पाक की सेना – सन् 1971 में पाकिस्तानी सेना के जंगी जहाजों ने भारत पर हमला कर दिया था।
उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली से बाहर गई हुईं थीं लेकिन जैसे ही उन्हें ये सूचना मिली वो तुरंत वापिस लौट आईं। तब इंदिरा गांधी ने रात के 11 बजे आर्मी ऑफिसर्स, कैबिनेट के नेताओं के साथ मीटिंग की।
इस मीटिंग के बाद ऑल इंडिया रेडिया पर एक अनाउंसमेंट हुई जिसमें कहा गया था – कुछ ही घंटो पहले पाक की सेना – पाक के हवाई जहाजों ने भारत के अमृतसर, पठानकोट, श्रीनगर, अवंतीपुर, जोधपुर, अंबाला और आगरा के एयरपोर्ट पर बमबारी की है। इंदिरा ने खुद कहा कि मुझे भारत की बहादुर सेना पर पूरा भरोसा है।
इस बारे में आर्मी के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एस.के सिन्हा ने कहा कि उन्होंने बमबारी शुरु कर दी थी और वो भी इसके जवाब के लिए तैयार थे।
इस हमले के ठीक सात महीने हले 25 अप्रैल को इंदिरा गांधी ने एक मीटिंग की थी जिसमें जनरल सैम मानेक शॉ को भी बुलाया गया था। इंदिरा बांग्लादेश से भारत आ रहे शरणार्थियों को लेकर भी चिंतित थीं। इसे रोकने के लिए इंदिरा युद्ध को भी तैयार थीं लेकिन शॉ ने कहा कि कुछ दिनों में मॉनसून आने वाला है और उस इलाके में इस दौरान नदियां समुद्र बन जाती हैं। ऐसे में हवाई हमला विफल हो जाएगा। युद्ध के लिए हमें थोड़े समय रूक जाना चाहिए।
मीटिंग के सात महीने बाद ही पाकिस्तानी सेना ने हमला बोल दिया।
तब भारत की मदद के लिए अमेरिकी सेना भी आने वाली थी लेकिन इंदिरा ने फैसला किया कि अमेरिकी बेड़े के भारत पहुंचने से पहले ही पाकिस्तान को सरेंडर पर मजबूर करना होगा। सैम मानेक शॉ ने पाक सेना को सरेंडर करने के लिए कहा लेकिन वो नहीं मानी। इसके बाद 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक ऐसी जगह को निशाना बनाया जिसकी पाकिस्तान को उम्मीद ही नहीं थी। भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला कर दिया।
दो दिन पहले भारत को चुनौती देने वाले पाक की सेना के पूर्वी कमांडर लेफ्टिनेट जनरज नियाजी पस्त हो गए।
उन्होंने भारत को युद्ध खत्म करने का प्रस्ताव भेज दिया। तब मानेक शॉ ने कहा कि युद्ध पर विराम तभी लगेगा जब पाक सेना सरेंडर करेगी। बाद में पाकिस्तानी सेना ने हथियार डाल दिए।
इसके बाद ढाका एक स्वतंत्र देश की राजधानी बन गई और पाक की सेना के पूर्वी कमान की ओर से लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 16.31 बजे ढाका में हस्ताक्षर कर दिए। इस युद्ध में पाकिस्तान का नक्शा ही बदल गया। अब भारत के पूर्वी और पश्चिमी किनारे पर पाक एक देश ना रहा बल्कि यहां एक नए आजाद देश का जन्म हुआ जिसका नाम था बांग्लादेश।
पूर्वी सीमा पर इस जीत के साथ इंदिरा ने पश्चिमी सीमा पर एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी। इस पर इंदिरा का विरोध भी किया गया लेकिन इस सबसे इंदिरा यही संदेश देना चाहती थीं कि भारत जबरदस्ती या बेवजह का युद्ध नहीं चाहता है।
लगता है कि पाक की सेना ने इस युद्ध से भी कुछ नहीं सीखा और अब भी वो अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया है।
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