कुछ लोग मानते है कि औरतें मर्द की अपेक्षा कमज़ोर होती है.
कुछ लोग मानते है कि औरतें मर्द के बराबर होती है
कुछ लोग मानते है कि शारीरिक विकलांगता आगे बढ़ने की राह में रोड़ा होती है.
और कुछ लोग होते है जो इन सब बातों को गलत साबित करके करोड़ों लोगों को प्रेरित करते है अपने सपनों को पूरा करने की.
ऐसी ही एक शक्सियत है ‘इरा सिंघल’. 30 साल की हंसमुख जिंदादिल इरा जो एक शारीरिक बीमारी से ग्रसित है जिसकी वजह से उनके शरीर का लगभग 62 प्रतिशत हिस्सा ठीक से काम नहीं करता है.
जुझारू इरा ने साल 2010 में भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की थी, पर शारीरिक विकलांगता के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिली.
परीक्षा में सफल होने पर भी जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया. 2014 में अदालत ने इरा के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें नौकरी देने का आदेश दिया.
2014 से इरा भारतीय रेवेन्यू सर्विसेज में अतिरिक्त कमिश्नर है.
सिडनी शेल्डन और शेक्सपीयर को पढने की शौक़ीन इरा अंग्रेजी में स्नातक है.
शिक्षा के दौरान उनके परिवार के हालात बहुत अच्छे नहीं थे फिर भी इरा ने हार नहीं मानी.
अपने हौंसले और इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत से सारी मुश्किलों को पार करते हुए इरा ने सफलता हासिल की.
इस वर्ष की परीक्षा में इरा ने पूरे भारत में पहला स्थान प्राप्त किया और पूरे भारत के सामने एक मिसाल प्रारंभ की.
जहाँ छद्म नारीवादी तरह तरह के प्रचार के लिए हत्कंडे अपनाकर नारीवादी होने का दम भरती है और असल जिंदगी में कुछ और ही होती है.
ऐसे लोगों का अन्धानुकरण करने वालों को इरा और इरा जैसी तमाम लड़कियों को आदर्श बनाना चाहिए. जिन्होंने जीत लिया अपने ज़ज्बे से पूरा जहाँ. इरा जैसी बेटी पर पूरे देश को नाज़ है.
शारीरिक विकलांगता से लड़कर इरा सिंघल ने हौसलें की उड़ान से जीता आसमान
नरेंद्र मोदी के बेटी बचाओ कार्यक्रम के लिए इरा जैसी बेटियां एक उदहारण बन सकती है उनके लिए जो बेटियों को बोझ समझते है.