भारत एक मात्रा ऐसा देश है जिसमे विभिन्न जाती धर्म समुदाय के लोग रहते हैं.
और… इन सबकी अपनी अलग अलग परम्पराएँ है. इन्ही परम्परा में कुछ ऐसी परम्परा है जो अनोखी होने के साथ साथ आश्चर्य करने वाली भी है.
1. बच्चों का मंदिर
छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित शाटन देवी मंदिर (बच्चों का मंदिर) से एक अनोखी परंपरा जुड़ी है. यहां लोग अपने बच्चों की तंदुरुस्ती के लिए प्रार्थना करते हैं. यहाँ के लोग मंदिरों में फूल, प्रसाद, नारियल की जगह देवी को लौकी और तेंदू की लकड़ियां चढ़ाई जाती हैं. इस मंदिर में यह परंपरा कैसे शुरू हुई यह कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है.
2. तालाब विवाह
भगवान महादेव को प्रसन्न करने के लिए भुट्टा या लकड़ी का ठूठ रूपी भीमा का विवाह भिमाई से किया जाता है. भीमा विवाह के बाद तरीया विवाह. तरीया विवाह को तालाब विवाह कहा जाता है. माना जाता है कि कुंवारे लोगों को तालाब का पानी विवाह पूर्व नहीं पीना चाहिए इसलिए तालाब का विवाह कराते हैं और आमा विवाह में आम के नए पौधे का भी विवाह किया जाता है, ताकि उसमें फल लग सके. पूजा के अंतिम दिन गुरुवार को लक्ष्मी विवाह किया जाता है, जो शुक्रवार की सुबह समाप्त होता है. लक्ष्मी विवाह की आधी विधि खेत में होती है. यहां कटाई के दौरान छोड़े गए धान के पौधे को माता लक्ष्मी मान कर भगवान हरी के साथ विवाह किया जाता है और विवाह पश्चात धूमधाम से नगाड़ों की थाप पर बारात घर लाई जाती है.
3. लिंग पता करना
झारखंड के खुखरा गाँव में माँ के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता करने की एक अनोखी परम्परा है, जो पिछले 400 सालों से चली आ रही है. पहाड़ पर चाँद की आकृति से पता करते हैं कि माँ के गर्भ में पल रहा बच्चा बेटा है या बेटी! गाँव में एक पहाड़ है जिस पर एक चाँद की आकृति बनी हुई है जिसे चाँद पहाड़ कहते है. गांव की गर्भवती महिलाएं चांद की आकृति पर निश्चित दूरी से बस एक पत्थर फेंकती है. अगर गर्भवती स्त्री के हाथ से छूटा पत्थर चांद के भीतर लगे तो यह संकेत है कि लड़का होगा और बाहर लगने पर लड़की होगी. इस परम्परा पर यहाँ के ग्रामवासियों का अटूट विश्वास है.
4. किन्नर की मौत
किन्नर की जिंदगी जन्म से ही संघर्षमय होती है लेकिन इनको मरने के बाद भी नहीं छोड़ा जाता है. किन्नर की मौत किसी भी समय पर क्यों न हो लेकिन उसकी शव यात्रा रात में ही निकाली जाती है. किन्नर में किसी की मौत होने पर किन्नर को जूते चप्पलों से बुरी तरह से मारा जाता है और गाली दी जाती है. फिर सात दिन तक सब भूखे रहते हैं.
5. गोदना परंपरा
100 सालों से भी ज्यादा लंबे समय से छत्तीसगढ़ के जम्गाहन जैसे पिछड़े इलाके में रामनामी समाज में एक अनोखी परंपरा चली आ रही है.
कहा जाता है कि 100 साल पहले गांव में ऊंची जाति के लोगों ने इस समाज को मंदिर में घुसने से मना कर दिया था. इसके बाद से ही इन्होंने विरोध करने के लिए चेहरे सहित पूरे शरीर में राम नाम का टैटू या गोदना बनवाना शुरू किया. इस समाज में पैदा हुए लोगों को शरीर के कुछ हिस्सों में टैटू या गोदना बनवाना जरूरी होता है. टैटू या गोदना बनवाने वाले लोगों को शराब पीने की मनाही के साथ ही रोजाना राम नाम बोलना भी जरूरी होता है. ज्यादातर रामनामी लोगों के घरों की दीवारों पर राम-राम लिखा होता है और राम-राम लिखे कपड़े पहनने का भी चलन है. ये लोग आपस में एक-दूसरे को राम-राम के नाम से ही पुकारते हैं. रामनामियों की पहचान राम-राम का गुदना गुदवाने के तरीके के मुताबिक की जाती है.शरीर के किसी भी हिस्से में राम-राम लिखवाने वाले रामनामी. माथे पर राम नाम लिखवाने वाले को शिरोमणि। और पूरे माथे पर राम नाम लिखवाने वाले को सर्वांग रामनामी और पूरे शरीर पर राम नाम लिखवाने वाले को नखशिख रामनामी कहा जाता है.
6. श्राप देने की परंपरा
कुछ उत्तर भारतीय समुदायों में भाई दूज मनाने की अनोखी प्रथा है. इसमें बहने यम देवता की पूजा करती है और पूजा के दौरान वो अपने भाइयों को कोसते हुए उन्हें मर जाने का श्राप देती है. फिर श्राप देने के बाद अपनी जीभ पर काँटा चुभा कर इसका प्रायश्चित भी करती है. इसके पीछे यह मान्यता है की यम द्वितीया (भाई दूज) भाइयों को गालियां व श्राप देने से उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहता है.
इन परम्पराओं से पता चलता है कि भारतीय समाज में आज 21 वी सदी में भी रुढ़िवादी परम्पराओं को धारण किये हुए है. हो सकता है ये परम्पराएं इस समाज के लोग अपनी आस्था के कारण आगे बढ़ा रहे है लेकिन देखा जाए तो वास्तव में इन परम्पराओं का कोई मतलब नहीं है.
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