भारत और पाक – आए दिन कोई ना कोई नेता या सांसद पाकिस्तान से संबंधित ऐसे बयान देते हैं कि पूरे देशवासियों की नजरें पाकिस्तान पर चली जाती है।
हाल ही में वहां के किसी आर्मी अफसर ने भारत पर आक्रमण करने की बात कही तो सारे राजनीतिज्ञ प्रतक्रिया देने लगे। लेकिन क्या सच में पाकिस्तान द्वारा कुछ भी बचकाना बयान पर हमारे जिम्मेदार सांसदों और राजनेताओं द्वारा बयां देना जरूरी है?
हर बात पर पाकिस्तान को इतनी अहमित क्यों दी जाए जबकि वह इस अहमियत को डिज़र्व ही नहीं करता। कहा जाता है ना कि दोस्ती और दुश्मनी बराबरवालों से की जाती है। तो फिर पाकिस्तान को इतनी तवज्जो क्यों? पाकिस्तान को इतनी तवज्जो मिलती देख कभी तो ऐसा लगता है कि क्या भारत पाकिस्तान नाम की बीमारी से ग्रस्त है?
लगता तो ऐसा ही है। इसे ऐसे समझें…
समाचारों में पाकिस्तान, पाकिस्तान और पाकिस्तान
भारत और पाक – आजादी के 71 वर्ष बीत चुके हैं। लेकिन अभी भी हमारे रक्षा और विदेशी समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या पाकिस्तन ही है। समाचार चैनलों और पत्रों में जितनी सामग्री अन्य सभी देशों को मिलाकर देते हैं उतनी अकेली सामग्री पाकिस्तान पर ही प्रस्तुत की जाती है। पाकिस्तान ने ये कहा, पाकिस्तान से जीत जरूरी, पाकिस्तान में वहां पर आतंकवादी है… फलाना, ढिमका करना यह चाहिए- सबको मालूम है कि पाकिस्तना आतंकवादियों का गढ़ है। तो इस पर इतना बवाल क्यों चुपचाप से हर संबंध उनसे काट दो। अमेरिका के इतने हाथ जोड़ना क्यों और चीन से इतनी बहस करना क्यो?
जबकि होता यह है- पाकिस्तान के बारे में हर छोटी से छोटी खबर को हाथों-हाथ लिया जाता है। मिसाल के तौर पर हाल ही में अहमदिया संप्रदाय के आर्थिक सलाहकार को पद से हटाए जाने की खबर को हमारे मीडिया में जो प्यार नजर आया उसके क्या कहने।
क्या ये जरूरी था ?
क्या कहता है इतिहास?
अब तक भारत और पाक में चार युद्धु हुए हैं और हर बार हमें ही जीत मिली है। वर्ष 1971 में तो हमने पाकिस्तान के दो टुकड़े ही कर दिए। ऐसे में अगर उनमें गुस्सा है तो हमें यह सोचकर आशंकित नहीं होना चाहिए कि वे हमारा कुछ बिगाड़ सकते हैं। पाकिस्तान की आबादी हमारी आबादी का पांचवा हिस्सा है। उसकी अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है। हमारी प्रतिव्यक्ति आय पाकिस्तान से कहीं अधिक है। हमारी सेना उससे काफी मजबूत है और हमारी वैश्विक छवि एक उभरती विश्वशक्ति की है। फिर भी लोगों को शंका है कि पाकिस्तान हमें नुकसान पहुंचा सकता है। कैसे लेकिन ?
केवल परमाणु संपन्न देश होने के कारण
सबको मालूम है कि पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश है। लेकिन केवल इस आधार पर ही ये मान लेना काफी नहीं है कि पाकिस्तान हमें नुकसान पहुंचा सकता है। खुद पाकिस्तान, वर्ष 1971 तक खुद की सेना को भारतीय सेना से बेहतर मानती थी लेकिन उस साल के युद्ध ने सबकुछ जाहिर कर दिया। फिर अब तो 1971 की तुलना में भारत, पाकिस्तान से कहीं अधिक मजबूत बन गया है जबकि पाकिस्तान अब भी उस युद्ध को भुला नहीं पाया है। क्योंकि उस जंग ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे और उसके 90,000 से अधिक जवानों ने उस सेना (भारतीय सेना) के सामने घुटने टेक दिए थे जिसे वह खुद से कमजोर मानता था।
इसलिए कर रहा आतंकवाद को प्रोत्साहित
पाकिस्तान को उस जंग के बाद से मालूम चल गया है कि वह भारत को कभी भी हरा नहीं सकता। चीन के साथ मिलकर भी नहीं। इसलिए वह आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा है। लेकिन कहा जाता है ना कि जब आप किसी को जलाने के लिए अपने हाथ में आग लेते हो तो सबसे पहले खुद के ही हाथ जलते हैं। यही चीज पाकिस्तान पर सटीक बैठ रही है।
ना रखें पाकिस्तान से कोई उम्मीद
पाकिस्तान से फिलहात तो यह उम्मीद रखनी बेमानी है कि वह निकट भविष्य में अपनी सोच और मंसूबे में कोई परिवर्तन लाएगा। भले ही उसे हमारे साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों से कितना ही लाभ क्यों ना हो रहा हो। संक्षेप में कहें तो पाकिस्तान की भारत संबंधी नीतियों पर सेना का नियंत्रण रहेगा। लेकिन पाकिस्तान जाने वाले भारतीय, मित्रता और मेजबानी की खुशनुमा यादों के साथ वापस आएंगे। इस रिश्ते की यही विडंबना है।
भारत और पाक – इसलिए हमें अपना ध्यान बड़े लक्ष्यों पर लगाना चाहिए। हमें अपना ध्यान उन बातों पर लगाना चाहिए जो हमें आगे ले जा सकें और पाकिस्तान इन सब लक्ष्यों में दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आता। इसलिए पाकिस्तान नाम की बीमारी से हमें ग्रस्त होने की जरूरत नहीं।
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