जीवन ही बदल गया।
रविंद्र को अंडर कवर एजेंट के रूप में दिल्ली में ट्रेनिंग दी गई। ट्रेनिंग के दौरान रविंद्र ने उर्दू और इस्लामिक शब्दों को लिखना और पहचानना सीखा। 1975 में पाकिस्तान भेजे जाने से पहले रविंद्र से जुड़े सभी दस्तावेजों और जानकारियों को एजेंसी द्वारा नष्ट कर दिया गया और उनके परिवार से जुड़ी जानकारी को भी छिपा दिया गया।
पाक पहुंचते ही रविंद्र कौशिक, नबी अहमद बन गए और कराची विश्वविद्यालय से वकालत की पढ़ाई करने लगे। यहां रविंद्र को जीवन में एक और अलग किरदार निभाने का मौका मिला।
इस्लाम कबूल कर किया निकाह
1979 से 1983 के बीच रविंद्र ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को पाक सेना से जुड़ी अहम जानकारियां दी जो देश के लिए काफी मददगार साबित हुईं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने रविंद्र को ब्लैक टाइगर का नाम दिया था और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उन्हें इसी नाम से पुकारती थीं।
उन्हें भारत का सबसे जांबाज़ और शातिर अंडर कवर एजेंट माना जाता है। उन्हें पाक सेना में तो जगह मिली ही बल्कि वो मेजर की रैंक तक भी पहुंचे। इस दौरान रविंद्र को इस्लाम कबूल करना पड़ा और उन्होंने एक अमानत नाम की लड़की से निकाह भी किया जिससे उन्हें एक बेटा भी हुआ।
जब भारत ने रविंद्र के पास एक और जासूस को रहने भेजा तब रविंद्र के सच से पर्दा उठा। उन्हें पाक इंटेलिजेंस एजेंसियों ने धर लिया। उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। मुल्तान की सेंट्रल जेल में उनका निधन हो गया।
ये है जासूस की कहानी – रविंद्र की कहानी को पढ़ने के बाद आपको भी भारत के देशभक्तों पर नाज़ होगा।