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तीर जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ मुसलमान को ही होगा- अकबर तुमसे यह उम्मीद नहीं थी

never expected it from akbar

अकबर की बहादुरी और नेक दिली के किस्सों की वैसे कमी नहीं है.

अकबर को भारतीय हिन्दुओं ने भी काफी पसंद किया था.

कहते हैं कि अकबर के राज में हिन्दू मंदिरों को अन्य राजाओं की तुलना में कम तोड़ा गया था. हिन्दुओं पर कई तरह के करों में भी छुट दी गयी थी. लेकिन कुछ किस्से इतिहास बताना भूल गया है.

ऐसा ही एक किस्सा आज हम आपको बताने वाले हैं जब एक युद्ध में भारतीय हिन्दू-मुस्लिम सैनिक जो अकबर की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे उनको पहचान पाना मुश्किल हो रहा था. दूसरी तरफ से अकबर की एक सेना को तीरों से विपक्षियों पर हमला करना था. लेकिन खुद अकबर के सैनिकों को पहचान पाना मुश्किल हो रहा था. तब अकबर के खास सेनापति ने  आदेश दिया था कि तीर चलाये जाए, कोई भी मरेगा वह काफिर ही होगा.

इस बात से सिद्ध होता है कि जो भारतीय हिन्दू या मुस्लिम सेना में थे उन्हें भी काफिर ही समझा जाता था. एक महान राजा अकबर से यह उम्मीद किसी को नहीं हो सकती थी.

इतिहास में कहाँ दर्ज है यह कहानी

बदाउनी ने लिखा था- ”हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर से संलग्न राजपूत, और राणा प्रताप के निमित्त राजपूत परस्पर युद्ध रत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था, तब अकबर की ओर से युद्ध कर रहे बदाउनी ने, अपने सेना नायकसे पूछा कि वह किस पर तीर चलाये ताकि शत्रु को ही आघात हो, और वह ही मरे। कमाण्डर आसफ खाँ ने उत्तर दिया था कि यह बहुत अधिक महत्व की बात नहीं कि तीर किस को लगती है क्योंकि सभी लड़ने वाले काफ़िर हैं,. गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा।”

इस कहानी को आप नीचे लिखी गयी पुस्तक जो एक दस्तावेज भी है वहां पर देख सकते हैं.

(मुन्तखान-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी, खण्ड II, अकबर दी ग्रेट मुगल : पुनः मुद्रित १९६२; हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल, दी मुगल ऐम्पायर मजूमदार, खण्ड VII, पृष्ठ १३२ तृतीय संस्करण, बी)

तो जिस प्रकार से योद्धाओं को काफिर बोला गया था उससे यह तो साफ़ हो जाता है कि तब अकबर की सेना में भी जातिवाद और भेदभाव चल रहा था. भारतीय हिन्दू और जो लोग हिन्दू से मुसलमान बने थे उनको दोयम दर्जे का ही सैनिक समझा जाता था.