JNU विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.
कन्हैया को विपक्ष द्वारा दिए जा रहे समर्थन की वजह से कन्हैया अब पूरी तरह राजनैतिक जोड़ तोड़ वाली बातें करने लगा है.
जिस प्रकार जेल से निकलते ही कन्हैया की आज़ादी के सुर बदले और उसने वामपंथी दलों के लिए चुनाव प्रचार करना स्वीकार किया उससे तो यही लग रहा है कि कन्हैया को और कुछ नहीं बस अपना राजनैतिक कैरियर बनाना है.
अपने राजनैतिक कैरियर को सँवारने के लिए अब कन्हैया ध्रुवीकरण की घटिया राजनीती कर रहे है.
पिछले कुछ दिनों से सेना की तरफ से कन्हैया के बयानों के विरोध के बाद अब कन्हैया ने भी भारतीय सेना पर वार करना शुरू कर दिया है.
कन्हैया की भाषा भी किसी अलगाववादी से कम नहीं है.
अपने एक भाषण में कन्हैया ने सुरक्षा बलों को बलात्कारी कहा है.
कन्हैया ने कहा कि भारतीय सेना कश्मीर और उत्तर पूर्व में सिर्फ बलात्कार करती है. शायद कन्हैया को ये याद नहीं कि जिस समय वो ये बकवास कर रहे थे उसी समय भारतीय सेना के जवान नक्सलियों से लड़ रहे थे और गाँव वालों को चोट ना लगे इस लिए उनमें से एक सैनिक ने ग्रेनेड का इस्तेमाल भी नहीं किया और गाँव को बचाने के लिए अपनी जान दे दी.
कुछ सैनिकों के बुरे बर्ताव का ये मतलब नहीं कि पूरी की पूरी सेना को बलात्कारी कह दिया जाए. कन्हैया और उनके अंधे समर्थकों और उनके मतलब परस्त नेताओं को समझ लेना चाहिए सरहद पर सेना है इसीलिए वो इतने खुले आम ये बकवास कर रहे है.
जब कश्मीर में बाढ़ से लाखों लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे तो वो भारतीय सेना ही थी जिसने जान पर खेलकर कश्मीरी लोगों को बचाया था और उस समय कन्हैया जैसे लोग ना जाने JNU के कौनसे कमरे में चैन की नींद सो रहे थे.
कन्हैया ये ध्यान रखना जिस भारतीय सेना को तुमने बलात्कारी कहा है उसी सेना ने कश्मीर में आई बाढ़ में फंसे 15000 से भी ज्यादा लोगों को जिंदा बचाया था.
कन्हैया और उनके जैसे लोग वो लोग है जो करते धरते कुछ नहीं बस मुद्दों को दबोच कर उनपर बयानबाजी करके अपना फायदा देखते है.
जिस साम्यवाद की ये बात करते है उसी साम्यवाद पर चलने वाले चीन ने सन 1989 में अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए प्रदर्शन करने वाले सैकड़ों छात्रों को चौराहे पर गोलियों से भून दिया था.
भारत की जिस व्यवस्था प्रणाली को ये लोग जब तब गाली देते रहते है लेकिन भूल जाते है कि इसी प्रणाली की वजह से उनकी अभीव्यक्ति की आज़ादी है.
जो JNU अभिव्यक्ति की आज़ादी पर शोर मचा रहा है दो दिन पहले उसी JNU में उनके ही प्रोफेसर मकरंद परांजपे के वक्तव्य में शोर मचाया गया, हूटिंग की गयी. कारण सिर्फ इतना था कि उन्होंने कन्हैया से कुछ तर्कसंगत सवाल पूछे थे.
कन्हैया ही नहीं JNU के कुछ प्रोफेसर के भी अत्यंत विवादास्पद बयान और भाषण देखने को मिल रहे है.
इसी कड़ी में 22 फरवरी का एक विडियो सामने आया है ,जिसमे JNU की प्रोफेसर निवेदिता मेनन कश्मीर की आज़ादी सम्बन्धी नारों को सही ठहरा रही है.
इस भाषण में वो ये भी कह रही है कि भारत ने कश्मीर को गैरकानूनी ढंग से हथियाया है.
इनके अनुसार हर किताब और इतिहासकार ने इस तथ्य को छुपाया है और वो कश्मीर की आज़ादी का समर्थन करती है.
मेनन के अनुसार बहुत सी विदेशी पत्र पत्रिकाओं में कश्मीर को भारत से अलग दिखाया जाता है. उनके अनुसार पूरी दुनिया इस बात को जानती है और इस बारे में बात कर रही है कि कश्मीर को भारत ने हथियाकर रखा है.
अब पता नहीं निवेदिता मेनन कौनसी पात्र पत्रिकाओं की बात कर रही है, शायद ये सब पत्र पत्रिकाएं चीन और उत्तरी कोरिया में छपती होगी.
या फिर ये भी हो सकता है कि भाषण देने से पहले शायद उन्होंने थोडा दम मार लिया था जिसकी वजह से ऐसे तथ्य निकाल रही थी.
मजाक एक तरफ लेकिन गंभीरता से सोचे तो ये एक बहुत ही खतरनाक बात है. छात्र कच्ची मिटटी की तरह होते है और उन्हें जैसे चाहे वैसे ढाला जा सकता है.
अब ऐसा लग रहा है कि कट्टर वामपंथी और कट्टर दक्षिणपंथी दोनों ही अपने फायदे के लिए इस युवा वर्ग का इस्तेमाल कर रहे है.
इस तरह के भड़काऊ बयान और भाषण राजनैतिक लाभ भले ही दिला देते है लेकिन देश की एकता और अखंडता और लोगों के बीच स्नेह और भाईचारे के लिए ये सब बहुत बड़ा खतरा है.
इसलिए हमें इन सब पर ध्यान ना देते हुए अपने विवेक से हर बात को सोचना और समझना होगा यदि हम बहक गए तो ये पिस्सू कब देश का खून चूस जायेंगे हमें पता भी नहीं चलेगा.
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