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9 साल से अविजित दक्षिण अफ्रीका का विजय रथ रोका भारत ने: अश्विन का कमाल या करामात पिच की!

पहले T 20 और उसके बाद एकदिवसीय श्रृंखला हारने के बाद भारत पर बहुत दबाव था.

सबसे बड़ा दबाव था कि कहीं घर में सूपड़ा साफ़ ना हो जाए.

नए कप्तान विराट कोहली भी दबाव में थे, एक तो नयी नयी जिम्मेदारी दूसरा सामने दक्षिण अफ्रीका जैसी टीम.

वो दक्षिण अफ्रीका जो पिछले 9 सालों में एक भी टेस्ट श्रृंखला नहीं हारी थी और जिस तरह की फॉर्म में उनकी टीम थी उसे देख कर लग रहा था कि वो इस बार भी नहीं हारने वाली है.

लेकिन शायद भारत की युवा टीम ने ठान लिया था कि इस बार अफ्रीका को करारा जवाब देंगे. 

हुआ भी ऐसा ही पहले टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका को भारत ने हरा दिया. काफी समय से उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन करने में असफल रहे भारतीय स्पिनर रंग में आ गए और अफ़्रीकी टीम को घुटनों पर ला दिया.

दक्षिण अफ़्रीकी टीम सकते में थी ये क्या हो गया ?

बंगलौर में दूसरा टेस्ट मौसम की वजह से रद्द हो गया. अब बचा था तीसरा और आखिरी टेस्ट.  नागपुर के जामता स्टेडियम में तीसरे टेस्ट मैच से निर्णय होना था सीरीज का . दोनों ही टीम तैयार थी एक दुसरे से लोहा लेने को.

भारत ये मैच जीत कर या ड्रा करवाकर दक्षिण अफ्रीका के 9 वर्ष से चलते हुए विजयी रथ को रोकने की कोशिश में था तो दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका की टीम मैच जीत कर सीरीज ड्रा कराने की फ़िराक में थी.

तीसरे टेस्ट की शुरुआत हुई और लग ही नहीं रहा था कि ये एक टेस्ट मैच है.

पहले दिन ही भारत की पूरी टीम और अफ़्रीकी टीम के भी दो खिलाडी आउट होकर जा चुके थे. मतलब एक दिन में 12 विकेट. भारत के इस समय सबसे बेहतरीन स्पिनर माने जाने वाले अश्विन के नाम रहा अगला दिन. दुसरे दिन की शुरुआत ही विकेटों के पतझड़ से हुई जो पूरे दिन चलती रही.

दक्षिण अफ़्रीकी शेर मात्र 79 रन पर ढेर हो गए.

79 आल आउट ये अफ्रीका का 1957 के बाद सबसे कम टेस्ट स्कोर था. अफ़्रीकी टीम को धराशायी किया भारतीय स्पिनरों ने. रविचंद्रन अश्विन ने 5 विकेट झटके.

जोश से सराबोर भारतीय टीम कब दूसरी पारी में खेलने आई तो उनकी हालत भी कुछ अच्छी नहीं रही. इमरान ताहिर की अगुवाई में अफ्रीका ने भारत को 178 पर ढेर कर दिया. इस तरह अब तक एक दिन में 18 विकेट गिर चुके थे.

 कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी

310 रन के लक्ष्य का पीछा करने उतरी अफ़्रीकी टीम फिर से भारतीय गेंदबाजी में फंस गयी और आखिरी कुछ समय में भी 2 विकेट गँवा कर मुसीबत में आ गयी.

दुसरे दिन में दोनों टीमों के मिलकर 20 विकेट गिरे.

अचानक भारतीय गेंदबाजों की मेहनत नहीं इसे पिच का करामत कहा जाने लगा. वैसे इस बात में भी कहीं ना कहीं थोड़ी सच्चाई तो थी.

अश्विन अच्छे गेंदबाज है लेकिन जब ऐसा हो कि जो भी हाथ में गेंद थामे विकेट ले जाए तो दाल में कुछ काला लगता है.

मैदान के बाहर पिच को लेकर क्रिकेट विशेषज्ञों में सुबुगाहट होने लग गयी. तीसरे दिन दक्षिण अफ्रीका 185 रन बनाकर आउट हो गयी और 9 साल में पहली बार कोई टेस्ट सिरीज़ हारी. भारत की ये घर में खेले गए पिछले 9 टेस्ट मैच में 8वीं जीत थी.

आश्विन ने दूसरी पारी में भी कमाल दिखाया और 7 विकेट चटकाए. मतलब दोनों परियों में कुल 12.

सोचने वाली बात ये है कि आखिर क्या मतलब है ऐसे पिच बनाने का?

ये कोई नयी बात नहीं है जब घरेलु टीम अपनी सुविधा अनुसार पिच बनवाती है. लेकिन ऐसा पिच बनाने का क्या मतलब जिसमे क्रिकेट की आत्मा ही मर जाए. ऐसा मैच कौन देखना चाहेगा जो तीन दिन में पूरा हो जाए.

जो आये उसे विकेट मिले, कोई बल्लेबाज़ कुछ भी ना कर सके.

भारत ने दक्षिण अफ्रीका को सीरीज हराकर अपनी लाज तो बचाली. लेकिन पिच के बारे में शुरू हुए विवाद में रविचंद्रन अश्विन की उम्दा गेंदबाजी को वो प्रशंसा ना मिल सकी जिसके वो हकदार थे. 

ऑस्ट्रेलिया,अफ्रीका और इंग्लैंड में भी घरेलु श्रृंखला में पिच गेंदबाजों की मदद के लिए बनाये जाते है पर उन पिचों पर उनके बल्लेबाज़ भारत की तरह धराशायी नहीं हो जाते.

नागपुर का पिच केवल स्पिनर की मदद के लिए बनाया गया था, ऐसा पिच जिसमे भारत के बल्लेबाजों को भी खेलने में मुश्किल हुई.

कहीं ऐसा तो नहीं T 20 और वन डे में धोनी की कप्तानी में हारने के बाद टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने अपनी साख ज़माने को ऐसा पिच तैयार करवाया जिससे भारत जीते और उन्हें वन डे की कप्तानी भी मिल जाए.

भारत ने ये मैच और सीरीज ज़रूर जीत ली लेकिन क्रिकेट के अनुसार ऐसा पिच अच्छा नहीं था.

भारतीय टीम और अश्विन को श्रृंखला जीतने के लिए बधाई. आशा करते है विदेशी धरती पर भी उनका प्रदर्शन अच्छा रहेगा.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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