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केवल 5 मिनट में जानिए 1965 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध की कहानी

भारत पाकिस्तान के युद्ध की कहानी आज भी लोग बड़े चाव से सुनते हैं। क्योंकि ये भारत के शौर्य की कहानी कहता है। इस युद्द में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। लेकिन क्या आपको भारत-पाकिस्तान के युद्द की पूरी कहानी मालूम है?

अगर नहीं… तो आज ही केवल पांच मिनट में 1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध की कहानी जानिए।

भारत पाकिस्तान के युद्ध की कहानी –

अगस्त 1965 से सितंबर 1965

साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच अगस्त से सितंबर के बीच हुई थी। इस युद्ध को कश्मीर का दूसरा युद्ध भी कहते है क्योंकि सन 1947 के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर को हथियाने के लिए दूसरी बार भारत पर हमला किया था। पर भारत ने इस हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया और पाकिस्तान को युद्ध विराम के लिए राज़ी होने पर मजबूर कर दिया था।

‘कच्छ के रण’ का विवाद

इस युद्ध से पहले ‘कच्छ के रण’ का विवाद शुरू हुआ था। ये आजादी के बाद का समय था जब दोनो देशों के बीच कश्मीर मुद्दे के सिवाय ‘कच्छ के रण’ की सीमा का विवाद भी जारी था। कच्छ का रण गुजरात में स्थित है और यह एक दलदली और बंजर इलाका है। इस हिस्से पर पाकिस्तान अपना हक मानता है। अप्रैल 1965 में कच्छ के रण में पाकिस्तान ने जानबूझकर झड़पे शुरू कर दी थीं। पाकिस्तान ने इसे ऑपरेशन ‘डेजर्ट हॉक‘ नाम दिया। उस समय तो 1 जून 1965 को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ने दोनों पक्षों के बीच हस्तक्षेप कर लड़ाई रूकवा दी थी।

ऑपरेशन जिब्राल्टर

पाकिस्तान शुरू से ही भारत से युद्ध करने को लेकर उत्साहित रहता था। इसी वजह से कच्छ के रण की झड़पों से उत्साहित होकर पाकिस्तान के राजनेताओ ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष अयूब ख़ान पर दबाव डाला कि वो कश्मीर पर हमला करने का आदेश दें। जिसके बाद अयूब ख़ान ने गुप्त तरीके से सैनिक अभियान ऑपरेशन जिब्राल्टर का आदेश दे दिया जिसका उद्देश्य भारतीय कश्मीर में विद्रोह भड़काना था।

पाकिस्तान के भारत पर हमला करने के कुछ और कारण भी थे, जैसे कि 1965 से पहले 1962 में भारत चीन से जंग हार चुका था और पाकिस्तान को अमेरिकी गुट में शामिल होने के कारण उससे काफ़ी तरह के आधुनिक हथियार मिल चुके थे जबकि भारत को किसी देश का साथ नही था।

पाकिस्तानी सैनिकों ने की कशमीर में घुसपैठ

जिसके बाद पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी। ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत 5 अगस्त 1965 को 25 से 30 हज़ार पाकिस्तानी सैनिक भारत के हिस्से वाले कश्मीर में स्थानीय लोगों के कपड़े पहन कर घुसे। भारतीय सेना को जब इसका पता चला तो उन्होंने तुरंत पाकिस्तानी सेना को खदेड़ना और गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।

15 अगस्त को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में हमला बोला, 28 अगस्त तक भारत पाकिस्तानी कश्मीर के 8 किलोमीटर अंदर तक घुस चुका था और भारत ने हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान का ऑपरेशन जिब्राल्टर फेल हो गया। उधर भारतीय सेना पाकिस्तानी कश्मीर के महत्वपूर्ण शहर मुजफ्फराबाद के सिर पर आ पहुँची थी।

