दिल्ली निगम के चुनाव हो चुके हैं और अब सभी रिजल्ट का इन्तजार कर रहे हैं.
दिल्ली निगम के चुनाव अन्य किसी पार्टी के लिए जरुरी हो या ना हो किन्तु केजरीवाल की दिल की धड़कने जरुर तेज हो चुकी हैं. असल में जिस तरह के ब्यान अब केजरीवाल दे रहे हैं उसको देखकर साफ है कि कहीं ना कहीं केजरीवाल व्याकुल हो चुके हैं.
दिल्ली से राजनीति की शुरुआत करने वाले केजरीवाल अब लोकल चुनावों में अपना भविष्य खोज रहे हैं.
जो केजरीवाल अभी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगे थे अब उसको लोकल चुनावों में बचकाने ब्यान देने पड़ रहे हैं. जनता ने केजरीवाल को कहीं ना कहीं एक मौका दिया था. लेकिन अपने लालच के कारण शायद अब वही मौका इनके लिए श्राप बनता नजर आ रहा है. केजरीवाल का हाल का ब्यान कि यदि दिल्ली निगम के चुनाव में हार हई तो वह आन्दोलन करेंगे, यह बचकाना ब्यान ही है.
आपने अभी तक दिल्ली में उन वादों को ही पूरा नहीं किया है जो विधानसभा के समय किये थे. जनता समझ रही है कि कहीं ना कहीं केजरीवाल झूठ बोलते हैं.
कार्य और राजनीति में अनुभव का अभाव ही इनका दुश्मन बन गया है.
इस बार दिल्ली निगम के चुनाव में यदि आम आदमी पार्टी हारती है तो उसके बाद केजरीवाल को इस्तीफा देना चाहिए. इस परिणाम का सीधा सा अर्थ होगा कि केजरीवाल जनता का विश्वास खो चुके हैं. दिल्ली के कई इलाकों में तो आप के नेता अब जनता की बात तक नहीं सुनते हैं. बिजली और पानी की व्यवस्था तो दिल्ली में अब गाँवों के तरह हो गयी हैं.
इतना तो निश्चित है कि यदि आप इस बार दिल्ली निगम के चुनाव हारती है तो इनके नेता जनता को परेशान करेंगे. बदले की भावना से काम करना आम आदमी के नेताओं को अच्छे से आता है. जनता यदि इनके पास शिकायत लेकर जाएगी तो यह सीधा बोलेंगे कि केंद्र से काम कराओ या जीती हुई पार्टी से काम कराओ.
दिल्ली निगम के चुनाव का परिणाम आप के खिलाफ जाने पर दिल्ली के हालात खराब ही होने वाले हैं.
केजरीवाल बोलते हैं कि निगम में आप को जीत मिलने पर दिल्ली डेंगू से मुक्त होगी. इसका सीधा सा अर्थ है कि मुख्यमंत्री से बड़ा निगम होता है. दिल्ली के मुख्यमंत्री डेंगू के मच्छर से नहीं लड़ सकते हैं. आप के निगम पार्षद में ही डेंगू से लड़ने की शक्ति होती है.
अब यह बात मुख्यमंत्री के चुनाव के समय बोली तो जनता कुछ तय भी कर पाती. आप के नेता और कार्यकर्त्ता तो सरकार बनने पर मलाई खा रहे हैं किन्तु जनता के लिए शायद केजरीवाल पर कुछ भी नहीं है. असल में निगम चुनाव हारते ही केजरीवाल को नैतिक जिम्मेदारी के तहत दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.
इस हार का सीधा सा अर्थ होगा कि अब दिल्ली की जनता केजरीवाल को पसंद नहीं कर रही है. वैसे भी केजरीवाल बोलते थे कि जनता लोकतंत्र में भगवान होती है और जनता का फैसला केजरीवाल के खिलाफ जाने पर इनको पद छोड़ देना चाहिए.
लेकिन शायद केजरीवाल समझ गये हैं कि अब दिल्ली निगम के चुनाव में हार के बाद इनको फिर से नौटंकी का शुरू करना होगा. इसलिए हार पर मंथन नहीं बल्कि आन्दोलन शुरू होगा.
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