70 वर्ष का एक बुढा ‘पगला’ इंसान जो अपने युवावस्था में ‘वैज्ञानिक जी’ नाम से जाने जाते थे.
आज हाथ में पेंसिल और कागज़ लेकर घर की दीवारों पर लिखते हुए गुमनामी में जीवन बिता रहे हैं. उनको ना तो खुद की सुध है और ना ही जीने का होश है!
लेकिन एक वक़्त था, जब अमेरिका से उसको पढ़ने के लिए न्योता देकर बुलाया गया. उसने अपने ग्रेजुएशन की पढाई तीन साल की जगह सिर्फ एक साल में पूरी कर दी.
एक समय था जब इनको गणित का भगवान बुलाते थे लेकिन आज यह महान गणितज्ञ अपने देश में ही गुम हो गया है.
आइये जानते है इनकी पूरी कहानी
इनका पूरा नाम डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह है.
इनका जन्म 2 अप्रैल 1942 में बिहार स्थित बसंतपुर गाँव, जिला भोजपूर में हुआ था और इनकी पढाई नेतरहाट स्कूल में हुई थी.
पटना साइंस में B Sc (Hons) की परीक्षा दी, फिर 1969 में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया और बर्कली में Ph.D की उपाधि Reproducing Kernels and Operators with a Cyclic Vector में प्राप्त की. उसके बाद नासा में एसोसिएट साईंटीश प्रोफेसर के रूप में पदभार सम्हाला. रिसर्च के दौरान इन्होने ऐसे अध्ययन किया, जिसका अध्ययन आज तक अमेरिकी छात्रों द्वारा किया जा रहा है.
इनके रिसर्च को NASA, IIT सबको चौका दिया था इनकी प्रतिभा को सारे गणितज्ञों ने माना था
सन 1971 में डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह का विवाह हुआ और विवाह के कुछ वर्षों के बाद अपनी बीमारी के कारण अपनी पत्नी का साथ छोड़कर अलग रहने लगे.
फिर 1972 वापस भारत आये और IIT कानपुर में, TIFR मुंबईमें, फिर ISI कोलकता में लेक्चरर पद पर कार्य किया.
सन 1977 डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह “सीजोफ्रेनिया” नामक बिमारी से पीड़ित हो गए.
यह एक तरह की मानसिक बीमारी है.
इसके इलाज़ के लिए इन्हें रांची स्थित कांके मानसिक अस्पताल में भर्ती किया गया.
सन 1988 में कांके अस्पताल में इलाज सही से ना हो पाने के कारण वह वहां से किसी को बिना कुछ बोले चुप चाप निकलकर कहीं चले गए.
अपने बिमारी के बावजूद भी उनका गणित से नाता नहीं टुटा और वह बिमारी में रहते हुए भी गणित के सारे सूत्रों को हल करते रहे. इस गणितज्ञ ने पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया था. अमेरीकन भी इनके गुणगान करते थे.
सन1992 में उन्हें दयनीय स्थिति में बिहार के सिवान में कुछ लोगो ने पहचाना.
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जी ने आइंस्टिन के सिद्धांत (E=MC2) और गौस की थ्योरी, जो गणित में रेयरेस्ट जीनियस कहा जाता है, उसको चैलेंज किया था.
कहा जाता है कि एक बार जब अपोलो मिशन के समय, डा वशिष्ठ नारायण जी नासा में थे तब अचानक कम्प्यूटर में खराबी आई तो डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जी ने अपनी उंगलियों से ही गिनना शुरू कर दिया और उनकी गिनती सही साबित हुई थी.
इतने महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह आज अपने मानसिक रोग के बाद भी गणित का साथ नहीं छोड़ा और आज भी अपने कागज ना मिलने पर दीवारों पर गणित बनाते हुए सवाल हल करते रहते है.