शिव के लिए नंदी का समर्पण
असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला तो संसार को बचाने के लिए इस विष को खुद शिव ने पी लिया था. लेकिन विष की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गई, जिसे नंदी ने अपने जीभ से साफ किया था.
नंदी के इस समर्पण भाव को देखकर शिव जी प्रसन्न हुए और नंदी को अपने सबसे बड़े भक्त की उपाधि देते हुए कहा कि मेरी सभी ताकतें नंदी की भी हैं. अगर पार्वती की सुरक्षा मेरे साथ है तो वह नंदी के साथ भी है.
ये थी कहानी शिव और नंदी की – ये तो भगवान शिव के प्रति नंदी की भक्ति और समर्पण का ही कमाल है, जो दोनों का साथ इतना मज़बूत हो गया कि इस कलयुग में भी भगवान शिव के साथ नंदी की पूजा की जाती है.
भगवान शिव नंदी के बगैर अधूरे हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि शिव तो हमेशा ध्यान में लीन रहते हैं इसलिए उनके भक्तों की आवाज उन तक नंदी ही पहुंचाते हैं.