क्या आप जानते हैं भगवान जगन्नाथ की मूर्तियाँ अधूरी क्यों रह गई थी !
जगन्नाथ में भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा साक्षात रूप में निवास करते है.
साल में एक दिन पूरे धूम धाम से जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है और देश भर में रथ यात्रा की धूम भी दिखाई देती है.
लेकिन जगन्नाथ में स्थापित मूर्तियों को देखकर सबके मन में यह सवाल जरुर आता है कि आखिर क्या कारण है कि जगन्नाथ की मूर्तियाँ अधूरी है.
आइये जानते है क्यों जगन्नाथ की मूर्तियाँ अधूरी है !
यह मंदिर कृष्ण लीला से जुड़ा हुआ है. उस लीला में भगवान कृष्ण और बलराम कृष्ण की पत्नियों संग रूप बदलकर यशोदा से कृष्ण लीला सुन रहे थे.
उस लीला के दौरान नारद जी का आगमन हुआ और सबको कृष्ण बलराम के रूप बदलकर कथा सूनने की बात पता चली.
तब नारद के आग्रह पर कृष्ण ने नारद को वचन दिया था कि अपने उस रूप को स्थापित करायेंगे.
उस वचन के कारण ही भगवान कृष्ण ने राजा को अपने मंदिर की स्थापना के लिए आदेश दिया.
उस आदेशानुसार राजा द्वारा मंदिर बनवाने की लिए योग्य कारीगर की तलाश की जा रही थी.
तब एक बूढ़ा ब्राह्मण राजा के समक्ष आकर इस कार्य को करने हेतु अनुमति मांगता है. इसके साथ मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित करने की बात कहता है और मंदिर की पूरी जिम्मेदारी अपने हाथ ले लेता है.
लेकिन उस कारीगर रूप में आये बूढे ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह यह कार्य बंद कमरे में एक रात में ही करेगा और यदि कमरा खुला तो वह काम बीच में ही छोड़कर चला जाएगा.
राजा ने उस ब्राह्मण की शर्त मान ली और कमरा बाहर से बंद करवा दिया. लेकिन काम की समीक्षा करने के लिए राजा कमरे के आसपास घुमने जरुर आता था.
कुछ वक़्त तक कमरे से काम चलने की आवाजें आती रही. फिर अचानक कमरे से काम करने की आवाजें बंद हो गई.
तब राजा घबराकर सोचने लगा कि कही उस बूढ़े ब्राह्मण को कुछ हो तो नहीं गया.
राजा ने डर में दरवाजा खोल दिया और दरवाजा खुलते ही वह ब्रम्हाण उस अधूरी मूर्तियों को छोड़ कर गायब हो गया.
वास्तव में वह बूढा ब्राह्मण विश्वकर्माजी थे, जो भगवान विष्णु के आग्रह पर यह जगन्नाथ मंदिर में कृष्णा, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनाने धरती पर आये थे.
विश्वकर्मा जी ने यह निर्माणकार्य एक रात में पूरा करके देने की बात कही थी. क्योकि विश्वकर्मा जी द्वारा बनाए जाने वाली सभी मूर्तियाँ या मंदिर का निर्माण वह एक रात में ही करते थे.
काम पूरा हो न हो अगर सुबह हो गई है तो विश्वकर्मा जी उस कार्य को रोककर सूर्य उदय से पहले छोड़ देते थे.
इस मंदिर के मूर्ति निर्माण के लिए भी विश्वकर्माजी एक ही रात का समय निश्चित किया था.
परन्तु अन्य देवता नहीं चाहते थे कि भगवान कृष्ण, सुभद्रा और बलराम के वास्तविक रूप को कोई साधारण इंसान देख सके. इसलिए सूर्योदय से पहले काम में विघ्न डालने के लिए राजा को माध्यम बनाकर भेज दिया.
जिससे जगन्नाथ की यह मूर्तियाँ अधूरी ही रह गई और अधूरी ही स्थापित कराई गई.
इस तरह जगन्नाथ की मूर्तियाँ आज भी अधूरी है.
ये कहा जाता है जो भी होता है उसके पीछे एक वजह होती है. आपने जाना कि किस वजह से जगन्नाथ की मूर्तियाँ जानबूझकर अधूरी छोड़ दी गई.