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देश को कितना कैश चाहिए कुछ इस तरह तय करती है आरबीआई

आरबीआई – पिछले कुछ दिनों से देश में एटीएम मशीनों से कैश गायब है और कैश की किल्‍लत की वजह से जनता को नोटबंदी वाले दौर की याद आ गई है।

हालांकि, सरकार का कहना है कि करेंसी पर्याप्‍त मात्रा में उपलब्‍ध है और बाकी नोटों की भी छपाई जारी है।

ये तो रही कैश की किल्‍लत की बात लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि देश को कैश की कितनी जरूरत है, ये आरबीआई कैसे सुनिश्‍चत करता है और उसे कैसे पता चलता है कि उसे कितने नोटों की प्रिटिंग करनी है।

तो चलिए जानते हैं …

हर साल फाइनेंशियल ईयर शुरु होने से पहले ही आरबीआई एक मीटिंग बैठाता है जिसमें देश की वार्षिक नकदी की जरूरत तय की जाती है। यह इकनॉमेट्रिक मॉडल पर काम करता है जिसमें कई कारकों का ध्‍यान रखा जाता है जैसे कि सर्कुलेशन में नोटों की संख्‍या, नष्‍ट होने वाले नोटों की संख्‍या और उन्‍हें रिप्‍लेस करने के लिए कितने नोटों की जरूरत है।

इसके लिए अनुमानित जीडीपी ग्रोथ और आने वाले वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्‍फीति पर नज़र रखी जाती है। इसके अलावा पिछले एक साल के दौरान इलेक्‍ट्रॉनिक ट्रांजैक्‍शन, फंड ट्रांस्‍फर और कार्ड के ज़रिए पेमेंट जैसे अन्‍य कारकों पर भी गौर फरमाया जाता है।

इसके बाद आरबीआई अपने 19 क्षेत्रीय ऑफिसों से डाटा कलेक्‍ट करता है और उसे जरूरत के हिसाब से हर ऑफिस को राशि आवंटित करता है। ये आरबीआई ही तय करता है कि किस ऑफिस को कितनी राशि आवंटित करनी है। इसके बाद वित्त मंत्रालय के सिक्‍का और मुद्रा विभाग को इस बारे में जानकारी दी जाती है।

बैंक से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि कितने कैश की जरूरत है और कितने नोट प्रिट किए जाने हैं, ये सब आरबीआई और मिनिस्‍ट्री के बीच गुप्‍त रखा जाता है। करेंसी की जरूरत के हिसाब से करेंसी नोट प्रिट करने वाली देश की चारों प्रेस को एक ऑर्डर पास कर दिया जाता है जिसमें साफ तौर पर बता दिया जाता है कि नोट कौन से मूल्‍य वर्ग के होंगें और कितने नोट पिंट होंगें।

देश में कैश की कमी के चलते आर्थिक मामलों के सचिव एस.सी गर्ग का कहना है कि देश में 4 हज़ार करेंसी चेस्‍ट है और वहीं पैसे आते हैं, रखे जाते हैं और वहां से वितरित होते हैं। इसलिए हर चेस्‍ट की मॉनिटरिंग हो रही है। जिस चेस्‍ट में कैश की कमी हो रही होगी वहां पर कैश पहुंचा दिया जाएगा।

कैश की किल्‍लत को लेकर कई वजहें बताई जा रही हैं। आरबीआई और सरकार का कहना है कि नोटों की मांग में अप्रत्‍याशित वृद्धि से मुश्किल हो रही है। कई बैंक अधिकारियों का कहना है कि 2000 के नोट बैंकों में वापिस नहीं आ रहे हैं। ये भी अफवाह है कि कर्नाटक चुनावों में कैश होर्डिंग से संकट खड़ा हुआ है।

कैश की किल्‍लत को देखकर आपको भी नेाटबंदी के दौर की याद आ गई होगी। कैश की किल्‍लत का कारण भ्रष्‍टाचार भी हो सकता है जहां लोगों ने पहले की तरह ही अपनी तिजोरियों में नोट भर लिए हों और बाकी लोग पैसों को तरस रहे हैं।

Parul Rohtagi

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