नए साल की शुरुआत में ही हमारे पडौसी देश ने अपनी नापाक हरकतों से माहौल को ख़राब कर दिया.
2 जनवरी को सुबह करीब 3:30 बजे पाकिस्तान के इस्लामिक आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने पठानकोट एयर बेस पर आत्मघाती हमला कर दिया.
अगर ये हमला सफल होता तो ना जाने कितनी मासूम जाने चली जाती, लेकिन हमारी सेना के जवानों ने ऐसा होने नहीं दिया.
उन्होंने आतंकियों से लोहा लेते हुए अपनी जान की भी परवाह नहीं कि और उन आतंकवादियों को मारकर इस हमले को असफल कर दिया.
दुःख की बात ये है कि आतंकियों को मारने में हमारे 7 जवान भी शहीद हो गए. आइये आपको मिलाते है भारत माता के उन सपूतों से जिन्होंने अपनी जान देकर देशवासियों की रक्षा की.
लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन
NSG के लेफिनेंट कर्नल निरंजन पठानकोट हमले के दौरान एक बम को निष्क्रिय करते हुए शहीद हुए.
निरंजन की उम्र केवल 35 साल की थी. निरंजन केरल में रहते थे. तीन वर्ष पहले ही उनको विवाह हुआ था. निरंजन के एक 2 साल की बेटी भी है. सूबेदार फ़तेह सिंह
51 वर्षीय फ़तेह सिंह निशानेबाजी में चैम्पियन थे. उनके नाम बहुत से राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय पुरूस्कार भी है.
फ़तेह सिंह ने कामनवेल्थ खेलों में निशानेबाजी में स्वर्ण और रजत पदक भी जीते थे.
उनके साथ काम करनेवाले उनको एक जिंदादिल इंसान की तरह याद करते है. फतेहसिंह ज़रुरतमंदों की मदद करने में कभी पीछे नहीं रहते थे. सूबेदार ने खेल के मैदान में अपना परचम लहराया और उसके बाद जंग के मैदान में भी अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया.
नायक गुरुसेवक सिंह
गुरुसेवक सिंह की बहादुरी का कोई सानी नहीं होगा. आतंकवादियों के हमले के बाद सबसे पहले उन्होंने जवाबी हमला किया. शरीर पर गोलियां लगने के बाद भी वो लगातार आंतकवादियों पर गोलियां बरसाते रहे. जब तक की आतंकवादियों का सफाया नहीं हुआ तब तक उन्होंने अपनी साँसे नहीं उखड़ने दी.
जब मेडिकल टीम आई तो भारत माता का ये लाल दुनिया छोड़ चुका था.
गुरुसेवक सिंह पढने में बहुत ही होशियार थे उन्होंने एक बार में ही एयर फाॅर्स की परीक्षा पास कर ली थी.
हवलदार कुलवंत सिंह
कुलवंत सिंह और कैप्टेन फ़तेह सिंह दोनों ही गुरुदासपुर से थे. जैसे ही एयरबेस पर हमला हुआ इन दोनों ने आतंकियों के खिलाफ मोर्चा संभाला था. अदम्य साहस के साथ लड़ते हुए ये दोनों बहादुर सैनिकों ने शहादत को गले लगा लिया.
हवलदार संजीवन सिंह राणा
51 वर्ष के संजीवन सिंह के पिता भी भारतीय सेना में रह चुके है. आतंकी हमले का सबसे पहले जवाब देने वाले हवलदार संजीवन ही थे. लड़ते लड़ते उनके सीने में पांच गोलियां लगी लेकिन फिर भी आखिरी सांस तक उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा और आखिरी दम तक लड़ते लड़ते शहीद हो गए.
हवलदार जगदीश चंद
जगदीश चंद जैसे बहादुर बिरले ही होते है. हमले से कुछ समय पहले ही जगदीश लेह से पठानकोट लौटे थे. शहीद होने के एक दिन पहले ही जगदीश अपने गाँव से लौटे थे.
जिस समय हमला हुआ तब जगदीश मेस में थे. गोलियों की आवाज़ सुनकर वो तुरंत भागकर बाहर आये और निहत्थे ही एक आतंकवादी से भिड गए. जगदीश ने उस आतंकी की रायफल छीन कर उस आतंकवादी को ढेर कर दिया. उसके बाद दुसरे आतंकियों से लड़ते लड़ते जगदीश बुरु तरह घायल हो गए और शहीद हो गए.
जगदीश के दो बेटियां और एक बीटा भी है. जगदीश का बेटा भी अपने पिता की तरह सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते है.
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