अभी तक सभी जानते हैं कि भारत और जापान के रिश्ते प्रारंभ से भी मधुर रहे हैं.
वैसे भी भारत कभी युद्ध के लिए पहल नहीं करता है. लेकिन जहाँ भी देश की आन-बान-शान की बात आती है हमारे बहादुर जवान देश की खातिर अपनी जान को भी दांव पर लगा देते हैं. यही हुआ था उस समय भी, ना चाहते हुए भी युद्ध एक मात्र उपाय बचा था.
इस बार भारत मजबूर था हमें ना चाहते हुए भी जापान से लड़ाई लड़नी थी. बेशक हम उन दिनों अपनी नहीं चला पा रहे थे किन्तु इस युद्ध में हमारे सैनिक शामिल थे. जापान को भारत के लोगों की जान लेनी थी किन्तु जब उनको हमारे सैनिकों से कड़ी टक्कर मिलने लगी थी तब उनको पीछे हटना पड़ा था.
जी अब बात को और ना घुमाते हुए हम बताते हैं कि यह बात है तबकी जब हम अंग्रेजो के गुलाम थे. और दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था.
दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था. इसलिए आधिकारिक रूप से भारत ने भी नाजी जर्मनी के विरुद्ध 1939 में युद्ध की घोषणा कर दी थी. ब्रिटिश राज (गुलाम भारत) ने 2 लाख से अधिक सैनिक युद्ध के लिए भेजे थे. इसके अलावा सभी देशी रियासतों ने युद्ध के लिए बड़ी मात्रा में अंग्रेजों को धनराशि प्रदान की थी.
इस युद्ध में भारत के शामिल होने की शर्त यही थी कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को आजाद कर दिया जायेगा. देश की 17 बटालियन जिसमें सिख, जट और राजपुताना सैनिक शामिल थे, इस बटालियन को युद्ध के लिए इम्फाल भेजा गया था.
बेशक इस लड़ाई को कुछ लोग ब्रिटिश-जापान की लड़ाई ही कहते हैं किन्तु तब जापान ने भारत जैसे एशियाई देश पर हमला किया था और उसका उद्देश्य इम्फाल के रास्ते भारतीय सैनिको को मारते हुए भारत पर कब्ज़ा करना था.
मार्च और जुलाई 1944 के बीच जो लड़ाई मणिपुर की पहाड़ियों और घाटियों तथा इसके आसमान में लड़ी गई थी. इससे पहले इस क्षेत्र को कोई जानता तक नहीं था.
इम्फाल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुर्खियों में आया था, जापानियों ने भारत में इसी क्षेत्र से प्रवेश किया और क्षेत्र भर में युद्ध छेड़ दिया था. इम्फाल की लड़ाई और कोहिमा की लड़ाई का द्वितीय विश्व युद्ध के इतिहास में काफी उल्लेख किया गया है. अब यहाँ भारत की सेना को कमजोर समझ रहे जापान की सेना को मुंह की खानी पड़ी थी.
तब ऐसा पहली बार हुआ था, कि किसी ने क्रूर जापानी फ़ौज को एशियाई मिट्टी पर हराया था.
जब जापान को लगने लगा कि यहाँ तो बात उल्टी पड़ रही तो तब जापान को इम्फाल से बर्मा वापस लौटना पड़ा था या ऐसे कहें कि जापान की सेना को भारत की सेना वापस भगाने में सफल रही थी.
कुछ लोगों के मत यह भी हैं कि जापान भारत को आजाद कराने में मदद कर रहा था. लेकिन यह भी हो सकता था कि हम ब्रिटिश लोगों से छुटकर जापान के कब्जे में आ जाते. उन दिनों जापान एक बड़ी शक्ति हुआ करता था. जापान जहाँ पूरे विश्व की नाक में दम किये हुए था और हमारे कुछ बड़े नेताओं को लग रहा था था कि ब्रिटिश लोगों से स्वतंत्रता लेना अब ज्यादा आसान है.
इस युद्ध में हमारे कई हज़ारों सैनिकों की जान गयी थी जिन्हें आज भी हम सलाम करते हैं. बेशक तब देश गुलाम था किन्तु यह बहादुर लड़े तो अपनी माटी के लिए ही थे, कोई देश हमारी माँ को कैद करता यह इन लोगों को मंजूर नहीं था.
देश भक्ति की भावना की खातिर ही अपनी जान की परवाह ना करते हुए हमारे सैनिकों ने जापान के सैनिकों को इस युद्ध में धूल चटा दी थी और जापान को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था. इस बहादुरी के गुणगान आज तक अंग्रेज करते हैं क्योंकि तब अगर भारतीय सेना इस लड़ाई को नहीं लड़ती तो ऐसे में अंग्रेजों की हार निश्चित थी.
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