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आज सत्ता किसके हाथ में है: हमारे या नेताओं के?

कैसा महसूस कर रहे हैं? शक्तिशाली या बेसहारा?

क्या लग रहा है, अपनी ज़िन्दगी अपने हाथ में है या नेताओं की कठपुतली बन के रह गए हैं?

ऊपरी तौर पर देखेंगे तो आम आदमी सताया हुआ है, भ्रष्टाचार से, नेताओं के झूठे वादों से, सरकार की ग़लत नीतियों से और ना जाने किस-किस से!

दिखाई देते हैं तो नेता, महँगी गाड़ियों में आम आदमी की मेहनत के कमाए पैसे का पेट्रोल फूँकते हुए, हमारी कमाई से विदेशी दौरों पर घूमते हुए, हम पर राज करते हुए!

लेकिन सच्चाई है कि आम आदमी का ज़माना आ चुका है, अगर हम अपनी आँखें ध्यान से खोल के देखें तो! गहरायी में झाँकेंगे तो पता चलेगा कि जिस टेक्नोलॉजी के बल पर आज सरकार बनी है और जिसकी दुहाई देकर देश बदलने की बातें की जा रही हैं, वही टेक्नोलॉजी असल में आज हमारे हाथ में ब्रह्मास्त्र के सामान है! बस उसका इस्तेमाल करना आना चाहिए!

मैं नहीं कहता कि दिल्ली की आप सरकार की तरह सिर्फ़ स्टिंग ऑपरेशन करके ही भ्रष्टाचार का सफ़ाया किया जा सकता है| ज़ाहिर है कि वो एक कारगर तरीका है लेकिन उसके अलावा भी कई और रास्ते हैं जिन से हम नेताओं को उनका असली काम याद दिलवा सकते हैं: आम आदमी की सेवा!

होता असल में यह है कि एक मुद्दा उठता है, मीडिया में हाय-तौबा मचती है और फिर थोड़े दिनों में उसे ठंडा करके भुला दिया जाता है!

फिर एक नए मुद्दे पर हम सब लड़ते हैं और फिर उसके बाद एक और, फिर एक और! बस यूँही यहाँ से वहाँ नाचते रहते हैं और यह नेता मीडिया और अपनी सत्ता का इस्तेमाल कर हमें नचाते रहते हैं| लेकिन इस में ग़लती हमारी है कि हम उन्हें हमारी कमज़ोरी यानि कि कमज़ोर यादाश्त का फ़ायदा उठाने देते हैं!

ज़रुरत है कि जब यह स्पष्ट हो जाए कि फ़लां नेता भ्रष्ट है या उसने कोई ग़लत काम किया है तो सारी शक्ति लगा दे आम आदमी, आम जनता उसे उसकी गद्दी से हटाने की! पर बात यहाँ ख़त्म ना हो, तब तक उस आदमी को दोबारा चुनावों में ना जिताया जाए जब तक उसके ख़िलाफ़ सभी केस रद्द ना हो जाएँ! इसमें भी ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर क़ानून व्यवस्था आम आदमी के लिए चींटी की चाल चलती है तो नेताओं के लिए सुपरसोनिक जेट का रूप ना धारण कर ले! यह तभी हो सकता है जब हर नागरिक इसे अपना ध्येय बना ले कि ऐसी किसी भी नाइंसाफ़ी को चुप-चाप नहीं सहेगा! यह कहकर बात नहीं टाली जायेगी कि यह तो हमारी ज़िन्दगी का मुद्दा नहीं है, हम क्यों लड़ें?

जब तक हर आम आदमी की लड़ाई हमारी अपनी लड़ाई नहीं है, तब तक यह नेता हमारा फ़ायदा उठाएँगे ही! लेकिन जिस दिन इन्हें पता चल गया कि भले ही उनके नेता को जेल नहीं हुई लेकिन वो चुनाव में लड़ के भी हारने ही वाला है, उस दिन यह राजनीतिक पार्टियाँ भ्रष्ट नेताओं को टिकट देना बंद कर देंगी! और तब चलेगी बदलाव की हवा जहाँ ऊपरी तौर पर भी और गहरायी में उतरने पर भी राज सिर्फ़ जनता का ही होगा, जैसा होना चाहिए!

उम्मीद है ऐसा दिन जल्द ही आएगा!

आईये कोशिश करें और पहचानें अपनी शक्ति को और उसका सही इस्तेमाल करें!

नेताओं का हो या ना हो, यह देश हमारा और आपका है, बराबरी का! चलिए इसे ज़रा और सजाएँ, कुछ कर दिखाएँ!

Nitish Bakshi

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