संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ‘किसी व्यक्ति को डराकर, बलप्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से कैद में रखने की गतिविधि तस्करी की श्रेणी में आती है’. दुनिया भर में 80 प्रतिशत मानव तस्करी यौन शोषण के लिए की जाती है.
भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है.
सरकार के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है. सन् 2011 में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई, जिसमें से 11,000 से ज्यादा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल से थे. इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 प्रतिशत मामले ही रिपार्ट किए गए और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है. दिल्ली मानव तस्करी का सबसे बड़ा अड्डा बन गया है. यहां कई जगह प्लेसमेंट एजेंसियों के नाम पर मानव तस्करी की दुकानें चल रही हैं जहां बेटियों को खरीदा-बेचा जा रहा है. राजस्थान भी मानव तस्करी में काफी आगे है. लेकिन अब एक नया खुलासा ये हुआ है कि असम में जो जातीय और भाषीय हिंसा होती है, उसके बाद यहाँ मानव तस्करी ज्यादा बढ़ जाती है.
अभी हाल ही में मानवाधिकार आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की है, इस रिपोर्ट में जो बात चौकाने वाली आई है, वह यह है कि असम में हिंसा के बाद, मानव तस्करी करना काफी आसान हो जाता है. हिंसा के बाद लोगों को कैम्पों में रहने का इंतजाम सरकार करती है. यहीं से शुरू होती है मानव तस्करी. इन विस्थापित शिविरों के आसपास तस्कर अपना डेरा डाल लेते हैं और वहां की महिलाओं-लड़कियों को अपने जाल में फसाते हैं. असम के लोग इन दिनों दोहरी मार झेल रहे हैं. 2014 में लगभग 50,000 लोग हिंसा के कारण इन कैम्पों में आये और अगर हम कुल विस्थापितों पर नज़र डालें तो सरकारी आकड़े के ही अनुसार 3 लाख से ज्यादा लोग अपने घरों से दूर रहने को मजबूर हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार असम में सन 2011 के अन्दर मानव तस्करी का शिकार हुए 93 लोगों में से 36 नाबालिग थे और इनमें से 28 लड़कियां थीं. यह आंकड़ा 2013 में बढ़कर 188 हो गया और इनमें से 18 साल से नीचे की 94 लड़कियां शामिल थीं. लड़कियों की जहां वेश्यावृति धंधे के लिए तस्करी होती है, वहीं छोटे लड़कों को सस्ते बाल मजदूर के रूप में प्रयोग किया जाता है. महिलाओं और बच्चों को काम दिलाने का झांसा देकर ले जाया जाता है. कई शहरों में इनको चकलों, स्पा केंद्रों ओर ब्यूटीपार्लरों में बेच दिया जाता है. हरियाणा से कई असम महिलाओं को छुड़वाया गया, जहां गिरते लैंगिक अनुपात के कारण लड़कियों की मांग ज्यादा है.
कई कहानियां तो ऐसीं भी सामने आ रही हैं, जिसमे माँ-बाप ही अपनी बच्चियों को 6 से 7 हज़ार रूपए में, तस्करों को बेच रहे हैं. पिछले साल पुलिस ने मुंबई से 36 लड़कियों को एक कारखाने से छुडाया था, जहाँ इन लड़कियों ने बताया था कि हमसे मालिक लोग सेक्स भी करते थे.
रानी (परिवर्तित नाम) को जब दिल्ली के रेड लाइट एरिया से छुड़ाया था, तो वह रोते हुए कह रही थी “ मुझे मेरे घर नहीं जाना. डर लगता है वहां, मुझे फिर वही लोग, किडनैप करेंगें, और मुझे रंडी बना देंगे. मेरे साथ जबरन सेक्स होता था, मैं दर्द में चिल्लाती थी, पर मेरी कोई नहीं सुनता था. पूरे-पूरे दिन में मुझसे कई बार 10 से ज्यादा बार सेक्स करते थे लोग.”
असम के कुछ ख़ास इलाकों में ये तस्करी पूरे जोरों से हो रही है. सोनितपुर, धमाजी, लखीमपुर, कोकझार और कामरूप ये ऐसे जिले हैं, जो हिंसा की चपेट में सबसे ज्यादा रहते हैं. यहाँ कुछ प्लेसमेंट एजेंसी काम कर रही हैं, जो बकायदा लड़कियों के इंटरव्यूज लेती हैं, लड़कियों की बनावट और शरीर को देखकर उन्हें, पैसे दिए जाते हैं.
आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं की अब हालात कितने गंभीर हैं. लड़कियां 20 हज़ार रूपए में बेक दी जा रही हैं. सवाल बड़ा ये है कि कहीं ये हिंसा जो असम में हो रही हैं, ये मानव तस्कर गिरोह ही तो नहीं करा रहे हैं. क्योकि यहाँ इनको लड़कियां बड़ी आसानी से मिल जाती हैं. हमारी सरकार को ये समझना चाइये कि इतने गंभीर मामले में जल्द से जल्द कार्यवाही की जाए, इन लोगों को भी हमारे संविधान ने वही अधिकार दिए हैं जो दिल्ली के अमीर लोगों को दिये गये हैं, इस बात का ध्यान हमें रखना होगा.
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