एक कहावत बहुत मशहूर है कि जो जीतता है वह इतिहास लिखता है.
जीतने वाला अपनी तरह से इतिहास लिखता है. इसी क्रम में जब महाभारत का युद्ध हुआ तो पांडव जीतकर सामने आये और उन्होंने अपनी तरह से अपना इतिहास लिखा. लेकिन आपको क्या लगता है कि महाभारत के युद्ध में धर्म किसकी तरफ था?
पांडवों की तरफ धर्म कैसे हो सकता है क्योंकि वह तो काफी छल से युद्ध जीत रहे थे. अंत में दुर्योधन की मौत भीम के हाथों छल से ही हुई थी. तो क्या धर्म कौरवों की तरफ था? शायद यह हो सकता है.
1. दुर्योधन कैसे खलनायक बना दिया गया?
आज हम बिना सोचे बोल देते हैं कि दुर्योधन खलनायक था. इसी के कारण युद्ध लड़ा गया था. लेकिन मैं आपसे एक सवाल पूछता हूँ कि आपके पिता के हिस्से की जायदाद आपके पिता के भाई को दे दी जाती है. तब आप क्या अपने हक़ के लिए लड़ाई नहीं लड़ेंगे?
धृतराष्ट्र अंधे होने की वजह से राजा नहीं बनता है. इसका मतलब साफ है कि आप तो अन्याय कर रहे हैं. एक विक्लांग को उसकी विक्लांगता के आधार पर गलत व्यवहार कर रहे हैं. आप खुद को धार्मिक नहीं बोल सकते हैं.
चलो एक अँधा पिता नहीं बन सकता है राजा, कोई नहीं मान लेते हैं. लेकिन जब अंधे का बेटा बड़ा हुआ तो उसको आखिर क्यों राजा नहीं बनाया जा रहा था.
2. अपनी महिला को जुए में प्रयोग करना, धर्म है क्या?
पहली बात तो धर्म कभी भी इस बात की अनुमति नहीं देता है कि आप जुआ खेलो. चलो खेल ही लिया है तो अपनी औरत का प्रयोग कर, महिला जाति का अपमान करो. क्या आप इसको धर्म्म बोलते हैं क्या? दुर्योधन ने तो बल्कि यह साबित किया था कि पांडव कितने छोटे और गन्दी सोच वाले लोग हैं.
3. भीष्म, द्रोण, कर्ण, और दुर्योधन को छल से मारना, धर्म नहीं है
अरे जितना छल, कपट पांडवों ने युद्ध जीतने के लिए किया था, वह कतई धर्म नहीं हो सकता है. अब एक युद्ध तो भगवान राम ने भी लड़ा है. जैसे को तैसा वहां तो नहीं हुआ है. क्या राम की तरफ से किसी ने रावण की पत्नी पर निगाह डाली थी. क्या राम जी ने छल किया था.
महाभारत में भीष्म, द्रोण, कर्ण और दुर्योधन सभी को छल से मारकर युद्ध जीता गया था. अधर्म की यही परिभाषा होती है जो यहाँ साफ़ देखी गयी है. भीष्म तो अधर्मी नहीं थे, द्रोण जी को पांडवों के भी गुरु थे. यह दोनों अधर्म से क्यों हराये गये.
4. पांडवों का यह धर्म देखो
क्या होता अगर दुर्योधन को कोई बोलता कि वह भीम की जांघ पर वार करे, या कोई कर्ण की तरफ होता और कर्ण को मौका मिलता तो उस स्थिति में क्या होता. लेकिन दुर्भाग्य रहा कि दुर्योधन को किसी ने नहीं बताया कि जांघ पर वार करो. दुर्योधन अगर कपटी या खलनायक था तब वह अंतिम बार भीम से लड़ता हुआ छल क्यों नहीं करता है. वहां जब मौत उसके सामने थी तो क्यों आखिर उसको ईमानदारी याद आ रही थी.
इस सवाल का जवाब देना बहुत मुश्किल हो जाता है कि धर्म पांडवों की तरफ पूरी तरह से था. ऐसा कहना भी गलत है कि कौरव अधर्मी थे. जितने धार्मिक लोग कौरवों की तरफ थे उतने पांडवों के पास भी नहीं थे.
बस इतिहास ने कौरवों के साथ पूरा अन्याय नहीं किया है. और साथ ही साथ महाभारत में धर्म पांडवों की तरफ था यह बिना सोचे समझे बोलना भी गलत ही है.
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