भारत में आरक्षण – भारत में अलग अलग तरह की जाति धर्म के लोग रहते है ।
जाति धर्म अलग होने की वजह से भी विचारधारा अलग है । जैसे हिंदुओं में मनु ने लोगो को उनके कर्म के अनुसार चार जातियों में बांटा था – पंडित , क्षेत्रीय , वैश्य और क्षुद्र । प्राचीन काल में पढाई लिखाई यानि ज्ञान प्राप्ति का अधिकार सिर्फ पंडितों का था वही क्षेत्रीय योद्धा थे , वैश्य व्यापार और क्षुद्र साफ सफाई का काम करते थे ।
लेकिन वक्त के साथ लोगो ने कहा कि पंडित का बेटा जन्म से पंडित है ।
यानि धीरे धीरे लोग जाति को जन्म के आधार पर जाति में बांट दिया गया ।
यानि क्षेत्रीय का बेटा जन्म से ही योद्धा है वो सिर्फ युद्ध ही करेगा । जिस वजह से लोगो के बीच भेदभाव की स्थिति शुरु हो गई और क्षुद्र को सबसे निचली जाति माना जाने लगा और उन्हे अछूत कहकर अलग कर दिया गया । जिसका फायदा ब्रिटिशों ने बखूबी उठाया। लेकिन बदलते वक्त के साथ बदलाव शुरु हुए पढे लिखे लोगो ने आवाजे उठानी शुरु की और आजादी के बाद समाज से अलग किए इन पिछडे वर्गों के लिेए संविधान में आरक्षण का प्रवाधान किया गया ताकि इस वर्ग के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म किया जा सके ।
पहले ये भारत में आरक्षण सिर्फ 10 साल के लिए था लेकिन सरकारें बदलने के साथ आरक्षण की उम्र भी बढ़ती गई ।
आरक्षण के कारण पिछडें वर्गों ने तो तरक्की करना शुरु कर दिया लेकिन वही दूसरे कई वर्गो ने भी खुद को पिछड़ा़ कहकर आंदोलन धरने देना शुरु कर दिया । पिछले साल हरियाण का जाट आंदोलन और गुजरात में पटेल आंदलोन इसका सबसे अच्छा उदाहरण है . लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या सच में भारत में अभी भी आरक्षण जरुरी है । क्या जो सुमदाय अब आरक्षण की मांग कर रहे वो सच में पिछडे हुए है ।
ये सच है कि आरक्षण को एक दम से हटाया नही जा सकता । क्योंकि बहुत से लोग अभी भी समाज में ऐसे है जो समाज के कुछ वर्गो को अछूत मानते है लेकिन इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता कि आज के दौर का युवा चाहे वो किसी भी वर्ग से हो अपने आस्तिव की लडाई लडना अच्छे से जानता है । वो किसी आरक्षण से कही ऊपर है । कई युवाओं का तो ये भी माना है कि अब आरक्षण हटा देना चाहिए । और अगर आरक्षण दिया भी जाए तो वो जाति या वर्ग के आधार पर नही आर्थिक स्थिति के आधार पर दिया जाना चाहिए । क्यों कि ये जरुरी नही कि जो वर्ग की पिछडा नही रहा उसमें गरीब परिवार नही है ।
समाज के बहुत से लोग आरक्षण को हटाने की मांग कर चुके है । हाल ही में भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर ने कहा कि “अब एक दलित राष्ट्रपति बन चुका है इसलिए भारत से आरक्षण खत्म कर दिया जाना चाहिए ।” खैर ऐसे मुद्दों पर राजनेताओं की बातों को गंभीरता से लेने की बजाय दूसरे तर्क रखने चाहिए क्योकिं राजनेता अच्छा बोले या बुरा अपना हित देखकर ही बोलते है समाज का नही ।
लेकिन इस मुद्दे पर विचार करना बहुत जरुरी है क्योंकि अगर सभी समुदाय भारत में आरक्षण की मांग करने लगेंगे तो समाज सिर्फ टुकडों में बंट कर रह जाएगा ।
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