भारत का लाहौर पर हमला

मुजफ्फराबाद पर दबाव कम करने के लिए पाकिस्तान ने 1 सितंबर 1965 को ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया जिसका उद्देश्य जम्मू और कश्मीर के शहर अखनूर पर कब्जा कर कश्मीर को भारत से अलग करना था। जिससे की मुजफ्फराबाद के लिए लड़ रहे भारतीय सैनिकों की रसद और संचार व्यवस्था को रोक दिया जाए।

ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम का प्रभाव कम करने के लिए प्रधानमंत्री श्री लाल बहादूर शास्त्री जी ने भारतीय सेना को एक्शन लेने का आदेश दिया जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने 6 सितंबर को पंजाब से नया मोर्चा खोल दिया ताकि लाहौर पर कब्जा किया जा सके। लाहौर पर हमले की खब़र सुनते ही कश्मीर में लड़ रही पाकिस्तानी सेना लाहौर को बचाने के लिए निकल पड़ी, कश्मीर में पाकिस्तान का प्रभाव कम होने के साथ ही उसका ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम भी फेल हो गया।

भारत पाकिस्तान के युद्ध की कहानी –

भारत की सियालकोट और पाकिस्तान की खेमकरण में असफलता

असल उत्तर में पाकिस्तान के तबाह किए गए टैंक इस तरह सजाए गए थे। लाहौर वाले ऐरिया में पकड़ मज़बूत करने के बाद भारत ने पाकिस्तान के सियालकोट पर हमला कर दिया पर इस अभियान में भारत को सफलता नही मिल पाई। उधर पाकिस्तान ने अमृतसर पर कब्ज़ा करने के लिहाज़ से खेमकरण सेक्टर पर हमला कर दिया। खेमकरण के असल उत्तर (असल उताड़) गांव में भयंकर लड़ाई हुई जिसमें पाकिस्तान हार गया। असल उत्तर की लड़ाई में पाकिस्तान के पास 200 से ज्यादा अमेरिकी पैटन टैंक थे, पर उनमें से 100 से भी ज्यादा भारत द्वारा नष्ट कर दिए गए। असल उत्तर की इसी लड़ाई में ही वीर अब्दूल हमीद पाकिस्तान के तीन टैंक तबाह करके शहीद हो गए थे।

युद्ध विराम की घोषणा

UN द्वारा दोनो देशों पर युद्ध रोकने का दबाव बढ़ता ही जा रहा था, भारत युद्ध विराम के लिए राज़ी था पर लड़ाई तब तक नही रोकी जब तक कि पाकिस्तान भी इसके लिए राज़ी ना हो गया।

अंत दोनो देश 22 सितंबर को युद्ध विराम के लिए राज़ी हो गए। 23 सिंतबर की सुबह 3 बज़े शास्त्री जी ने देशवासियों को युद्ध बंद होने की जानकारी दी।

ताशकंद समझौता

युद्ध विराम के बाद जनवरी 1966 में रूस के ताशकंद शहर में दोनो देशों का समझौता कराया गया जिसके तरह दोनो देशों को एक दूसरे की जीती जमीन वापिस करनी थी। शास्त्री जी जीती हुई जम़ीन वापिस करने को तैयार नही थे पर बड़ी शक्तियों के दबाव में उन्हें मजबूरन इस समझौते पर दस्तख़त करने पड़े। इस समझौते के कुछ घंटे बाद ही उनकी दुःखद मृत्यु हो गई।

ताशकंद समझौते के बाद युद्ध खत्म हो गय था और फरवरी 1966 तक दोनो देशों की सेनाएं अपनी अपनी जमीन पर वापस चली गई थी।
तो ये थी भारत-पाकिस्तान की जंग-ए-दास्तां जिसे आज भी भारत में काफी अभिमान के साथ सुनाया जाता है और पाकिस्तान इसका बदला लेने के लिए आज भी तरसता है।

ये है भारत पाकिस्तान के युद्ध की कहानी –

Tripti Verma

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