सैम मानेकशॉ – 26 नवंबर, 1971 को भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में घुसपैठ शुरु कर दी है।
ये जंग भारत की तरफ से नहीं थी। पाक में बातें चल रहीं थीं कि उसे भारत के खिलाफ पश्चिमी बॉर्डर पर हमला कर देना चाहिए ताकि भारत का ध्यान वहां चला जाए।
23 नवंबर को पाकिस्तान के आर्मी के हेडक्वार्टर में इस बारे में चर्चा होती रही लेकिन याहया इस बात को टालते रहे। उनका कहना था कि वो 27 तारीख तक बताएंगें और उससे पहले ही भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में हमला बोल दिया। इसका मतलब था कि भारत ने जंग की शुरुआत नहीं की थी बल्कि उसने अपनी सुरक्षा के लिए हमला बोला था।
भारत के हमला करने पर याहया ने कहा कि वो 29 को वेस्टर्न फ्रंट से लड़ाई शुरु करेंगें लेकिन जमीन पर तैनात सेना तक ये बात 2 दिसंबर को पहुंची। अगले दिन 3 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने भारत से जुड़ी पश्चिमी सीमा पर जंग शुरु कर दी और दोपहर बाद पाक एयर फोर्स के 32 विमानों ने भारत के एयरफील्ड्स पर हमला बोल दिया।
भारत से शराफत की उम्मीद रखता था याहया
इस जंग के मामले में पाकिस्तान की तैयारी बड़ी कच्ची थी। हमेशा की तरह वो भारत को शराफत दिखाने की अपेक्षा कर रहा था। उसे लगता था कि भारत ज्यादा से ज्यादा पूर्वी पाकिस्तान पर कब्जा कर लेगा और वहां बांग्लादेशी सरकार बना देगा। पाक ने अपनी अधिकतर फौज सीमा पर तैनात कर रखी थ और अंदर लड़ने के पास उसके पास लोग ही नहीं थे। जब भारतीय सेना ढाका की ओर बढ़ी तब जाकर पाकिस्तान के होश उड़े। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके पास ढाका में रिइन्फोर्समेंट का रास्ता ही नहीं था।
अय्याश के हाथ में थी कमान
सैम मानेकशॉ का लकी नंबर 4 था तो वो चाहते थे कि 4 दिसंबर को ही जंग हो लेकिन पाकिस्तान ने इससे पहले ही आधिकारिक जंग की शुरुआत कर दी। भारत के लिए तो य अच्छा ही था। इस समय पूर्वी पाकिस्तान में सेना के कमांडर थे लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी। 3 सितंबर, 1971 को उन्हें पूर्वी पाक का मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया गया लेकिन आपको बता दें कि नियाजी को सेना और जंग से ज्यादा दिलचस्पी गंदे चुटकुलों में थीं। जब सेना का एक अफसर उन्हें जंग की ब्रीफिंग देने पहुंचा तो उन्होंने उसकी बजाय उससे कहा – जंग की चिंता मत करो, वो तो हम कर लेंगें। अभी तुम मुझे बंगाली गर्लफ्रेंड्स के नंबर दे दो।
खुद पर गुरूर करने वाले पाकिस्तान को हर बार भारत के आगे घुटने की टेकने पड़ हैं और इस बार भी वही हुआ। पाकिस्तान किसी भी कीमत पर हार नहीं मानेगा, पहले ये नारे लगाने वाले नियाजी ने अमेरिकी दूतावास के हाथों संघर्षविराम का संदेश पहुंचा दिया।
पाकिस्तान को इस बात का मलाल रह गया कि बंटवारे के समय सैम मानेकशॉ पाक क्यों नहीं गए उन्होंने भारत में ही रहना क्यों स्वीकार किया। इस तरह मानेकशॉ की रणनीति से भारत ने बांग्लादेश को आजाद करवाया और उसे एक अलग देश बनाने में पूरी मदद की। सैम मानेकशॉ जैसे जांबाजों की हर देश को जरूरत होती है।