जी हाँ, आपने बिलकुल सही पढ़ा|
जिस ग्लैमरस फिल्म इंडस्ट्री को देखते हुए हम सब बड़े हुए हैं, शायद आपको यकीन न हो की फिल्मी दुनिया में चमकते सितारे के रूप में खुद को देखने की ख्वाहिश रखने वालों में मात्र पांच परसेंट लोग ही दुनिया के सामने आ पाते हैं बाकी के 95 परसेंट लोग क्या करते हैं इस बारे में हम आज आपको बताएंगे|
– स्ट्रगल नहीं, काम ही नहीं है करने को
मुंबई बेस्ड ज्वाइन फिल्म प्रोडक्शन के मेंटर, फिल्म मेकर और ट्रेड कंसलटेंट वीरेंदर राठौर ने करीब 15 साल इस पर रिसर्च किया है| वो कहते हैं, हमारी इंडस्ट्री में तीन तरह के टैलेंट सबसे ज्यादा सामने आते हैं, एक्टर, सिंगर और फिल्म मेकर हालांकि राइटर को भले ही आज लोग वैल्यू देने लगे है. रोजाना मुंबई में कुछ कर दिखाने का सपना लेकर आने वाले 200 लोगों में बहुत कम अपनी पहचान बना पाते हैं| पूछो तो कहते हैं स्ट्रगल कर रहा हूँ| जबकि सच्चाई ये है की उनके पास कोई काम ही नहीं है| इसके पीछे का मुख्य कारण है कुछ सीखने की ललक का आभाव और पेशंस की कमी|
– घर के पैसों से चलता रहता काम
बकौल वीरेन्द्र, यहाँ आने वाले ज्यादातर लोग अपने घर से आने वालों पैसों से जब तक समय कटता है काटते हैं| शाम को पार्टी में जाना दुपहर में सो कर उठना और फिर जिम में समय बिताना| उनकी दिनचर्या ही यही है| ऑडिशन में जाते हैं पर वहां भी जल्दी से भागने की फ़िराक में रहते हैं| इस कारण प्रोडक्शन हाउस भी इनको लेकर गंभीर नहीं रहते और ऐसे लोगों को मौका नहीं मिल पाता|
– काबिलियत पता नहीं, आ गए एक्टर बनने
खुद की काबिलियत पता नहीं होने के कारण अक्सर लोग दूसरों की तरह एक्टिंग कर देते हैं, ओरिजिनालिटी ख़तम हो जाने के कारण उनका सिलेक्शन ऑडिशन में नहीं हो पाता| इसके बाद अधिकतर के मन में कुंठा होने लगती है| फिर उन्हें लगता है कि ऑडिशन फेक हैं या यहाँ केवल सोर्स के दम पर काम मिलता है|
– एक्टिंग नहीं, इवेंट कंपनी सही
एक्टिंग में सिक्का नहीं जम पाता तो लोग दुसरे काम तलाश लेते हैं| इसमें कोई आर्टिस्ट कोरडीनेशन का काम करने लगता है तो कोई असिस्टेंट डायरेक्शन की फील्ड में चला जाता है और कुछ इवेंट मैनेजमेंट कंपनी ! यहाँ तक कि पार्टी आर्गेनाइजर तक बन जाते हैं| अगर काम चल निकला तो ठीक वरना कई सालों बाद घर लौट जाते हैं|
– 14 साल बाद बने सीईओ
लीजेंड स्टूडियो के सीईओ मनीष सिंह यूपी के छोटे से जिले बहराइच से ताल्लुक रखते हैं| फिल्म इंडस्ट्री में जाने का जूनून उन्हें मायानगरी खींच ले गया|
लेकिन इन्होंने खुद को हमेशा एक स्टूडेंट की तरह वहां पेश किया, आज 14 साल बाद वे ओमंग कुमार और संदीप सिंह की प्रोडक्शन हाउस लीजेंड स्टूडियो में बतौर सीईओ काम कर रहे हैं| राजस्थान में भूमि फिल्म की शूटिंग करते हुए यंगगिस्थान को उन्होंने बताया कि ये बात सच है की फिल्म इंडस्ट्री आपको जल्दी नहीं अपनाती पर सच्ची मेहनत और लगन से कुछ भी पाया जा सकता है| खासकर अगर आप हमेशा कुछ न कुछ सीखते रहना चाहते हैं तो आपको इंडस्ट्री खुली बाँहों से स्वीकारती है| फिल्म इंडस्ट्री बहुत क्रिएटिव फील्ड है| इसमें क्रिएटिव होने के साथ ही बिजनेस के फंडे समझने पड़ते हैं|
एक बार अगर आपने इसे समझ लिया तो आपका सफल होना तय है|
जनाब तो अगर आप भी इस फिल्म इंडस्ट्री में जाने की सोच रहे हैं तो एक बार और सोच लीजिये, खुद की काबिलियत और बैंक बैलेंस दोनों को टटोल लीजिये| अगर कुछ कर गुजरने का जूनून है, धीरज धरने की कला और सीखने की ललक है तभी इस ओर कदम बढाइये वर्ना जैसा बड़े सलाह दें उसी हिसाब से अपना करियर चुनिए|
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