बड़े आराम से कुर्सी पर बैठ में लैपटॉप पर एक डरावनी फ़िल्म देख रहा था कि अचानक कुर्सी हिलने लगी|
पास ही नज़र घुमायी तो देखा कि मेरी क्रिकेट बॉल भी अपने आप ज़मीन पर रिगड़ने लगी थी| पहले तो लगा मानो कहीं कोई भूत मेरी फ़िल्म से निकल कर मुझे डराने तो नहीं आ गया? इतने में दूसरे कमरे से पापा की आवाज़ आई कि जल्दी बाहर निकलो, भुकंप आया है!
मम्मी-पापा तो जल्दी से नीचे भाग गए पर मैं अपने कमरे में ही आराम से खड़ा रहा|
बल्कि एक दो बार खिड़की से नीचे झाँक के उन लोगों पर हँसा भी जो भुकंप के डर से सड़क पर इकट्ठा हो गए थे! मेरे लिए हंसी की बात थी, इसलिए क्योंकि पहली बार भुकंप का एहसास हो रहा था और इसलिए भी कि जाने क्यों लोग इतनी हलकी-फुल्की बात से डर जाते हैं!
बाद में जब टीवी लगा के दिल दहला देने वाला भुकंप का प्रकोप देखा तो कुछ पलों के लिए तो मैं सदमे में ही आ गया!
नेपाल और बिहार के जिन लोगों की तसवीरें दिखाई जा रही थीं, अगर भुकंप और थोड़ा तेज़ होता तो शायद उन मृतकों में मेरा नाम भी शामिल होता| जैसी बिल्डिंग नेपाल में गिरीं, मेरी बिल्डिंग भी वैसे ही बर्बाद हो सकती थी और मैं धुल-मिटटी की चादर में समा जाता! कुछ ही लम्हों ने लाखों लोगों की ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल दी और मुझे उसका एहसास भी नहीं था| भुकंप आने के बाद जब अपने दोस्तों को फ़ोन कर के मैं मज़ाक उड़ा रहा था, अब उन्हीं लम्हों की वजह से सर शर्म के मारे झुका जा रहा था|
ज़िन्दगी कितनी डगमगाती से होती है, एक पल है, दूसरे पल नहीं| और हम सिर्फ उन चीज़ों के बारे में सोचते रह जाते हैं जिनका जीवन में कोई मूल्य ही नहीं है| मसलन, मेरा ध्यान था कि कहीं लैपटॉप को कुछ न हो जाए या पापा पिछले हफ्ते जो नया टीवी लाये हैं, वो कहीं टूट न जाए! कितनी ओछी सोच हो जाती है कभी-कभी हमारी, है न?
और ऐसे भी लोग हैं जो इस त्रासदी के ऊपर वाहियात किस्म के चुटकुले बना कर सोशल मीडिया और व्हाट्सप्प पर भेजने में लगे हैं! शायद उन्हें ये अंदाजा ही नहीं है की जिन लोगों की जानें इस प्रकृति के प्रकोप में गयीं हैं, या जिन्होंने अपना घरबार खोया है, उन के परिवारजन और वे लोग ऐसे चुटकुलों को पढ़ कर क्या महसूस करते होंगे!
बात सिर्फ सोच बदलने की है और थोड़ा सा संवेदनशील होने की ज़रुरत है!
अगर आपकी ट्रेन लेट हो गयी या ऑफिस में ओवरटाइम करना पड़ रहा है इसका यह मतलब नहीं कि आप बदकिस्मत हैं या आपकी ज़िन्दगी में सिर्फ दुःख ही दुःख हैं| आप तो किस्मतवाले हैं कि ज़िंदा हैं, सांस ले रहे हैं, अपनों के साथ सुख-दुःख बांटने का मौका मिल रहा है आपको| प्रकृति कब किस तरह से साँसें रोक लेगी, इस पर हमारा कोई बस नहीं|
कुछ कर सकते हैं तो बस इतना कि अपने ज़िंदा होने का शुक्र मनायें और हर पल को भरपूर जियें, अपने अपनों के साथ!