एक हाथ में गिलास और उस में चमकती सुनहरे रंग की शराब|
दुसरे हाथ में आधी पी हुई सिगरेट और मुँह से निकलते धुंए के छल्ले|
कितना आकर्षक लगता है ना जब किसी फिल्म में ऐसा सीन आता है| मन मचल जाता होगा आपका भी ऐसा ही कुछ करने को|
अब एक दूसरी तरह का सीन सोच के देखिये:
सरकारी हस्पताल के गंदे से वार्ड में खांसते हुए आप! या आधी रात को घर के बाहर किसी गटर में अधमरे पड़े आप और आपके परिवार वाले आपको उठाने की असफल कोशिश करते हुए!
क्यों, कैसा लगा?
थोड़ी घबराहट, थोड़ी बेचैनी, है ना?
जायज़ है कि होती है लेकिन हम में से बहुत से ऐसे लोग हैं जो जानते-बूझते भी सिगरेट और शराब की लत से अपना पीछा नहीं छुड़ा पाते| वही लोग यह बहाना बनाते हैं कि भाई मैं तो छोड़ दूँ, यह सिगरेट और शराब मुझे नहीं छोड़ती! आपको शायद बुरा लगे पर सच में यह सब सिर्फ बहाने ही हैं, क्योंकि इंसान की इच्छा शक्ति से बढ़कर कुछ नहीं|
हर इंसान अलग होता है, हर किसी की अपनी सोच, अपने दिमाग पर अलग किस्म का नियंत्रण होता है लेकिन यह कह देना कि मेरी सोच शराब के आगे हल्की पड़ जाती है, कायरता का सबूत है! इन पदार्थों की लत लगने में ज़रा भी समय नहीं लगता पर इन्हें छुड़ाने में पसीने छूट जाते हैं|
माना कि मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं!
अगर आप सच में एक सेहतमंद ज़िन्दगी बिताना चाहते हैं तो पहला कदम है मानना कि आप को लत लग चुकी है| दूसरा कदम होगा मदद माँगना, अपने परिवार से, दोस्तों से, डॉक्टर से और उस मदद का मान रखना| आजकल बहुत से ऐसे चिकित्सालय खुल चुके हैं जो आपकी शारीरिक और मानसिक तौर पर मदद करने को तत्पर हैं. बस चाहिए तो आपकी अपार इच्छाशक्ति कि आप हर वो कोशिश करने को तैयार हैं जो आपको इन बुरी लातों के चुंगुल से निकल सके!
आप में से जिन को इसकी लत नहीं लगी, खुशकिस्मत हैं!
कोशिश कीजिये कि इस रास्ते पर ना ही चलें| अगर चल पड़े हैं, तो जितने जल्दी हो सके बाहर निकलने की कोशिश करें| आये दिन आप सिगरेट पीने की हानियों पर टीवी पर एड, अखबारों में खबरें देखते ही रहते हैं|
शराब के मुकाबले सिगरेट छोड़ना ज़्यादा मुश्किल है लेकिन हो सकता है| बस मन बनाने की बात है!
लत किसी भी चीज़ की बुरी होती है|
खुद को ऐसे कामों में लगाएँ जहाँ आपको ख़ुशी मिले, आपका दिमाग उपयोगी विचारों में लगा रहे, जहाँ बेकार की चिंता या तनाव की गुंजाइश ना हो| फिर देखिएगा, यह सिगरेट-शराब की बैसाखी की आपको कोई जरूरत नहीं होगी!