देश का दुर्भाग्य ही रहा है कि आज तक भारत का राष्ट्रीय मीडिया जिसने कभी हमें कश्मीर को लेकर सच बताने का साहस नहीं किया है.
देश के राष्ट्रीय मीडिया ने कभी कश्मीर के उन बातों को आप से नहीं बताया होगा जिससे कश्मीर की आजादी के नाम पर चल रहा मजहबी खेल उजागर हो सके.
देश में सेक्यूलरिज्म की रक्षा के नाम पर हमेशा ही सच्चाई पर पर्दा डाला गया है. कश्मीर में आजादी के नाम पर इस्लामी वहाबिज्म को स्थापित किया जा रहा है. इसको लेकर सब खामोश है.
कश्मीर को लेकर जब भी कोई बात की जाती है तो देश का बुद्धिजीवी और भारत का राष्ट्रीय मीडिया का एक खास तबका जम्बूहरीयत और कश्मीरियत को लेकर अलगावादियों का अपरोक्ष समर्थन करता है.
लेकिन वह कभी आपको नहीं बताएगा कि वर्ष 1990 में कश्मीर को लेकर आज जम्बूहरीयत और कश्मीरियत की बात करने वाले अलगावादियों ने कश्मीरी पंडितों के साथ किया था.
जो गुजरात दंगों के लिए मोदी को फांसी देने की बात करते थे. जो मीडिया दंगों को लेकर मोदी को गुनेहगार मानकर दोषी की तरह उनका ट्रायल करता था उसको आज तक एक बार भी यह कहते नहीं सुना गया कि कांग्रेस के नेताओं, गाँधी परिवार और अब्दुल्लाह परिवार को फांसी दो, जो लाखो कश्मीरी पंडितो के कत्लेआम को चुपचाप देखते रहे.
घाटी से निकलने वाले आफताब, एक स्थानीय उर्दू अखबार की उस खबर को किसी ने दिखाया जिसमें उसने हिज्ब -उल -मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति को छाप दिया था. इसमें लिखा था कि सभी हिन्दू अपना सामन पैक करें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएँ.
एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा ने इस निष्कासन आदेश को दोहराया.
मस्जिदों में भारत और हिन्दू विरोधी भाषण दिए गए. सभी कश्मीरी हिन्दू मुस्लिमों को कहा गया कि इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाये. लोगो को मजबूर किया गया की वो अपनी घड़ी पाकिस्तान के समय के अनुसार करे लें.
सारे कश्मीरी पंडितो के घर के दरवाजो पर नोट लगा दिया जिसमे लिखा था या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ कर भाग जाओ या फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ.
न तो उस वक्त भारत का राष्ट्रीय मीडिया कहाँ था, कोई आवाज नहीं उठी और न ही आज उस पर कोई बोलने को तैयार है. सारे कश्मीर के मस्जिदों में एक टेप चलाया गया. जिसमे मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओ को कश्मीर से निकाल बाहर करें.
उस वक्त कहां मर गई थी कश्मीरियत जब पंडितों को घाटी से बाहर निकालने के लिए सारे कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये थे. कश्मीरियत की दुहाई देने वाले लोगों ने एक बार न तो उनको रोका और न ही इसकी कभी निंदा की.
जब कश्मीरी पंडितो के घरों को जलाया जा रहा था और कश्मीर पंडित महिलाओं का बलात्कार करके उनकी हत्या कर उनके नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया था उस वक्त से लेकर आज तक सेक्युलर मीडिया उसको लेकर अपनी जुबान क्यों सिले हुए हैं.
अगर मीडिया को गुजरात और मुजफ्फरनगर याद है तो फिर कश्मीर पर उसकी याददास्त कमजोर क्यों हो जाती है. वह क्यों नहीं बताता कि किस प्रकार धर्म के नाम पर घाटी में हिंदुओं का कत्लेआम किया गया था.
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