एक बात तो है कि अगर हम महाभारत के समय स्त्रियों को देखते हैं तो हम बोल सकते हैं कि उस समय स्त्रियों को आज की तुलना में अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी.
तब महिलायें एक से ज्यादा मर्दों के साथ सम्बन्ध भी रख रही थीं और कई बार तो स्त्रियों के बच्चों का जन्म बिना शादी के भी हुआ है.
तो क्या हम इन रिश्तों को नाजायज सम्बन्ध बोलें और इस तरह के बच्चे क्या नाजायज बच्चे थे?
कई बार तो पति के होते हुए भी गैर मर्दों की ओर स्त्रियाँ आकर्षित हुई हैं. तो आइये सबसे पहले आपको इस बात के सबूत देते हैं कि हम यह बात झूठ नहीं बोल रहे हैं.
महाभारत एक गाथा नामक पुस्तक में लिखा गया है कि –
- महाभारत की पात्र सत्यवती ने शांतनु से विवाह से पूर्व पराशर से प्रेम संबंध बनाया था जिसके फलस्वरूप वेदव्यास हुए थे.
- वेद व्यास जी अम्बा-अम्बिका के जेठ थे फिर भी कुल की बढ़ोतरी के लिये सत्यवती ने अपनी दोनों बहु को जेठ से संबंध बनाने को बोला था.
- एक मुख्य पात्र पात्र कुंती ने भी विवाह से पूर्व व विवाह के बाद अलग संबंध बनाए थे. विवाह के बाद पांडु के कमजोर पुरुष साबित होने पर इन्होंने पति की इच्छा व सहमति से तीन अन्य पुरुषों से अपनी शारीरिक आवश्यकता, प्रेम संतुष्टि व वंशवृद्धि के लिए प्रेम संबंध स्थापित किया और युधिष्ठिर, भीम और अर्जून को जन्म दिया था.
- इसी तरह से पांडू की दूसरी पत्नी ने बच्चों के जन्म के लिए किसी ने मर्द से संबंध स्थापित किये तब नकुल और सहदेव का जन्म हुआ था.
- तो क्या यहाँ पर यह सोचना सही है कि पाँचों ही पांडव नाजायज संतान थे? बाद में इस पाप को छुपाने के लिए कई तरह की कहानियों का भी जन्म किया गया.
- अंत में शकुन्तला ने भी भरत को कुछ इसी तरह से जन्म दिया हुआ बताते हैं. शकुंतला तो डर था कि इसका पिता इस बच्चे को स्वीकार नहीं करेगा इसलिए बच्चे को अलग तरह से पाला गया था.
तो कुल मिलाकर महाभारत में हमें इस तरह की कई कहानियां मिल सकती हैं. लेकिन एक बात सत्य है कि इससे सनातन धर्म पर कोई आंच नहीं आने वाली है बल्कि इससे तो यह सिद्ध हो रहा है कि तब सनातन की महिलाओं को काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी.
वंश को आगे बढ़ाने के लिए इन महिलाओं ने कितना साहसिक कदम उठाये थे इसलिए इन महिलाओं को तो शत-शत नमन करना चाहिए.