अक्सर पुरुषों की ये शिकायत होती हैं कि महिलाएं जरा-जरा सी बात पर रोना शुरु कर देती हैं.
आंसूओं का तो जैसे इनके पास दरिया ही होता हैं. जब देखो तब बह पड़ता है लेकिन पुरुषों को बहुत ही कम रोते देखा गया हैं.
क्या वो इमोशनली हर्ट नहीं होते हैं? कैसे छिपाते है आदमी अपने इमोशन्स? क्या वाकई में होते है वो इमोशनली स्ट्रांग?
या फिर कुछ और है हकीकत!!!!
क्यों नहीं रोते आदमी–
१. एक बच्चा चाहे वो लड़की हो या लड़का इनका रोने पर कोई काबू नहीं होता हैं. वो कभी भी रोने लगते है, लोग उनके बारें में क्या सोचेंगे ये परवाह किए बिना. क्योंकि उनमें इतनी समझ होती ही नहीं हैं. चाहे महिलाएं इमोशनली कितनी ही स्ट्रांग हो वो एक ना एक दिन अपने आप को रोने से रोक नहीं पाती हैं. लेकिन आदमी बहुत मुश्किल से आप को रोते हुए दिखेंगे.
२. माना जाता हैं कि रोना यानि कमजोर होने की निशानी होता हैं और आदमी खुद को कमजोर दिखाना नहीं चाहते हैं.
३. जैसे ज्यादातर औरते राज और दुख औरतों के साथ बांटती हैं, तो वहीं आदमी ज्यादातर आदमी को ही अपना हमदर्द बनाते है. शायद यही वजह हों कि औरतों को उनके आंसू दिखते नहीं हों. शायद एक आदमी के ज़ज्बात एक आदमी के सामने ही आंसूओं के जरिए फू़ट पड़ते हो.
४. ज्यादातर आदमी मानते हैं कि आंसू औरत को ही सूट करते हैं.
कब नहीं रख पाते आदमी ज़ज्बातों पर काबू-
आंसूओं को लेकर हरिवंशराय बच्चन ने बहुत खूब कविता लिखी है.
जिसके पीछे पागल होकर मैं दौडा अपने जीवन-भर,
जब मृगजल में परिवर्तित हो मुझ पर मेरा अरमान हंसा!
तब रोक न पाया मैं आंसू!
जिसमें अपने प्राणों को भर कर देना चाहा अजर-अमर,
जब विस्मृति के पीछे छिपकर मुझ पर वह मेरा गान हंसा!
तब रोक न पाया मैं आंसू!
मेरे पूजन-आराधन को मेरे सम्पूर्ण समर्पण को,
जब मेरी कमज़ोरी कहकर मेरा पूजित पाषाण हंसा!
तब रोक न पाया मैं आंसू!
इस कविता से साफ होता है कि आदमी भी रोते हैं.
आईए देखते हैं किन मौको पर अपने आंसूओं को बहने से नहीं रोक पाते है पुरुष.
१. अपने प्यार को हमेशा के लिए खो देने के डर से, ब्रेक-अप होने के बाद
२. किसी अपने की मौत के बाद
३. जाने -अनजाने में हुई भूल के लिए माफ़ी मांगते वक्त
४. अपनी बेटी की विदाई के वक्त
५. कभी-कभी रिटायरमेंट के बाद अपनी फ़ेयरवेल पार्टी के वक्त
६. कॉलेज की फ़ेयरवेल पार्टी के वक्त
७. जॉब खोने के बाद
८. गंभीर बीमारी से जुझते हुए आदमियों को अपने से ज्यादा अपने परिवार की चिंता होती है. इसलिए ठीक ना हो पाने के डर
से या अपनी मौत के बाद परिवार का क्या होगा ये सोचकर भी रोते हैं.
९. झूठे आरोप लगने के बाद गर वो खुद को सच नहीं साबित कर पाते है तो सार्वजनिक रुप से भी अपने आप को रोने से नहीं रोक पाते हैं.
शायद सदियों से चली आ रही धारणा कि रोना औरतों की निशानी हैं कि वजह से आदमी रोने से बेहतर अपने ज़ज्बातों को छिपाना बेहतर समझते हों.
लेकिन है तो वो इंसान ही कुछ मौके ऐसे होते हैं कि वोे चाहकर भी अपना रोना नहीं रोक पाते हैं.
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