नेता इमरान खान – पाकिस्तान में 25 जुलाई को आम चुनाव होने हैं, मगर इन चुनावों पर आतंकी हमले का साया मंडरा रहा है.
मंगलवार को ही पेशावर में एक चुनावी रैली में आत्मघाती हमला हुआ जिसमें कई लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए. आतंक की फैक्ट्री बन चुके पाकिस्तान में अब उनके ही नेताओं पर हमले का खतरा मंडरा रहा है.
हमेशा से आतंकियों का पनाहगार रहा पाकिस्तान अब अपने ही बोए कांटे की चुभन से लहूलुहान हो रहा है. आतंकियों को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान अब खुद इसकी मार से बेहाल है. किसी ने सच ही कहा है दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदने वाले खुद ही उसमें गिरते हैं, पाकिस्तान का हाल भी कुछ ऐसा ही है. भारत में आंतकवाद फैलाने के लिए पहले तो उसने आतंकियों को शरण दी और अब यही उसका सिरदर्द बन चुके हैं. पाकिस्तान के राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी प्राधिकरण (नैक्टा) ने हाल ही में उन 6 नेताओं के नाम का खुलासा किया है जिन्हें चुनाव प्रचार के दौरान आतंकवादी निशाना बना सकते हैं.
यानी इन 6 नेताओं पर हमेशा हमले की तलवार लटकी है. नैक्टा के डायरेक्टर ओबेद फारुख ने सेनेट की स्थाई समिति को उन 6 नेताओं के नाम बताएं जो आतंकियों के निशाने पर हैं. उनके नाम हैं-
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान
अवामी नैशनल पार्टी के नेता असफंदियार वाली
अवामी नैशनल पार्टी के नेता अमीर हैदर होती
कौकमी वतन पार्टी के प्रमुख अफताब शेरपाओ,
जमियत उलेमा-ए-इस्लाम-फजल के नेता अकरम खान दुर्रानी
और हाफिज सईद के बेटे तहला सईद.
इतना ही नहीं एक प्रमुख अखबार की खबर के मुताबिक पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के वरिष्ठ नेतृत्व पर भी खतरा है. नेक्टा ने नेताओं पर मंडराते इस सकंट से सुरक्षा एजेंसियों को आगाह कर दिया है. साथ ही गृह मंत्रालय को उन लोगों को पूरी सुरक्षा देने का निर्देश दिया गया है जिनकी जान को खतरा है.
उधर मंगलवार रात पेशावर में हुए आतंकी हमले में करीब 20 लोगों के मारे जाने की खबर है जिसमें अवामी नैशनल पार्टी (एएनपी) के नेता हारून बिल्लौर भी शामिल हैं. आपको बता दें कि पाकिस्तान चुनाव आयोग के सचिव बाबर याकूब ने पहले ही इस बात की आशंका जताई थी कि 25 जुलाई को होने वाले आम चुनावों के दौरान हिंसा भड़क सकती है इसलिए अब नैक्टा के अलर्ट को और सीरियसली लिया जाना चाहिए.
पाकिस्तान में चुनाव हमेशा ही मुसीबत लेकर आते हैं, कभी तो आतंकी हमले का खतरा तो कभी तख्तापल्ट का. अब देखना ये है कि क्या इस बार का चुनाव पाकिस्तान में पूरे लोकतांत्रिक ढंग से हो पाता है या एक बार फिर लोकतंत्र का मज़ाक बनेगा?