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मध्य प्रदेश की इस मलाला को देख आप भूल जायेंगे पाकिस्तानी मलाला की कहानी

हिन्दुस्तानी मलाला – मलाला एक ऐसी लड़की का नाम है जिसे आज पूरी दुनिया जानती है, लेकिन जिस मलाला की बात हम आपसे करने जा रहे हैं वो पाकिस्तानी नहीं बल्कि हिन्दुस्तानी है.

गरीबी की ऐसी मार कि इंसान जीना भूल जाए,  लेकिन इस लड़की ने ऐसा काम कर दिखाया, जिसे देखकर लोग इसे मलाला का नाम दे गए.

मुसीबतें हर जगह होती हैं. लड़कियों को अपनी ही ज़िन्दगी जीने के लिए लोगों से भीख मांगनी पड़ती है. समाज में लड़कियों को बहुत कुछ सहना पड़ता है. ये मार तब और भारी पड़ जाती है जब आप सभी समाज से न होकर आदिवासी समाज से हों. मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बड़वानी जिले का एक छोटा सा गांव लिंबी. जहां 21वीं सदी के भारत में भी बालिका वधु बनाने की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है. जहां लड़कियों को पढ़ने की इजाजत तक नहीं थी.

ऐसे में इसी गांव में जन्मी ललिता जमरे नाम की लड़की अपने भविष्य को लेकर तमाम सुनहरे ख्वाब गढ़ रही थी. उस कहाँ पता था की उसे सपने देखने का भी हक नहीं.

हिन्दुस्तानी मलाला –

लेकिन एक बात है आदिवासी समुदाय से होने के बाद भी इसने हार नहीं मानी.

भले ही उसने हकीकत में कभी स्कूल की सूरत तक नहीं देखी, लेकिन सपनों में खुद को डॉक्टर देखा करती थी. परंपराओं की बेड़ियों ने उसके पैर भी बांधे,सपनों के पंख नोंचने की कोशिश की गई लेकिन ललिता ने हार नहीं मानी. ललिता बाकी लड़कियों की तरह स्कूल जाना चाहती थी, लेकिन  घर वाले राजी नहीं थे. उसकी काफी जिद के बाद मां ने उसे एक शर्त पर स्कूल जाने की इजाजत दी.

ललिता को हौसला मिल गया. उसने सोच लिया कि पढ़ाई के लिए वो कोई भी शर्त मानने को तैयार है. बस लग गई अपने काम में.

ललिता ने अपनी माँ की सारी शर्त को बखूबी निभाया. गाय-भैंस को चराने के साथ ही चूल्हा चौकी और घर के सारे काम भी उसे ही करने किया.

ललिता का परिवार काफी बड़ा था. घर में 9 लोग थे. मजदूर मां-बाप के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल था. ऐसे में स्कूल की फीस कहां से आए. मगर सात भाई-बहनों में चौथे नंबर की ललिता में पढ़कर लिखकर डॉक्टर बनने की ललक कुछ इस कदर थी कि वो भैंस चराने और घर के दूसरे कामकाज करने के अलावा खाली समय में मजदूरी भी करती ताकि स्कूल की फीस जुटाई जा सके. दिन रात एक करके उसने बहुत मेहनत करनी शुरू कर दी. उसकी मेहनत रंग लाइ.

मेहनत करते हुए ललिता अपनी आगे की पढ़ाई के लिए भोपाल आ गई.

मेहनत की बदौलत उसे मेडिकल कॉलेज में दाखिला तो मिल गया लेकिन भारी भरकम फीस की समस्या अब भी बरकरार थी. लेकिन वो कहते हैं ना सच्चे इंसान की मदद भगवान भी किसी न किसी रूप में जरूर करता है. ललिता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.  ललिता डॉक्टर बन गई और उसके सपनों को आसमान मिल गया. आज वो अपने गाँव के बाकी लड़कियों को सपने देखना सिखा रही है.

ये है कहानी हिन्दुस्तानी मलाला की – सी ने सच कहा है कि अगर हौसला हो तो आपको कोई नहीं रोक सकता. भले ही थोड़ी मुसीबतें आएंगी लेकिन आपकी विजय ज़रूर होगी.

Shweta Singh

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Shweta Singh

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