अमर होना कौन नहीं चाहता ?
कौन नहीं चाहता कि वो हमेशा जिंदा रहे जवान रहे और हर युग में हर काल में उपस्थित रहे.
आदि काल से ही देवता या मनुष्य या असुर सब इसी इच्छा की पूर्ति के लिए तप करते थे कि उन्हें अमरत्व का वरदान मिल जाए. लेकिन ऐसा वरदान किसी को नहीं मिला. क्योंकि प्रकृति का नियम है जो आया है वो जायेगा ही.
लेकिन ज़रा सोचिये क्या ऐसा हो सकता है कि नियम बदल जाए, कुदरत का कानून टूट जाए और कोई हमेशा के लिए अजर अमर हो जाये.
अब अगर हम कहे कि ऐसे अजर अमर कोई एक नहीं सात लोग है वो भी कोई देव या असुर नहीं… बल्कि इंसान
सात ऐसे लोग जो अपने जन्म के बाद से लेकर आज तक हर युग में हर काल में मौजूद रहे है.
सात ऐसे महान इतिहास पुरुष जिनमें से कुछ ने मृत्यु पर विजय हासिल की तो कुछ को श्राप मिला पृथ्वी के अंत तक मुक्त ना होने का.
आइये आज आप को मिलते है उन अजर अमर लोगों से…
अश्वत्थामा
द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को अमरत्व प्राप्त है. लेकिन ये अमरत्व कोई वरदान नहीं अपितु अश्वत्थामा का प्रारब्ध है. अश्वत्थामा महाभारत में कुरुक्षेत्र युद्ध लड़ने वाले योद्धाओं में से एकमात्र जीवित योद्धा है. द्रौपदी के 5 निर्दोष पुत्रों की हत्या करने पर श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को पाप मुक्ति के लिए ये प्रारब्ध दिया कि उसे सृष्टि के अंत तक ऐसे ही चिरंजीवी बन भटकना पड़ेगा और ना कोई उससे बात कर सकेगा ना कोई उसे चाहेगा. उसे अपने पापों और घावों के साथ ऐसे ही तडपना होगा.
समय समय पर ऐसी ख़बरें आती है कि अश्वत्थामा को देखा गया. अब इसमें कितनी सच्चाई है ये तो देखने वाले ही जाने.
महाबली
महाबली असुर सम्राट और भक्त प्रह्लाद के पोते थे. महाबली का राज्य तीनों लोकों में फैला था. विष्णु ने जब वामन अवतार में उनसे तीन कदम रखने को जगह मांगी तो उन्होंने अपना राज्य, धरती और पाताल बह्ग्वान वामन को समर्पित कर दिया और तीसरा पग रखने के लिए स्वयं का शरीर प्रस्तुत कर दिया. बलि की इस दानवीरता और साहस को देखकर भगवान् विष्णु ने उन्हें चिरंजीवी बना दिया. चिरंजीवी अर्थात जो चिर काल तक जीवित रहे.
हनुमान
रुद्रावतार और राम भक्त हनुमान के बारे में भी कहा जाता है कि वो भी चिरंजीवी है. रामायण के समय में उन्होंने भगवन राम का साथ दिया.हनुमान की उपस्थिति का वर्णन महाभारत में भी मिलता है . उन्होंने भीम का घमंड तोड़ा और युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ की पताका पर रहकर अर्जुन की शक्ति बढ़ाई. कहा जाता है कि हनुमान को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद सीता ने दिया था.
परशुराम
परशुराम भी चिरंजीवी है. परशुराम का वर्णन रामायण में सीता स्वयंवर के दौरान आता है. जब शिव धनुष तोड़ने पर उन्होंने राम को ललकारा था. वहीँ परशुराम की उपस्थिति महाभारत में भी है. महाभारत में परशुराम को कर्ण और भीष्म का गुरु बताया गया है. इन दोनों को शस्त्र विद्या परशुराम ने ही सिखाई थी. कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम ही कल्कि अवतार के गुरु होंगे.
कृपाचार्य
कृपाचार्य के बारे में अलग अलग लोगों के अलग अलग मत है. कुछ उन्हें चिरंजीवी मानते है और कुछ नहीं. कृपाचार्य कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु थे. महाभारत युद्ध में वो राजधर्म निभाने के लिए कौरवों की तरफ से शामिल हुए थे. कृपाचार्य को गुरु द्रोणाचार्य से भी महान गुरु माना जाता है क्योंकि को अपनी किसी शिष्य में भेदभाव नहीं करते थे.
वेद व्यास
व्यास मुनि ने महाभारत की रचना की थी और वो उस ग्रंथ के एक पात्र भी थे.महर्षि व्यास का वर्णन रामायण के अलावा सतयुग में भी आता है. कहा जाता है कि ब्रह्मा के मानसपुत्र महर्षि व्यास भी चिरंजीवी है.
विभीषण
रावण के भाई विभीषण को भी सात चिरंजीवी में से एक माना जाता है. राम और रावण के युद्ध के दौरान विभीषण ने सही का साथ देने का निर्णय लिया और राम की तरफ आ मिले. विभीषण ने ही राम को रावण की मृत्यु का भेद बताया था. महाभारत में भी विभीषण का उल्लेख मिलता है. जब पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया तब विभीषण ने पांडवों का निमंत्रण स्वीकार किया और उन्हें उपहार भेजे.
ये थे हिन्दू मान्यता के अनुसार ये है वो चिरंजीवी जो अनादिकाल से सृष्टि के अंत तक जीवित रहेंगे. इनमे से 6 चिरंजीवी अपनी योग्यताओं और गुणों के कारण अजर अमर है वही अश्वत्थामा एक श्राप के कारण अमरत्व झेल रहे है.
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