रावण का जन्म – पौराणिक ग्रंथों में रामायण का अत्यंत महत्व है।
इस ग्रंथ में भगवान राम, देवी सीता, लक्ष्मण जी और पवन पुत्र हनुमान के अलावा रावण का अहम पात्र है। अगर रावण नहीं होता तो इस पूरे ग्रंथ का निर्माण ही नहीं होता इसलिए इसमें रावण का विशेष महत्व है।
सभी जानते हैं कि रावण सोने की लंका का राजा था और उसे अपनी शक्तियों पर इतना गुमान था कि उसने श्रीराम में ईश्वरीय शक्तियों को भी नहीं पहचाना। रावण के दस सिर थे और इसलिए उसे दशानन के नाम से भी जाना जाता है।
किसी भी कृति के लिए नायक के साथ ही सशक्त खलनायक का होना भी बहुत जरूरी है।
भले ही रावण खलनायक हो लेकिन उसमें अनेक गुण भी विद्यमान थे। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी, अत्यंत बलशाली और अनेकों शास्त्रों का ज्ञाता प्रकांड विद्वान पडित एवं महाज्ञानी था। कहा जाता है कि रावण के शासन काल में लंका का वैभाव अपने चरम पर था।
पद्ममपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, रामायण, महाभारत, आनंद रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख किया गया है। रावण का जन्म जिससे संबंधित भिन्न ग्रंथों में अलग-अलग प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। यहां तक कि रावण के उदय को लेकर अलग-अलग धारणाएं प्रचलित हैं।
आइए जानते हैं रावण का जन्म और उससे जुड़ी कुछ प्रमुख धारणाओं के बारे में-:
वाल्मीकि रामायण की मानें तो रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्रवा का पुत्र था। विश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नाम की दो पत्नियां थीं। वरवर्णिनी ने कुबेर को जन्म दिया था जबकि कैकसी ने कुबेला यानि अशुभ समय में गर्भधारण किया था। कैकसी के गर्भ से रावण का जन्म हुआ था। इस धारणा के मुताबिक कुबेर देवता और रावण दोनों सौतेले भाई हैं और निरंतर इनके बीच झगड़ा रहता था।
वहीं एक अन्य कथा प्रचलित है कि रावण की माता केशिनी थी और उसने अपने पति विश्रवा की खूब सेवा की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने केशिनी को वरदान मांगने को कहा था। तब केशिनी ने कहा कि उन्हें ऐसे पुत्रों का वरदान चाहिए जो देवताओं से भी ज्यादा शक्तिशाली हो और उन्हें हरा सके।
केशिनी ने एक पुत्री, पत्नी और मां के रूप मे अपनी मर्यादा का पालन किया था। कुछ समय बाद उसने एक अद्भुत बालक को जन्म दिया जो दस सिर और बीस हाथों वाला अत्यंत तेजस्वी और बेहद सुंदर बालक था।
केशिनी ने अपने पति से पूछा कि इस बालक के इतने हाथ और सिर क्यों हैं। तक ऋषि ने कहा कि तुमने अद्भुत बालक मांगा था इसलिए ये अद्भुत है और इस जैसा कोई और नहीं है। ग्यारहवें दिन उस बालक का नामकरण संस्कार हुआ और उसका नाम रावण रखा गया। रावण अपने पिता के आश्रम में ही बड़ा हुआ था।
इस तरह रावण का जन्म के साथ धारणाएं प्रचलित हैं। कोई इस बात का अनुमान भी नहीं लगा सकता कि अगर रावण नहीं होता तो देवी सीता और भगवान राम इतने महान कैसे बन पाते। जब तक खलनायक नहीं होता तब तक नायक नहीं बनता, ये बात रामायण के संदर्भ में बिलकुल सार्थक है।